राम को कितने दिन हुए, कोई राम पैदा नहीं होता। हाँ, रामलीला के राम बहुत पैदा हुए। रामलीला के राम बनना शोभापूर्ण है? रामलीला के राम बनना गरिमापूर्ण है? यह भी हो सकता है कि रामलीला का राम इतना कुशल हो जाये बार-बार रामलीला करते हुए कि असली राम से अगर प्रतिस्पर्धा करवाई जाये तो असली राम हार जाये।
यह भी हो सकता है। क्योकि असली राम से भूल भी होती है, चूक भी होती है, नकली राम से कोई भूल-चूक नहीं होती, नकली आदमी भूल-चूक करता ही नहीं। क्योकि उसे तो सब पार्ट याद करके करना होता है। राम को तो बेचारे को पाठ याद करने की सुविधा नहीं थी, सीता खो गयी तो उन्हें कोई बताने वाला नहीं था की अब किस तरह छाती पीटो और क्या कहो। जो हुआ होगा वह सहज हुआ होगा। वह स्पोंटेनिय्स था। कही कोई लिखी हुई किताब से याद किया हुआ नहीं था, इसलिए भूल-चूक भी हो सकती है।
लेकिन रामलीला का राम बिलकुल कुशल होता है, उससे भूल-चूक नहीं होती, उसका सब तैयार है। सब डायलोग, सब भाषण, सब तैयार है, सब पहले से निश्चित है। और फिर चार-चार बार मौका मिलता है उसको, राम को तो एक ही बार मौका मिला था, रामलीला के राम को तो हार साल मौका मिलता है। तो यह इतना कुशल हो जाता है कि अगर दोनों राम को लाकर आमने सामने खड़े कर दिए जाये तो असली राम की तो कोई फिकर ही न करे और नकली राम के लोग पैर छुए।
ऐसा एक दफा हो भी गया। चार्ली चेपलिन का नाम तो सुना होगा। वह एक हंसोड़ अभिनेता था। उसकी पचासवी वर्षगाठ बड़ी जोर शोर से मनाई गयी थी। और उस वर्षगाठ पर एक आयोजन किया गया सारे यूरोप और अमेरिका में। अभिनेताओ को निमंत्रित किया गया कि वे चार्ली चेपलिन का अभिनय करे। ऐसे सौ अभिनेता सारी दुनिया से चुने जायेंगे। प्रतियोगिता होगी नगरो- नगरो में। और फिर अंतिम प्रतियोगिता होगी। और उस अंतिम प्रतियोगिता में तीन व्यक्ति चुने जायेंगे जो चार्ली चेपलिन का अभिनय करने में सर्वाधिक कुशल होंगे। उन तीनो को पुरस्कार दिया जायेगा।
प्रतियोगिता हुई, हजारो अभिनेताओ ने भाग लिया, एक से एक अभिनेता, चार्ली चेपलिन बना, बनने की कोशिस की। चार्ली चेपलिन के मन में हुआ कि में भी किसी दुसरे के नाम से फार्म भरकर सम्मलित क्यों न हो जाऊ? मुझे तो प्रथम पुरस्कार मिल ही जाने वाला है, में खुद ही चार्ली चेपलिन हूँ, भला मेरा धोखा और कौन दे सकेगा। और जब बात भी खुल जाएगी, तो एक मजाक हो जाएगी। में तो हंसोड़ अभिनेता हूँ ही, लोग कहेंगे खूब मजाक की इस आदमी ने। वह एक छोटे से गाँव से फार्म भरकर सम्मलित हो गया।
अंतिम प्रतियोगिता हुई, उसमे वह सम्मलित था। सौ लोगो में वह भी एक था, किसी को पता नहीं, वहा तो सौ चार्ली चेपलिन एक से मालूम होते थे, एक सी मूंछ, एक सी चाल, एक सी ढाल, वे सब ही चार्ली चेपलिन थे। प्रतियोगिता हुई, पुरस्कार बंटे, मजाक भी खूब हुई, लेकिन चार्ली चेपलिन ने जो सोची थी वह मजाक नहीं हुई, मजाक उलटी हो गयी। चार्ली चेपलिन को दूसरा स्थान मिल गया। कोई और उसका ही पार्ट करने में नंबर एक आ गया। और जब पता चला दुनिया को तो, दुनिया हैरान रह गयी कि हद हो गयी यह बात तो। चार्ली चेपलिन खुद मौजूद था प्रतियोगिता में और उसे नंबर दो का पुरस्कार मिला।
तो हो सकता महावीर के अनुयायी महावीर को हरा दे, बिलकुल हरा सकते है क्योकि अनुयायी एक नक़ल होता है, असल नहीं। लेकिन नकली आदमी हरा भी दे तो नकली आदमी, नकली आदमी ही रहेगा। उसके भीतर कोई आनंद, कोई विकास, कोई प्रफुल्लता, कोई पूर्णता उपलब्ध नहीं हो सकती।
