एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को कुछ लोग बंबई कहते है। उस बड़े बाजार में एक सभा थी और उस सभा में एक पंडितजी, कबीर क्या कहते है, इस संबंध में बोलते थे। उन्होंने कबीर की एक पंक्ति कहीं और उसका अर्थ समझाया। उन्होंने कहा, ‘’कबिरा खड़ा बजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर बारे अपना चले हमारे साथ।’’ उन्होंने यह कहा कि कबीर बाजार में खड़ा था और चिल्लाकर लोगों से कहने लगा कि लकड़ी उठाकर बुलाता हूं उन्हें जो अपने घर को जलाने की हिम्मत रखते हों वे हमारे साथ आ जायें। उस सभा में मैंने देखा कि लोग यह बात सुनकर बहुत खुश हुए। मुझे बड़ी हैरानी हुई— मुझे हैरानी यह हुई कि वह जो लोग खुश हो रहे थे। उनमें से कोई भी आपने घर को जलाने को कभी तैयार नहीं था। लेकिन उन्हें प्रसन्न देखकर मैंने समझा कि बेचारा कबीर आज होता तो इतना खुश न होता। जब तीन सौ साल पहले वह था और किसी बाजार में उसने चिल्लाकर कहा होगा तो एक भी आदमी खुश नहीं हुआ होगा।
आदमी की जात बड़ी अद्भुत है। जो मर जाते है उनकी बातें सुनकर लोग खुश होते है जो जिंदा होते है, उन्हें मार डालने की धमकी देते है।
मैंने सोचा कि आज कबीर होते, इस बंबई के बड़े बाजार में तो कितने खुश होते कि लोग कितने प्रसन्न हो रहे है। कबीर जी क्या कहते है, इसको सुनकर लोग प्रसन्न हो रहे हे। कबीर जी को सुनकर वे कभी भी प्रसन्न नहीं हुए थे। लेकिन लोगों को प्रसन्न देखकर ऐसा लगा कि जो लोग अपने घर को जलाने के लिए भी हिम्मत रखते है और खुश होते है, उनसे कुछ दिल की बातें आज कही जायें। तो मैं भी उसी धोखे में आ गया। जिसमें कबीर और क्राइस्ट और सारे लोग हमेशा आत रहे है।
मैंने लोगों से सत्य की कुछ बात कहनी चाही। और सत्य के संबंध में कोई बात कहनी हो तो उन असत्यों को सबसे पहले तोड़ देना जरूरी है, जो आदमी ने सत्य समझ रखे है। जिन्हें हम सत्य समझते है और जो सत्य नहीं है। जब तक उन्हें न तोड़ दिया जाए, तब तक सत्य क्या है उसे जानने की तरफ कोई कदम नहीं उठाया जा सकता।
मुझे कहा गया था उस सभा में कि मैं प्रेम के संबंध में कुछ कहूं और मुझे लगा कि प्रेम के संबंध में तब तक बात समझ में नहीं आ सकती, जब तक कि हम काम और सेक्स के संबंध में कुछ गलत धारणाएं लिए हुए बैठे है। अगर गलत धारणाएं है सेक्स के संबंध में तो प्रेम के संबंध में हम जो भी बातचीत करेंगे वह अधूरी होगी। वह झूठी होगी। वह सत्य नहीं हो सकती।
इसलिए उस सभा में मैंने काम और सेक्स के संबंध में कुछ कहा। और यह कहा कि काम की उर्जा ही रूपांतरित होकर प्रेम की अभिव्यक्ति बनती है। एक आदमी खाद खरीद लाता है, गंदी और बदबू से भरी हुई और अगर अपने घर के पास ढेर लगा ले तो सड़क पर से निकलना मुश्किल हो जायेगा। इतनी दुर्गंध वहां फैलेगी। लेकिन एक दूसरा आदमी उसी खाद को बग़ीचे में डालता है और फूलों के बीज डालता है। फिर वे बीज बड़े होते है पौधे बनते है। और उनमें फूल निकलते है। फूलों की सुगंध पास-पड़ोस के घरों मे निमंत्रण बनकर पहुंच जाती है। राह से निकलते लोगों को भी वह सुगंध छूती है। वह पौधों को लहराता हुआ संगीत अनुभव होता है। लेकिन शायद ही कभी आपने सोचा हो कि फूलों से जो सुगंध बनकर प्रकट हो रहा रही है। वह वही दुर्गंध है जो खाद से प्रकट होती थी। खाद की दुर्गंध बीजों से गुजर कर फूलों की सुगंध कर जाती है।
