उसे अनुशासन, समादर और आज्ञापालन सीखना होगा। यह एक प्रकार
से आध्यात्मिक ग़ुलामी हुई। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे गुलाम
बनो और मैं नहीं चाह्ता कि तुम मेरा आज्ञापालन करो। मैं
सिर्फ यह चाहता हूं कि तुम मुझे समझो और यदि मेरा
अनुभव प्रमाणिक है और तुम्हारा विवेक उसे समझ
पाता है तो तुम स्वयं ही उसका अनुसरण करोगे।
यह आज्ञापालन न हुआ, मैं तुम्हें कुछ करने को
नहीं कह रहा, मैं सिर्फ तुम्हें समझने के लिये
कह रहा हूं, और फिर तुम्हारा विवेक जहां
तुम्हें ले जाये, तुम उसका अनुसरण
करो। तुम जो भी बनो, मैं प्रसन्न
हूं, बस स्वयं के साथ सच्चे
और ईमानदार रहो।"
ओशो
:)
nice....but plzz also post smthng very adjacent with todays' probs, degradations and necessities .
bas swayan ke saath sachche aur imandar raho.
osho vachan ...anmol ratan.
शीशे के सामने खड़े होने में ही तो परेशानी होती है। इतना कि कई बार कई मुद्दों पर शीशा ही धुंधला दिखाई देने लगता है।