दो तीन बातें करना चाहूँगा। एक तो जातीय दंगे को साधारण मानना शुरू करना चाहिए। उसे जातीय दंगा मानना नहीं चाहिए, साधारण दंगा मानना चाहिए। और जो साधारण दंगे के साथ व्यवहार करते हैं वही व्यवहार उस दंगे के साथ भी करना चाहिए, क्योंकि जातीय दंगा मानने से कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं, इसलिए जातीय दंगा मानने की जरूरत नहीं है। जब एक लड़का एक लड़की को भगाकर ले जाता है, वह मुसलमान हो कि हिन्दू, कि लड़की हिन्दू है कि मुसलमान है-इस लड़के और लड़की के साथ वही व्यवहार किया जाना चाहिए, जो कोई लड़का किसी लड़की को भगा कर ले जाये, और हो। इसको जातीय मानने का कोई कारण नहीं है।
जैसे चीन है-चीन में आप जातीय दंगा नहीं करवा सकते। कोई उपाय नहीं है। और कोई दंगे नहीं कर रहा ! जातीय दंगे नहीं करवा सकते चीन में। उसका कारण है कि कभी-कभी एक-एक घर में पांच-पांच रिलिजन के लोग हैं। दंगा करवाइए किससे, भड़काइएगा किसको ? बाप कंफ्यूशियस को मानता है, पत्नी, उसकी मां जो है, लाओत्से को मानती है, बेटा मुहम्मद को मानता है कोई बुद्धिस्ट है घर में, एक लड़की है-बहू जो है वह। तो चीन में एक-एक घर में कभी-कभी पांच-पांच धर्म के आदमी भी हैं। इसकी वजह से कंवर्शन नहीं होता। अगर लड़का हिन्दू है और स्त्री मुसलमान है, तो पत्नी मुसलमान होना जारी नहीं रख सकती। मेरा मतलब समझे न आप ? जब एक घर में पांच धर्मों के लोग हों, तो आप अलग करवाइगा कैसे ? किसके साथ दंगा करवाइगा ? डिमार्केशन मुश्किल हो जाता है। हिन्दुस्तान में डिमार्केशन आसान है-यह हिन्दू है, यह मुसलमान है, यह साफ मामला है। मुसलमान अगर मरता है तो मेरी न तो पत्नी मरती है, न मेरी बहन मरती है, कोई नहीं मरता है, मुसलमान मरता है।
और हम, जो इस मुल्क में जातीय दंगों को खत्म करना चाहते हैं, इतनी ज्यादा जातीयता की बात करते हैं कि हम उसे रिकग्रीशन देना शुरू कर देते हैं। इसलिए पहली बात तो यह है कि जातीयता को राजनीति के द्वारा किसी तरह का रिकग्रीशन नहीं होना चाहिए। राज्य की नजरों में हिन्दू या मुसलमान का कोई फर्क नहीं होना चाहिए।
लेकिन हमारा राज्य खुद गलत बातें करता है। हिन्दू कोड़ बिल बनाया हुआ है, जो कि सिर्फ हिन्दुओं पर लागू होगा, मुसलमान पर लागू नहीं होगा ! यह क्या बदतमीजी की बातें हैं ? कोई भी कोड़ हो तो पूरे नागरिकों पर लागू होना चाहिए। अगर ठीक है तो सब पर लागू होना चाहिए, ठीक नहीं है तो किसी पर लागू नहीं होना चाहिए। लेकिन जब आपका पूरा राज्य भी हिन्दुओं को अलग मानकर चलता है, मुसलमान को अलग मानकर चलता है, तो किस तल पर यह बात खत्म होगी ?
तो पहले तो हिन्दुस्तान की सरकार को साफतौर से तय कर लेना चाहिए कि हमारे लिए नागरिक के अतिरिक्त किसी का अस्तित्व नहीं है। और अगर ऐसा मुसलमान गुंडागिरी करता है तो एक नागरिक गुंडागिरी कर रहा है। जो उसके साथ व्यवहार होना चाहिए, वह होगा। यह मुसलमान का सवाल नहीं है। राज्य की नजरों से हिन्दू और मुसलमान का फासला खत्म होना चाहिए, पहली बात।
दूसरी बात-कि हिन्दू मुसलिम के बीच शांति हो, हिन्दू मुस्लिम का भाई-चारा तय हो, इस तरह की सब कोशिश बंद करनी चाहिए। यह कोशिश खतरनाक है। इसी कोशिश ने हिन्दुस्तान पाकिस्तान को बंटवाया। क्योंकि जितना हम जोर देते हैं कि हिन्दू मुस्लिम एक हों, उतना ही हर बार दिया गया जोर बताता है कि वे एक नहीं हैं। यह हालत वैसी है जैसे कि कोई आदमी किसी को भूलना चाहता हो, और क्योंकि भूलना चाहता है इसलिए भूलने के लिए हर बार याद करता है। और हर बार याद करता है तो उसकी याद मजबूत होती चली जाती है।
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| गुरुवार, अगस्त 05, 2010 |
11
टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
एक बहुत ही उम्दा लेख है आपका , ये उन लोगो को पढना चाहिए जो चुनाव में वोट देते हुए ये नहीं देखते की ये राजनेता ही समाज को हिन्दू- मुस्लिम और जातिवाद के बीच बाट रहे है . जारी रखे
india mein jativad ka sabse bada karan politics hai . achha laga aapka blog.
Kya aap bata sakte hai ki hindi me kaise likha jaye, mujhe hindi type nahi aati .
..वाह..
patanahi ye baat janta kab samjegi .
kya bata sakte hai ki hindi main kaise likhe
सही कहा आपने मेरा मतलब ओशो ने , पता नही सर्कार में बैठे लोग ये कभी समझेगे भी या नहीं
आप सभी का धन्यवाद
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश
सही कहा ओशो ने ... मैँने भी कही बार देखा है कुछ लोग मैल मिलाप की बातेँ करते हैँ पर जब उनके बच्चेँ जब अंतरजातिय विवाह की बात करते है ....तब उनको मुश्किल होती है और वह भड़क उठते है .... ।
आप बहुत बढिया कार्य कर रहे हैं। लेकिन जब आपने ओशो के जन्म स्थान का जिक्र किया ही है तो कम से कम सही जानकारी लिखिए। ओशो की प्रारंभिक कर्मभूमि जबलपुर भले रही है पर उनका जन्म स्थान तो वह नहीं ही है।
बिल्कुल सही बात है इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद जिस तरह सिख शब्द पर ज़ोर दिया गया वो दंगो का एक मुख्य कारण बना !क्या मीडीया ने गाँधीजी की हत्या के बाद उतना ही ज़ोर मराठी हत्यारे पे दिया था? क्या हत्यारों का भी कोई मज़हब होता है ?