" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

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Archive for अक्तूबर 2010

29 अक& 2010

"मैं यहां इस लिये नहीं हूं कि तुम मुझे समझ सको। मैं यहां इसलिये हूं कि तुम स्वयं को समझ सको।तुम्हें अपने कृत्यों, अपने संबंधों, अपनी भावदशाओं के प्रति सजगता से जागरूक होना है: जबतुम अकेले हो तो तुम्हारा व्यवहार कैसा है, जब लोगों के साथ हो तो कैसे व्यवहार करते हो,कैसी होती है तुम्हारी प्रतिक्रिया; क्या तुम्हारी प्रतिक्रिया अतीत से प्रेरित होती है औरतुम्हारे विचार जड़...

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27 अक& 2010
26 अक& 2010

"मैं यहां तुम्हारे मुखौटे को नष्ट करने के लिये और तुम्हें तुम्हारी निजता लौटाने के लिये हूं। मैं तुम पर कोई धर्म नहीं लाद रहा। मैं तुम्हें यहां पूर्णतया निर्भार कर देने के लिये हूं - बिना किसी धर्म, बिना किसी मत के - बस एक गहरा मौन, शांति, गहराई और ऊंचाई जो सितारों तक जाती है।"...

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25 अक& 2010
24 अक& 2010

"तुम्हें बस यह चाहिये कि तुम मौन हो जाओ और अस्तित्व को सुनो। न किसी धर्म की ज़रूरत है न किसी परमात्मा की। न किसी धर्मगुरु की ज़रूरत है न किसी संस्था की। व्यक्ति में मेरा पूर्ण विश्वास है। आज तक व्यक्ति में इस तरह किसी ने विश्वास नहीं किया। तो इन सब बातों को हटाया जा सकता है। अब तुम्हारे पास बची है केवल ध्यान की अवस्था, जिसका अर्थ है पूर्ण मौन। ध्यान शब्द भी इसे बोझीला बना देता है। बेहतर है इसे सरल, निर्दोष मौन कहें।"...

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23 अक& 2010

"मैं यहां तुम्हें कोई सिद्धांत देने के लिये नहीं हूं। सिद्धांत तुम्हें आश्वस्त करता है। मैं तुम्हें भविष्य के लिये कोई वादा देने के लिये नहीं हूं -भविष्य का वादा तुम्हें सुरक्षा में ले जाता है। मैं यहां तुम्हें सजग व सचेत करने के लिये हूं। अर्थात: यहीं और अभी, उन सभी असुरक्षाओं के साथ जिन्हें हम जीवन कहते हैं; उन सभी अनिश्चितताओं के साथ जिसे हम जीवन कहते हैं; उन सभी जोखिमों के साथ जिसे हम जीवन कहते हैं।"ओशो...

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22 अक& 2010

"मैं यहां किन्हीं मुद्दों पर चर्चा करने के लिये नहीं अपितु तुम्हारे भीतर एक विशिष्ट गुणवत्तापैदा करने के लिये हूं। मैं तुम्हें कुछ समझाने के लिये नहीं बोल रहा, मेरा बोलना बसएक सृजनात्मक घटना है। मेरा बोलना तुम्हें कुछ समझाने का प्रयास नहीं वह तो तुम किताबों से भी समझ सकते हो और इस के अतिरिक्तलाखों अन्यतरीकों द्वारा यह संभव है - मैं तो यहांकेवल तुम्हें रूपांतरित करने केलिये हूं।"ओशो...

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21 अक& 2010

1937 में तिब्‍बत और चीन के बीच बोकाना पर्वत की एक गुफा में सात सौ सोलह पत्‍थर के रिकार्ड मिले है—पत्‍थर के। आकार में वे रिकार्ड है महावीर से दस हजार साल पुराने यानी आज से कोई साढ़े बारह हजार साल पुराने। बड़े आश्‍चर्य के है, क्‍योंकि वे रिकार्ड ठीक वैसे ही है जैसे ग्रामोफोन का रिकार्ड होता है। ठीक उसके बीच में एक छेद है, और पत्‍थर पर ग्रूव्‍ज है। जैसे की ग्रामोफोन के रिकार्ड पर होते है। अब तक राज नहीं खोला जा सका है कि वे किस यंत्र पर बजाये जा सकेंगे। लेकिन एक बात तो हो गई है— रूस के एक बड़े वैज्ञानिक डा. सर्जीएव ने वर्षों तक मेहनत करके यह प्रमाणित कर दिया है कि वे है तो रिकार्ड ही। किस यंत्र पर और किस सुई के माध्‍यम से वे पुनरुज्जीवित हो सकेंगे। वह अभी तय नहीं हो सका। अगर एकाध...

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20 अक& 2010

"गुरू हमेशा एक मित्र होता है लेकिन उसकी मित्रता में बिलकुल अलग सी सुगंध होती है। इसमें मित्रता कम मित्रत्व अधिक होता है। करुणा इसका आंतरिक हिस्सा होती है। वह तुम्हें प्रेम करता है क्योंकि और कुछ वह कर नहीं सकता। वह अपने अनुभव तुम्हारे साथ बांटता है क्योंकि वह देख पाता है कि तुम उसे खोज रहे हो, तुम उसके लिये प्यासे हो। वह अपने शुद्ध जल के झरने तुम्हारे लिये उपलब्ध करवाता है। वह आनंदित होता है और अनुग्रहीत होता है यदि तुम उसके प्रेम के, मित्रता के, सत्य के उपहार स्वीकार करते हो।"...

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19 अक& 2010

"लोग मुझसे पूछते हैं, "पूरा विश्व आपके विरोध में क्यों है?" विश्व मेरे विरोध में नहीं, मैं संसारविरोधी हूं, क्योंकि मैने सत्य को चुना है। और मैं वही कहूंगा जो पूर्णतःमेरा अनुभव है।मैं किसी भी तरह का समझौता नहीं करूंगा, किसी भी कारण से नहीं।"ओशो...

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18 अक& 2010

"मैं तुम्हें अपनी विचारधारा से सहमत करवाने में उत्सुक नहीं हूं - मेरी कोई विचारधारा है भी नहीं। दूसरी बात, मेरा मानना है कि किसी को परिवरतित करने का प्रयत्न ही हिंसा है, यह उसकी निजता में, उसके अनूठेपन में, उसकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना है।"...

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17 अक& 2010

आप सभी पाठको को एवं आपके परिवार को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायेंओशो रजनीश...

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16 अक& 2010

"मैं यहां किसी की भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध करने के लिये नहीं हूं। और ऐसा मैं क्यों करूं?...मैं यहां केवल अपने लिये हूं। मैं कोई मसीहा नहीं और न ही मैं यहां किसी को पाप-मुक्त करने के लिये हूं। मुझे यहां कोई धर्मयुग नहीं लाना है। ये सभी बातें घिसी-पिटी व मूढ़्तापूर्ण हैं।"...

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15 अक& 2010

परिवर्तन संसार का नियम है, और सभी को समय के साथ अपने को परिवर्तित करना होता, अतः इसी के तहत अब से इस ब्लॉग पर ओशो द्वारा कहे गए शब्द, जो कि पूरी पोस्ट के रूप में न होकर छोटी - छोटी पंक्तियों के रूप में होंगे, प्रकाशित किये जायेंगे । समय समय पर आपको पूरी पोस्ट भी पढने के लिए मिलेगी ।ऐसा इसलिए किये जा रहा है क्योंकि इस ब्लॉग पर नई पोस्ट को अपडेट होने में २-३ दिनों तक का वक्त लग जाता है । अतः ओशो द्वारा कहे गए इन शब्दों को आप ऐसा समझे जैसे कोई दैनिक विचार, बस इन विचारो को दिन में ३ या ४ बार भी प्रकाशित किया जा सकता है, इन शब्दों के साथ ओशो के चित्र प्रकाशित नहीं किये जायेंगे । पूर्व की तरह आपको नई पोस्ट भी पढने को मिलती रहेगी ।आशा है आप लोग इसको पसंद करेंगे और अपना प्यार व् सहयोग बनाये रखेंगे...

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13 अक& 2010

संत जग जीवन दास, जग जीवन को समझाने की क्षमता सब में नहीं है। जो लोग प्रेम को समझने में समर्थ है, जो उस में खो जाने को तैयार है, मिटने को तैयार है, वही उस का आनंद अनुभव कर सकेगें। शायद समझ बुझ यहाँ थोड़ी बाधा ही बन जाये। जग जीवन प्रमाण नहीं दे सकते, गीत गा सकते है और गीत भी काव्‍य के नियमों के अनुसार नहीं होगा, छंद वद्ध नहीं होगा। उसके तुक नहीं मिले होगें। शायद शब्‍द भी अटपटे हो पर यह रास्‍ता अति मधुर और सुंदर अवश्‍य हो, एक पहाड़ी रास्‍ते की तरह, जो उबड़ खाबड़ हो, कष्‍ट कांटों से भरा हो, ऊँचा नीचा हो, पर उस का सौंदर्य देखते ही बनता है। नहीं पद चाप मिलेंगे वहां मुसाफ़िरों के, पर अद्भुत होगा वह मार्ग। गांव के बिना पढ़े लिखें थे जग जीवन, गांव की सादगी, मिलेगी, सरलता मिलेगी। छंद मात्राओं...

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11 अक& 2010

1910 में जर्मनी की एक ट्रेन में एक पन्‍द्रह-सोलह वर्ष का युवक बैंच के नीचे छिपा हुआ था। उसके पास टिकट नहीं था। वह घर से भाग खड़ा हुआ है। उसके पास पैसा भी नहीं है। फिर तो बाद में वह बहुत प्रसिद्ध आदमी हुआ और हिटलर ने उसके सर पर दो लाख मार्क की घोषणा की कि जो उसका सिर काट लाये। वह तो फिर बहुत बड़ा आदमी हुआ और उसके बड़े अद्भुत परिणाम हुए, और स्टैलिन और आइंस्टीन और गांधी सब उससे मिलकर बहुत आनंदित हुए। उस आदमी का बाद में नाम हुआ—वुल्फस मैसिंग। उस दिन तो उसे कोई नहीं जानता था, 1910 में। वुल्फस मैसिंग ने अभी अपनी आत्‍म कथा लिखी है जो रूस में प्रकाशित हुई है। और बड़ा समर्थन मिला है। अपनी आत्‍मकथा उसने लिखी है—‘’अबाउट माई सैल्फ’’। उसने उसमें लिखा है। कि उस दिन मेरी जिंदगी बदल गई। उस ट्रेन...

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07 अक& 2010

काशी नरेश का एक ऑपरेशन हुआ उन्‍नीस सौ दस में। पाँच डाक्‍टर यूरोप से ऑपरेशन के लिए आए। पर काशी नरेश ने कहा कि मैं किसी प्रकार का मादक द्रव नहीं ले सकता। क्‍योंकि मेंने मादक द्रव्‍य लेना छोड़ दिया है। तो मैं किसी भी तरह की बेहोश करने वाली कोई दवा, कोई इंजेक्‍शन, वह भी नहीं ले सकता, क्‍योंकि मादक द्रव मैंने त्‍याग दिये है। न मैं शराब पीता हूं, न सिगरेट पीता हूं, मैं चाय भी नहीं पीता। तो इसलिए ऑपरेशन तो करें आप—अपेंडिक्‍स का ऑपरेशन था। बड़ा ऑपरेशन होगा कैसे? इतनी भयंकर पीड़ा होगी, और आप चीखे-चिल्‍लाए, उछलने-कूदने लगे तो बहुत मुशिकल हो जाएगी। आप सह नहीं पाएंगे। उन्‍होंने कहा कि नहीं, मैं सह पाऊंगा। बस इतनी ही मुझे आज्ञा दें कि मैं अपना गीता का पाठ करता रहूँ। काशी नरेश महाराजा श्री सर...

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05 अक& 2010

अब जैसे कि हम कहेंगे कि आज बीमारियों का इलाज हो गया है। पुराने लोगों ने इन बीमारियों के इलाज क्‍यों न बता दिये। लेकिन आप हैरान होंगे जानकर कि आयुर्वेद में या युनानी में इतनी जड़ी बूटियों का हिसाब है और इतना हैरानी का है कि जिनके पास कोई प्रयोगशालाएं न थे वे कैसे जाने सके कि यह जड़ी-बूटी फलां बीमारी पर इस मात्रा में काम करेंगी। तो लुकमान के बाबत कहानी है , क्‍योंकि कोई प्रयोगशाला तो थी नहीं, पर यह काम केवल चौथे शरीर से हो सकता था। लुकमान के बाबत कहानी है कि वह एक-एक पौधे के पास जाकर पुछता था कि बता किस-किस बीमारी में तू काम आ सकता है। अब यह कहानी बिलकुल फिजूल हो गयी आज….कोई पौधे से…क्‍या मतलब इस बात का। लेकिन अभी पचास साल पहले तक हम नहीं मानते थे कि पौधे में प्राण है—इधर पचास साल...

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