" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | गुरुवार, अक्टूबर 07, 2010 | 25 टिप्पणियाँ

काशी नरेश का एक ऑपरेशन हुआ उन्‍नीस सौ दस में। पाँच डाक्‍टर यूरोप से ऑपरेशन के लिए आए। पर काशी नरेश ने कहा कि मैं किसी प्रकार का मादक द्रव नहीं ले सकता। क्‍योंकि मेंने मादक द्रव्‍य लेना छोड़ दिया है। तो मैं किसी भी तरह की बेहोश करने वाली कोई दवा, कोई इंजेक्‍शन, वह भी नहीं ले सकता, क्‍योंकि मादक द्रव मैंने त्‍याग दिये है। न मैं शराब पीता हूं, न सिगरेट पीता हूं, मैं चाय भी नहीं पीता। तो इसलिए ऑपरेशन तो करें आप—

अपेंडिक्‍स का ऑपरेशन था। बड़ा ऑपरेशन होगा कैसे? इतनी भयंकर पीड़ा होगी, और आप चीखे-चिल्‍लाए, उछलने-कूदने लगे तो बहुत मुशिकल हो जाएगी। आप सह नहीं पाएंगे। उन्‍होंने कहा कि नहीं, मैं सह पाऊंगा। बस इतनी ही मुझे आज्ञा दें कि मैं अपना गीता का पाठ करता रहूँ।

काशी नरेश महाराजा श्री सर प्रभु नारायण सिंह बहादुर

तो उन्‍होंने प्रयोग करके देखा पहले। उँगली काटी। तकलीफ़ें दीं, सूइयाँ चुभायीं, और उनसे कहा कि आप अपना…..वे अपना गीता का पाठ करते रहे। कोई दर्द का उन्‍हें पता न चला। फिर ऑपरेशन भी किया गया। वह पहला ऑपरेशन था पूरे मनुष्‍य जाति के इतिहास में, जिसमें किसी तरह के मादक-द्रव्‍य का कोई प्रयोग नहीं किया गया। काशी नरेश पूरे होश में रहे। ऑपरेशन हुआ। डाक्‍टर तो भरोसा न कर सके। जैसे कि लाश पड़ी हो सामने, जिंदा आदमी है कि मुर्दा आदमी हो।

ऑपरेशन के बाद उन्‍होंने पूछा कि यह चमत्‍कार है, आपने किया क्‍या? उन्‍होंने कहा, मैंने कुछ भी नहीं किया। मैं सिर्फ होश संभाले रखा। और गीता पढ़ता रहा, और गीता जब मैं पढ़ता हूं, इसे जन्‍म भर से पढ़ रहा हूं। और गीता जब मैं पढ़ता हूं….. फिर मेरे चारों और क्‍या हो रहा इस की मुझे कुछ फिकर नहीं रहती है। मैं तो स्‍वय में डूब जाता हूं। और एक दीपक जलता रहता है बाहर। और में अपने होश को मात्र संभाले रहता हूं। ओर यही पाठ का अर्थ होता है।

पाठ का अर्थ ऐसा नहीं होता कि बैठे हैं, नींद आ रही है, तंद्रा आ रही है, दोहराए चले जा रहे हैं, मक्‍खी उड़ रही है और गीता का पाठ हो रहा है। पाठ का यह मतलब नहीं होता। पाठ का अर्थ होता है। बड़ी सजगता। कि बस गीता ही रह जाये। उतने ही शब्‍द रह जाये। सारा संसार खो जाए…तो उन्‍होंने कहा, गीता के पाठ से मुझे होश बनता है, जागृति आती है।

बस उसका मैं पाठ जब तक मुझसे भूल चुक नहीं होती। तो मैं उसे दोहराता रहूँ तो फिर शरीर मुझसे अलग है। ना हन्य ते, हन्‍य माने शरीरे। तब मैं जानता हूं कि शरीर को काटो, मारो, तो भी तूम मुझे नहीं मार सकेत। नैनं छिंदंति शस्‍त्राणि। तुम छेदों शस्‍त्रों से तुम मुझे नहीं छेद सकते हो। बस इतनी मुझे याद बनी रही, उतना काफी था, मैं शरीर नहीं हूं।

हां, अगर मैं गीता न पढ़ता होता तो भूल-चूक हो सकती थी। अभी मेरा होश इतना नहीं है कि सहारे के बिना सध जाए। पाठ का यही अर्थ होता है। पाठ का अर्थ अध्‍ययन नहीं होता है, पाठ का अर्थ गीता को दोहरना नहीं है। बड़ा बहुमूल्‍य अर्थ है। अध्‍ययन पाठ का अर्थ है, गीता को मस्‍तिष्‍क से नहीं पढ़ता, गीता को बोध से पढ़ना। और गीता पढ़ते वक्‍त गीता जो कह रही है उसके बोध को संभालना। निरंतर-निरंतर अभ्‍यास करने से, बोध संभल जाता है। पर काशी नरेश को भी डर था, अगर सहारा न लें तो बोध शायद खा जाए।

बुद्ध ने तो कहा है कि शस्‍त्र का भी सहारा न लेना, सिर्फ श्‍वास का सहारा लेना। क्‍योंकि शस्त्र भी जरा दूर है। श्‍वास भीतर जाए, देखना, बाहर जाए, देखना। श्‍वास की जो परिक्रमा चल रही है, श्‍वास की जो माला चल रही है। उसे देखना। इसको बुद्ध ने ‘’आनापानसतीयोग’’ कहा है। श्‍वास का भीतर आना, श्‍वास का बाहर जाना। इसे तुम देखते रहना। श्‍वास नासापुटों को छुए तो तुम वहां मौजूद रहना, गैर मौजूदगी में न छुए।

तुम होश पूर्वक देखना कि श्‍वास ने नासा पुटों को छुआ। ऐसा भीतर कहने की जरूरत नहीं है ऐसा साक्षात्‍कार करना। फिर श्‍वास भीतर चली, श्‍वास के रथ पर यात्रा करना, वह तुम्‍हारे फेफडों में गई और गहरी गयीं। उसने तुम्‍हारे नाभि स्थल को ऊपर उठाया, देखते जाना। उसके साथ ही साथ जाना। छाया की तरह उसका पीछा करना। फिर श्‍वास एक क्षण को रुकी, तुम भी रूक जाना।

फिर श्‍वास वापस लौटने लगीं, तुम भी लौट आना। श्‍वास बाहर चली गई। फिर श्‍वास भीतर आए। इस श्‍वास की परिक्रमा का तुम पीछा करना होश पूर्वक। और श्‍वास की एक और खूबी है। कि श्‍वास तुम्‍हारी आत्‍मा और शरीर का सेतु है। उस से ही शरीर और आत्‍मा जूड़े है। अगर तुम श्‍वास के प्रति जाग जाओ, तो तुम पाओगे की शरीर बहुत पीछे छुट गया है। बहुत दूर रह गया है।

श्‍वास में जाग कर तुम देखोगें तो तुम जानोंगे की तुम अलग हो और शरीर अलग है।

श्‍वास ने ही जोड़ा है। श्‍वास ही तोड़ती है।


ओशो

एस धम्‍मो सनंतनो

25 पाठको ने कहा ...

  1. बेनामी says:

    nice posting...

  2. Basant Sager says:

    बहुत ही बढ़िया शब्द संग्रह है आपके पास ओशो का .....

  3. Basant Sager says:

    जिनसे आप हने आत्मसात कराते रहते है ... आभार आपका

  4. विश्व भर में मानव जाति का यह अनुभव है जिसे ओशो ने आंतरिक अवस्थाओं के रूप में सुंदर तरीके से चित्रित किया है. आलेख के लिए आभार.

  5. भाई वाह क्या बढ़िया लेख है , लगता है चुराना पड़ेगा ........

  6. उत्तम लेखन का नमूना है ये लेख ....

  7. sanu shukla says:

    आपके ब्लॉग पर हमेशा ही कुछ नया सिखने को मिलता है ..... धन्यवाद

  8. अच्छी प्रस्तुति..

  9. यहाँ भी पधारे :-
    http://bigboss-s4.blogspot.com/

  10. Akhilesh says:

    बहुत ही ज्ञान की बाते मिलती है यहाँ पर

  11. Mahak says:

    मेरा तो नमन है इसे पढकर काशी नरेश को, भई हममें तो इतनी गजब की सहनशक्ति है नहीं की बिना बेहोश किये इस प्रकार का ऑपरेशन करवाने की सोच भी सकें ,मुझे तो अभी तक इस पर भी यकीन नहीं हो रहा है की कोई इस प्रकार से ऐसा कर सकता है या वास्तविकता में पहले ऐसा हुआ भी है लेकिन हो सकता है की हुआ हो

    आपका बहुत-२ आभार है ओशो जी के इस बहुमूल्य शब्द-संग्रह को हम सबके साथ बांटने के लिए

    महक

    आपका बहुत-२

  12. बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने ........ आभार
    शानदार प्रस्तुति .......


    पढ़िए और मुस्कुराइए :-
    सही तरीके से सवाल पूछो ...

  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

  14. अच्छा लेख

    नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं!

  15. मैंने लेख मेल से पाने के लिए रजिस्टर किया था पर मुझे लेख नहीं ....

  16. कृपया इस समस्या का समाधान करे .....

  17. बेनामी says:

    achha likha hai

    aman jeet singh,,

  18. @ बिग बॉस जी,
    आपकी समस्या जानने के बाद सब setting को जांचा गया सब ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है ...... निवेदन है कि एक बार पुनः प्रक्रिया को दोहराए

  19. यदि आप को कोई असुविधा होती है तो सूचित करे ..... धन्यवाद आपका मेरे ब्लॉग पर आने के लिए

  20. में इस प्रक्रिया को कई बार दोहरा चूका हु .... कृपया समाधान करे

  21. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

  22. कैसी अदभुत तल्लीनता थी काशी नरेश की । श्वास निश्वास को तो पांच मिनिट भी देखना मुश्किल लगता है इतना चंचल मन है । पर आप के लेख मन को आगे बढने को प्रवृत्त करते हैं ।

  23. ओशो के विचारों से अवगत कराने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं .

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