अभी गाँधी हमारे मुल्क में थे, गाँधी के साथ हजारो नकली गाँधी इस मुल्क में पैदा हो गए थे। उन्होंने मुल्क को डुबो दिया, उन नकली गांधियो ने मुल्क को डुबो दिया। गाँधी जैसी खादी पहनने लगे, गाँधी जैसा चरखा चलने लगे। उन्होंने डुबो दिया इस मुल्क को, जो नकली गाँधी पैदा ही गए थे, इस मुल्क के हत्यारे साबित हुए, मर्डरर्स साबित हुए। डुबो दिया इस मुल्क को, डुबोये जा रहे है रोज। डुबोयेंगे ही। क्योकि नकली आदमी अन्दर से कुछ और होता है और बाहर कुछ और। असली आदमी जो भीतर होता है, वही बाहर भी।
असली आदमी बनना है तो किसी आदर्श को थोपने की कोशिश भूल कर भी मत करना। अन्यथा आप एक नकली आदमी बन जायेंगे और आपका जीवन तो गलत हो ही जायेगा, आपके जीवन की गलती दुसरो तक को नुकसान पहुचायेगी। समाज तब एक धोखा हो जायेगा, एक प्रपंच हो जायेगा। पूरा समाज एक फ्रोड हो जायेगा। क्योकि जब सब नकली आदमी होते है तो बड़ी मुश्किल होती है।
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| गुरुवार, सितंबर 30, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
jnaaab kyaa khun osho bhaayi hi shi likhne men jo sli nqli kaa raam se gandhi tk frq btaaya he uska jvaab nhin stytaa yhi he lekin bhaayi sch kdva hta he or log ise kese pchaa paayenge meri smjh se baahr he. akahtar khan akela kota rajsthan
सही कह रहे हैं कि असली आदमी बनना है तो किसी आदर्श को थोपने की कोशिश भूल कर भी मत करना। असली आदमी का तो जीवन स्वयं ही आदर्श होता है।
असली आदमी बनना है तो किसी आदर्श को थोपने की कोशिश भूल कर भी मत करना। अन्यथा आप एक नकली आदमी बन जायेंगे और आपका जीवन तो गलत हो ही जायेगा, आपके जीवन की गलती दुसरो तक को नुकसान पहुचायेगी।
बढ़िया शब्द कहे है ओशो ने .....
क्योकि असली राम से भूल भी होती है, चूक भी होती है, नकली राम से कोई भूल-चूक नहीं होती, नकली आदमी भूल-चूक करता ही नहीं। क्योकि उसे तो सब पार्ट याद करके करना होता है। राम को तो बेचारे को पाठ याद करने की सुविधा नहीं थी,
बढ़िया शब्द कहे है ओशो ने .....
अरे वाह बहुत बढ़िया लेख लिखे है .....
क्या करे .... चुरा लिया जाये क्या इसे भी .....
चलिए चुरा ही लेते है......
मन नहीं माना .... पर चोरी करनी पड़ी
यहाँ देखे :--
http://chorikablog.blogspot.com/2010/09/blog-post_3878.html
aur gahraaiyaan ab bakhsh n hasrat mujhko
kitne saagar to samete hai ye saaghar meraa
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
sahi hai ..jab bhi bharat me koi sakhs udtha hai ...tab baaki sab uske kermo ki nakal chod ker uske chale ,kapde aadi ki nakal suru ker dete hai ya uski photo laga ker poja kerne legte hai
jaise ram
अभी गाँधी हमारे मुल्क में थे, गाँधी के साथ हजारो नकली गाँधी इस मुल्क में पैदा हो गए थे। उन्होंने मुल्क को डुबो दिया, उन नकली गांधियो ने मुल्क को डुबो दिया।
एक दम सही बात कही है ...
आभार आप का इन अमृत वचनों से परिचय करने के लिए ....... पर एक बात समझ नहीं आई कि आप अपनी पहचान सार्वजानिक क्यों नहीं करते है ......कोई बुरा काम नहीं कर रहे आप फिर छुपने की जरुरत क्या है ...
बढ़िया लेख लिखा है आपने ...आभार
nice article likha hai ,,,,,
aman jeet singh,,
@ बंटी जी
आभार आप का कि आपने मेरे इस प्रयास को अपने ब्लॉग पर भी लगाया ... भले ही चुराकर .... आप इस ब्लॉग से कोई भी सामग्री ले सकते है ...आपको चुराने की कोई आवशयकता नहीं है .....
@ आचार्य सुशील अवस्थी "प्रभाकर" जी,
आभार आपका इस ब्लॉग पर आने के लिए ..... नाम में क्या रखा है, मेरा मकसद केवल ओशो के शब्दों का प्रचार-प्रसार करना है .....
