तभी मैं कहता हूं कि मैं मील का पत्थर हूं। मेरे साथ चेतना
के इतिहास में एक और अध्याय जुड़ गया है। संबोधि
अब एक शुरुआत होगी न कि अंत। प्रचुरता के
सभी आयामों में शुरुआत की एक
अनवरत प्रक्रिया।"
ओशो
इस ब्लॉग पर ओशो के प्रवचनों को ऑडियो के रूप में उपलब्ध करवाना चाहता हूँ।
पर ये नहीं जनता की ऑडियो क्लिप को कैसे जोड़ा जाये।
ब्लॉग जगत में मित्रो में से इस बारे में कोई
जनता हो तो कृपया मदद करे
अग्रिम आभार
http://www.google.com/support/blogger/bin/answer.py?hl=en&answer=80259
अच्छा विचार है ओशो का
संबोधि
अब एक शुरुआत होगी न कि अंत
सही कहा
बहुत ही अच्छा ब्लॉग है आपका ... आभार
सुन्दर शब्दों के साथ कही गयी सुन्दर बात
सत्य वचन
ओशो को नमन!
मेरे ब्लॉग पर भी आये :-
http://bigboss-s4.blogspot.com/
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अब एक शुरुआत होगी न कि अंत
अच्छा विचार है ओशो का
इन वस्तुत: अमर शब्दों के साथ, ओशो अपनी जीवनी को नकारते हैं और अपना मृत्युवाक्य लिखते हैं। इससे पहले की हर चीज से अपना नाम हटाने के बाद, वह अंततः "ओशो" स्वीकार करने के लिए तैयार हुए, उन्होंने कहा कि यह विलियम जेम्स' "के ओशियानिक, महासागर''से व्युत्पन्न है "यह मेरा नाम नहीं है," "यह एक स्वास्थ्यदायी ध्वनि है।"
उनके बिना किसी पूर्व तैयारी के दिये गये प्रवचन, जो उन्होने दो दशकों से अधिक की अवधि में विश्व भर के लोगों के समक्ष दिये, सभी के सभी ध्वनि-मुद्रित हैं, जिनमें कुछ प्रवचन वीडियो पर भी उपलब्ध हैं- ये कैसेट्स कोई भी ,कहीं भी सुन सकता है, और तब, ओशो का कहना है," वही मौन उपलब्ध होगा
इन प्रवचनों में मनुष्य के मन का पहली बार इतनी बारीकी से परीक्षण किया गया है कि इसमें छिपी सूक्षमतम रेखा भी बच नहीं पायी। मन मनोविज्ञान की तरह, मन भाव की तरह, मन मन/देह की तरह, मन नीतिज्ञ की तरह, मन आस्था के रूप में, मन धर्म की तरह, मन इतिहास की तरह, मन राजनीति और सामाजिक विकास की तरह- उन्होंने मन के सभी पहलुओं का परीक्षण और अध्ययन करके उनका एकीकरण कर दिया है; और उन्हें सौंप दिया है हमें,एक आशीर्वाद के रूप में, ताकि हम रूपांतरण की मौलिक खोज पर निकल सकें।
इस प्रक्रिया के दौरान ओशो जहां भी पाखंड व आडंबर देखते हैं उसे बेनकाब करते हैं। एक लेखक के रूप में टॉम रॉबिन्ज़ ने इस बात को बड़े सुंदर शब्दों में कहा है: "हरित तृण क्षेत्र से आती बयार जब मेरे द्वार खटखटाती है तो मैं उसे पहचानता हूं। और ओशो वैसी ही आच्छादित कर देने वाली मीठी बयार के समान हैं जिसने इस पूरे ग्रह को घेर लिया है - पंडितों, पुरोहितों की टोपियां उड़ाती हुई, झूठ की धूल को पदाधिकारियों के मेज़ पर झाड़ती हुई, बलशालियों के गढ़ में जाकर मूर्खों को लताड़ती हुई, विकृत समझदारों का पर्दाफाश करती हुई और आध्यात्मिक रूप से मॄत लोगों की पीठ को गुदगुदा कर उन्हें जीवनदान देती हुई।"
"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"
भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर
"तुम मेरे बारे यह नहीं कह सकते कि मैं सही हूं या ग़लत। अधिक से अधिक तुम यही कह सकते हो कि मैं उलझन पैदा कर रहा हूं। लेकिन यही मेरा उपाय है: तुम्हें उलझा दूं। कहां तक तुम यह सह सकोगे कि मैं यहां से वहां और वहां से यहां बदलता रहूं। एक दिन तुम चिल्लाने ही वाले हो," दूर रहो! अब निर्णय मैं लूंगा।"
ज्ञान के लिए पिपासा है। कितनी प्यास है? प्रत्येक में देखता हूं। कुछ भीतर प्रज्ज्वलित है, जो शांत होना चाहता है और मनुष्य कितनी दिशाओं में खोजता है। शायद अनंत जन्मों से उसकी यह खोज चली आ रही है। पर हर चरण पर निराशा के अतिरिक्त और कुछ भी हाथ नहीं आता है। कोई रास्ता पहुंचता हुआ नहीं दिखता है। क्या रास्ते कहीं भी नहीं ले जाते हैं?
इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना है। जीवन स्वयं इसका उत्तर है। क्या अनंत मार्गो और दिशाओं में चलकर उत्तर नहीं मिल गया है?
बौद्धिक उत्तर खोजने में, उसके धुएं में, वास्तविक उत्तर खो जाता है। बुद्धि चुप हो तो अनुभूति बोलती है। विचार मौन हों तो विवेक जाग्रत होता है।
वस्तुत: जीवन के आधारभूत प्रश्नों के उत्तर नहीं होते हैं। समस्याएं हल नहीं होती हैं, गिर जाती हैं। केवल पूछने और शून्य हो जाने की बात है। बुद्धि केवल पूछ सकती है। समाधान उससे नहीं शून्य से आता है।
'समाधान शून्य से आता है,' इसी सत्य को जानते ही एक नये आयाम पर जीवन का उद्घाटन प्रारंभ हो जाता है। चित्त की इसी स्थिति का नाम समाधि है।
पूछें और चुप हो जाएं- बिलकुल चुप और समाधान को आने दें, उसे फलने दें। चित्त की इस निस्तरंग स्थिति में दर्शन होता है, उसका-जो है, जो मैं हूं।
स्वयं को जाने बिना ज्ञान की प्यास नहीं मिटती है।
सब मार्ग छोड़कर स्वयं पर पहुंचना होता है। चित्त जब किसी मार्ग पर नहीं है, तब स्वयं में है और स्वयं को जानना ज्ञान है। शेष सब जानकारी है, क्योंकि परोक्ष है। विज्ञान ज्ञान नहीं है। वह सत्य को नहीं, केवल उपयोगिता को जानना है। सत्य केवल अपरोक्ष ही जाना जा सकता है और ऐसी सत्ता केवल स्वयं की ही है, जो कि अपरोक्ष जानी जा सकती है।
चित्त जिस क्षण खोज की व्यर्थता को जानकर चुप और थिर रह जाता है, उसी क्षण अनंत के द्वार खुल जाते हैं।
दिशा-शून्य चेतना प्रभु में विराजमान हो जाती है और ज्ञान की प्यास का अंत केवल प्रभु में ही है।
nice blog..
Audio clip ko jodne k liye aap mujhe mail kar sakte hain .
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra