" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | बुधवार, अगस्त 11, 2010 | 6 टिप्पणियाँ


गांधी गीता को माता कहते हैं, लेकिन गीता को आत्मसात नहीं कर सके। क्योंकि गाँधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को कहाँ रखेगी ? तो गांधी उपाय खोजते हैं, वह कहते हैं कि यह जो युद्ध है, यह सिर्फ रूपक है, यह कभी हुआ नहीं । यह मनुष्य के भीतर अच्छाई और बुराई की लड़ाई है। यह जो कुरुक्षेत्र है, यह कहीं कोई बाहर का मैदान नहीं है, और ऐसा नहीं है कि कृष्ण ने कहीं अर्जुन को किसी बाहर के युद्ध में लड़ाया हो। यह तो भीतर के युद्ध की रूपक-कथा है। यह ‘पैरबेल’ है, यह एक कहानी है। यह एक प्रतीक है। गांधी को कठिनाई है। क्योंकि गांधी का जैसा मन है, उसमें तो अर्जुन ही ठीक मालूम पडे़गा। अर्जुन के मन में बड़ी अहिंसा का उदय हुआ है। वह युद्ध छोड़कर भाग जाने को तैयार है। वह कहता है, अपनों को मारने से फायदा क्या ? और वह कहता है, इतनी हिंसा करके धन पाकर भी, यश पाकर भी, राज्य पाकर भी मैं क्या करूँगा? इससे तो बेहतर है कि मैं सब छोड़कर भिखमंगा हो जाऊँ। इससे तो बेहतर है कि मैं भाग जाऊँ और सारे दु:ख वरण कर लूँ, लेकिन हिंसा में न पड़ूँ। इससे मेरा मन बड़ा कँपता है। इतनी हिंसा अशुभ है।

कृष्ण की बात गांधी की पकड़ में कैसे आ सकती हैं ? क्योंकि कृष्ण उसे समझाते हैं कि तू लड़। और लड़ने के लिए जो-जो तर्क देते हैं, वह ऐसा अनूठा है कि इसके पहले कभी भी नहीं दिया गया था। उसको परम अहिंसक ही दे सकता है, उस तर्क को।

कृष्ण का यह तर्क है कि जब तक तू ऐसा मानता है कि कोई मर सकता है, तब तक तू आत्मवादी नहीं है। तब तक तुझे पता ही नहीं है कि जो भीतर है, वह कभी मरा है, न कभी मर सकता है। अगर तू सोचता है कि मैं मार सकूँगा, तो तू बड़ी भ्रांति में है, बड़े अज्ञान में है। क्योंकि मारने की धारणा ही भौतिकवादी की धारणा है। जो जानता है, उसके लिए कोई मरता नहीं है। तो अभिनय है- कृष्ण उससे कह रहे हैं-मरना और मारना लीला है, एक नाटक है।

इसलिए कृष्ण को जिन्होंने पूजा भी है, जिन्होंने कृष्ण की आराधना भी की है, उन्होंने भी कृष्ण के टुकड़े-टुकड़े करके किया है। सूरदास के कृष्ण कभी बच्चे से बड़े नहीं हो पाते। बड़े कृष्ण के साथ खतरा है। सूरदास बर्दाश्त न कर सकेंगे। वह बाल कृष्ण को ही..क्योंकि बालकृष्ण अगर गाँव की स्त्रियों को छेड़ आता है तो हमें बहुत कठिनाई नहीं है। लेकिन युवा कृष्ण जब गाँव की स्त्रियों को छेड़ देगा तो फिर बहुत मुश्किल हो जाएगा। फिर हमें समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि हम अपने ही तल पर तो समझ सकते हैं। हमारे अपने तल के अतिरिक्त समझने का हमारे पास कोई उपाय भी नहीं है। तो कोई है, जो कृष्ण के एक रूप को चुन लेगा; कोई है, जो दूसरे रूप को चुन लेगा। गीता को प्रेम करनेवाले भागवत की उपेक्षा कर जाएँगे, क्योंकि भागवत का कृष्ण और ही है। भागवत को प्रेम करनेवाले गीता की चर्चा में पड़ेगे, क्योंकि कहाँ राग-रंग और कहाँ रास और कहाँ युद्ध का मैदान ! उनके बीच कोई ताल-मेल नहीं है। शायद कृष्ण से बड़े विरोधों को एक-साथ पी लेनेवाला कोई व्यक्तित्व ही नहीं है। इसिलए कृष्ण की एक-एक शक्ल को लोगों ने पकड़ लिया है। जो जिसे प्रीतिकर लगी है, उसे छांट लिया है, बाकी शक्ल को उसने इंकार कर दिया है।

6 पाठको ने कहा ...

  1. Usman says:

    achha likha hai ....... dhanyavad

  2. Basant Sager says:

    यह भी इतिहास की एक अनूठी घटना है कि ओशो एक ही समय में गाँधी और कृष्ण की गीता की व्याख्या कर रहे हैं। ........ अच्छी प्रस्तुति

  3. बेनामी says:

    how can i read this in english

  4. ओशो भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं,एक महान विद्वान, स्पष्ट चिंतन वाले और नये विचारों के जन्मदाता हैं .........................................अच्छी प्रस्तुति

  5. थीम, पोस्ट और फोटो सभी कुछ तो सुन्दर hai!

  6. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

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