दुर्गंध सुगंध बन सकती है। काम प्रेम बन सकता है।
लेकिन जो काम के विरोध में हो जायेगा। वह उसे प्रेम कैसे बनायेगे। जो काम का शत्रु हो जायगा, वह उसे कैसे रूपांतरित करेगा? इसलिए काम को सेक्स को, समझना जरूरी है। यह वहां कहां और उसे रूपांतरित करना जरूरी है।
मैंने सोचा था, जो लोग सिर हिलाते थे घर जल जाने पर, वे लोग मेरी बातें सुनकर बड़े खुश होंगे। लेकिन मुझसे गलती हो गयी। जब मैं मंच से उतरा तो उस मंच पर जितने नेता थे, जितने संयोजक थे, वे सब भाग चुके थे। वे मुझे उतरते वक्त मंच पर कोई नहीं मिले। वे शायद अपने घर चले गये होंगे कि कहीं घर में आग न लग जाये। उसे बुझाने का इंतजाम करने भाग गये थे। मुझे धन्यवाद देने को भी संयोजक वहां नहीं थे। जितनी भी सफेद टोपियों थी। जितने भी खादी वाले लोग थे। वे मंच पर कोई भी नहीं थे। वे जा चुके थे।
नेता बड़ा कमजोर होता है। वह अनुयायियों के पहले भाग जाता है।
लेकिन कुछ हिम्मतवर लोग जरूर आये। कुछ बच्चे आये, कुछ बच्चियां आयी, कुछ बूढ़े, कुछ जवान। और उन्होंने मुझसे कहा कि आपने वह बात हमें कहीं है, जो हमें किसी ने कभी नहीं कही। और हमारी आंखें खोल दी है। हमें बहुत ही प्रकाश अनुभव हुआ है। तो फिर मैंने सोचा कि उचित होगा कि इस बात को और ठीक से पूरी तरह कहां जाये। इसलिए यह विषय मैंने आज यहां चुना। इस चार दिनों में यक कहानी जो वहां अधूरी रह गयी थी। उसे पूरा करने का एक कारण यह था कि लोगों ने मुझे कहा। और वह उन लोगों ने कहा, जिनको जीवन को समझने की हार्दिक चेष्टा है। और उन्होंने चाहा कि मैं पूरी बात कहूं। एक तो कारण यह था।
और दूसरा कारण यह था कि वे जो भाग गये थे मंच से, उन्होंने जगह-जगह जाकर कहना शुरू कर दिया कि मैंने तो ऐसी बातें कही है कि धर्म का विनाश ही हो जायेगा। मैंने तो ऐसी कहीं है, जिनसे कि लोग अधार्मिक हो जायेंगे।
तो मुझे लगा कि उनका भी कहना पूरा स्पष्ट हो सके, उनको भी पता चल सके कि लोग सेक्स के संबंध में समझकर अधार्मिक होने वाले नहीं है। नहीं समझा है उन्होंने आज तक इसलिए अधार्मिक हो गये है।
अज्ञान अधार्मिक बनाता हो। ज्ञान कभी भी अधार्मिक नहीं बना सकता है।
और अगर ज्ञान अधार्मिक बनाता हो तो मैं कहता हूं कि ऐसा ज्ञान उचित है। जो अधार्मिक बना दे, उस अज्ञान की बजाय जो कि धार्मिक बनाता हो। धर्म तो वही सत्य है जो ज्ञान के आधार पर खड़ा होता है।
और मुझे नहीं दिखायी पड़ता की ज्ञान मनुष्य को कहीं भी कोई हानि पहुंचा सकता है। हानि हमेशा अंधकार से पहुंचती है और अज्ञान से।
इसलिए अगर मनुष्य जाति भ्रष्ट हो गयी; यौन के संबंध में विकृत और विक्षिप्त हो गयी। सेक्स के संबंध में पागल हो गयी तो उसका जिम्मा उन लोगो पर नहीं है, जिन्होंने सेक्स के संबंध में ज्ञान की खोज की है। उसका जिम्मा उन नैतिक धार्मिक और थोथे साधु-संतों पर है, जिन्होंने मनुष्य को हजारों वर्षो से अज्ञान में रखने की चेष्टा की है। यह मनुष्य जाति कभी की सेक्स से मुक्त हो गयी होती। लेकिन नहीं यह हो सका। नहीं हो सका उनकी वजह से जो अंधकार कायम रखने की चेष्टा कर रहे है।
ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
अक्टूबर—1968,
अगले भाग के लिए कृपया इंतजार करे ....... जल्द प्रकाशित होगा