बहुत बढ़िया सामग्री. प्रशंसनीय. कबीर से शुरूआत करता हूँ
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में लेटा ।
एक राम का सकल पसारा, एक राम इनहूँ ते न्यारा ।
हकीकत है ओशो की यह साफगोई . एक पुराना लोकप्रिय फ़िल्मी गीत याद आ रहा है -
दो जासूस करें महसूस
दुनिया बड़ी खराब है ,
कौन है सच्चा ,कौन है झूठा
हर चहरे पे नकाब है .
बहरहाल एक अच्छा और सच्चा आलेख है यह . सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार .
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका, मनोज कुमार,की प्रस्तुति राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
राम का आदर्श हो , या फिर गांधी का .....क्या वो फरक है ओशो के आदर्श से ?
अच्छी प्रस्तुति।
जजों ने माना कि 22 दिसम्बर 1949 की रात को बाबरी मसजिद में राम की मूर्ति कोई रख गया। कौन रख गया ,कैसे रख गया ,इसका ब्यौरा एफआईआर में उपलब्ध है और जज भी मानते हैं बाबरी मसजिद में उपरोक्त तारीख को ये मूर्तियां रखी गयीं । सवाल यह है कि ये मूर्तियां वैध रूप में जब नहीं रखी गयीं तो फिर इन्हें हटाने का निर्णय माननीय जजों ने क्यों नहीं लिया ? जजों ने सैंकड़ों साल पुरानी बाबरी मसजिद को गैर-इस्लामिक मान लिया, लेकिन चोरी से मसजिद में जाकर राम की मूर्ति को रखे जाने को गैर हिन्दू धार्मिक हरकत नहीं माना। राम मंदिर को अवैध नहीं माना ? यह जजों की खुली हिन्दुत्ववादी पक्षधरता है।
यह फेसला हिन्दुत्ववादी पक्षधरता की मिसाल है
जजमेंट का यह बिंदु भड़काने वाला है और इसको सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए। साथ ही यह मुसलमानों के निजी कानूनों में खुला हस्तक्षेप है। कोई इमारत मसजिद है या नहीं यह फैसला भारतीय अदालतें नहीं कर सकतीं इसका फैसला मुसलमान और उनके धार्मिक संस्थान ही कर सकते हैं। बाबरी मसजिद का स्वामित्व सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास है । मसजिद के मालिक कम से कम हिन्दू नहीं हो सकते। मंदिर के मालिक हिन्दू हो सकते हैं। मसजिद के मालिक के रूप में कानूनन वक्फ बोर्ड को ही अधिकार हैं। मुसलमान ही मसजिदों की देखभाल करते रहे हैं। विवादित अंश को पढ़ें-
Whether the disputed building was a mosque? When was it built? By whom?
The disputed building was constructed by Babar, the year is not certain but it was built against the tenets of Islam. Thus, it cannot have the character of a mosque.
ओशो के वचनों से तो इन्सान चाहे तो भी असहमत नहीं हो सकता.....
bahut achchha likha aapne,osho ki vichardhara sammaniy hai.thanx for reading my blog n commenting on it.ab samay aa gaya hai naqliyon se saavdhaan rahne ka
प्रेरणादायी लेख .
लेकिन रामलीला का राम बिलकुल कुशल होता है, उससे भूल-चूक नहीं होती, उसका सब तैयार है। सब डायलोग, सब भाषण, सब तैयार है, सब पहले से निश्चित है। और फिर चार-चार बार मौका मिलता है उसको, राम को तो एक ही बार मौका मिला था, रामलीला के राम को तो हार साल मौका मिलता है। तो यह इतना कुशल हो जाता है कि अगर दोनों राम को लाकर आमने सामने खड़े कर दिए जाये तो असली राम की तो कोई फिकर ही न करे और नकली राम के लोग पैर छुए।
मतलब हम जो हैं वही बने रहें किसी और की नकल न करें । प्रेरणा तो ले सकते हैं ना ।
बहुत बढ़िया और प्रेरणादायी लेख! सुन्दर प्रस्तुती!
हॉट सेक्शन अब केवल अधिक 'पढ़े गए' के आधार पर कार्य करेगा
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युवराज737 जी,
अगर इस साईट पर आकर आपका समय बर्बाद होता है तो आप से विनम्र निवेदन है की आप अपना समय बर्बाद न करे ...........
रही बात लेख में कांट- छांट की तो ये लेख १७९ प्रष्ट का है क्या आप इसे एक बार में पूरा पढ़ पाएंगे ?
आभार आप सभी पाठको का .........
kya kahein ham...?
mister OSHO..
aap apne blog par kuchh modiretion lagaa lijiye...
aapka naam kaafilambe sambe samay tak liyaa jaane waalaa hai...
आभार इस प्रस्तुति का.
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश