नसीरुद्दीन के जीवन में एक कहानी है। नसीरुद्दीन का गधा खो गया है। वह उसकी संपति है, सब कुछ। सारा गांव खोज डाला, सारे गांव के लोग खोज-खोजकर परेशान हो गए, कहीं कोई पता नहीं चला। फिर लोगों ने कहा ऐसा मालूम होता है कि किसी तीर्थ यात्रियों के साथ निकल रहे है, तीर्थ का महीना है। और गधा दिखाता है कि कहीं तीर्थ यात्रियों के साथ निकल गया, गांव में तो नहीं है। गांव के आस-पास भी नहीं है, सब जगह खोज डाला गया। नसीरुद्दीन से लोगों ने कहा, अब तुम माफ करो, समझो की खो गया, अब वह मिलेगा नहीं। नसीरुद्दीन ने कहा कि मैं आखिरी अपाय और कर लू। वह खड़ा हो गया, आँख उसने बंद कर ली। थोड़ी देर में वह झुक क्या चारों हाथ-पैर से, और उसने चलना शुरू कर दिया। और वह उस मकान का चक्कर लगाकर, और उस बग़ीचे का चक्कर लगाकर उस जगह पहुंच गया जहां एक खड्डे में उसका गधा गिर पडा था। लोगों ने कहा, नसीरुद्दीन हद कर दी तुम्हारी खोज ने, यह तरकीब क्या है। उसने कहा मैंने सोचा कि जब आदमी नहीं खोज सका, तो मतलब यह है कि गधे की कुंजी आदमी के पास नहीं है।
मैंने सोचा कि मैं गधा बन जाऊँ। तो मैंने अपने मन में सिर्फ यह भावना की कि मैं गधा हो गया। अगर मैं गधा होता तो कहां जाता खोजने, गधे को खोजने कहां जाता। फिर कब मेरे हाथ झुककर जमीन पर लग गए, और कब मैं गधे की तरह चलने लगा। मुझे पता ही नहीं चला। कैसे मैं चलकर वहां पहुंच गया, वह मुझे पता नहीं। जब मैंने आँख खोली तो मैंने देखा, मेरा गधा खड्डे में पडा हुआ है।
नसीरुद्दीन तो एक सूफी फकीर है। यह कहानी तो कोई भी पढ़ लेगा और मजाक समझकर छोड़ देगा। लेकिन इसमें एक कुंजी है— इस छोटी सी कहानी में। इसमें कुंजी है खोज की। खोजने का एक ढंग वह भी है। और आत्मिक अर्थों में तो ढंग वही है। तो प्रत्येक तीर्थ की कुंजियां है। यंत्र है। और तीर्थों का पहला प्रयोजन तो यह है कि आपको उस आविष्ठधारा में खड़ा कर दें जहां धारा वह रही हो और आप उसमें बह जाएं।
इसलिए सदा बहुत सी चीजें गुप्त रखी गयी है। गुप्त रखने का और कोई कारण नहीं था, किसी से छिपाने का कोई और कारण नहीं था। जिसको हम लाभ पहुंचाना चाहते है उनको नुकसान पहुंच जाए तो कोई अर्थ नहीं। तो वास्तविक तीर्थ छिपे हुए और गुप्त है। तीर्थ छिपे हुए और गुप्त है। तीर्थ जरूर है, पर वास्तविक तीर्थ छिपे हुए, गुप्त है। करीब-करीब निकट है उन्हीं तीर्थों के, जहां आपके फाल्स तीर्थ खड़े हुए है। और जो फाल्स तीर्थ है, वह जो झूठे तीर्थ है, धोखा देने के लिए खड़े किए गए है। वह इसलिए खड़े किए गए है। कि गलत आदमी ने पहुंच जाए। ठीक आदमी तो ठीक पहुंच ही जाता है। और हरेक तीर्थ की अपनी कुंजियों है। इसलिए अगर सूफियों का तीर्थ खोजना हो तो जैनियों के तीर्थ की कुंजी से नहीं खोजा जा सकता। अगर सूफियो का तीर्थ खोजना है तो सूफियों की कुंजियों है, और उन कुंजियों का उपयोग करके तत्काल खोजा जा सकता है। तत्काल...
एक विशेष यंत्र जैसे कि तिब्बतियों के होते है, जिसमें खास तरह की आकृतियां बनी होती है— वे यंत्र कुंजिया है। जैसे हिंदुओं के पास भी यंत्र है। और हजार यंत्र है। आप घरों में भी शुभ लाभ बनाकर आंकडे लिखकर और यंत्र बनाते है। बिना जाने कि किस लिए बना रहे है। क्यों लिख रहे है यह, आपको खयाल भी नहीं हो सकता है कि आप अपने मकान में एक ऐसा यंत्र बनाए हुए है जो किसी तीर्थ की कुंजी हो सकती है। मगर बाप दादे आपके बनाते रहते है और आप बनाए चले जा रहे है।
एक विशेष आकृति पर ध्यान करने से आपकी चेतना विशेष आकृति लेती है। हर आकृति आपके भीतर चेतना को आकृति देती है। जैसे कि अगर आप बहुत देर तक खिड़की पर आँख लगाकर देखते रहें, फिर आँख बंद करें तो खिड़की का निगेटिव चौखटा आपकी आँख के भीतर बन जाता है— वह निगेटिव है। अगर किसी यंत्र पर आप ध्यान के बाद आपको भीतर निर्मित होते है। वह विशेष ध्यान के बाद आपको भीतर दिखायी पड़ना शुरू हो जाता है। और जब वह दिखाई पड़ना शुरू हो जाए, तब विशेष आह्वान करने से तत्काल आपकी यात्रा शुरू हो जाती है।
दूसरी बात— मनुष्य के जीवन में जो भी है वह सब पदार्थ से निर्मित है, सिर्फ पदार्थ से निर्मित है— मनुष्य के जीवन में जो है। सिर्फ उसकी आंतरिक चेतना को छोड़कर। लेकिन आंतरिक चेतना का तो आपको कोई पता नहीं है। पता तो आपको सिर्फ शरीर का है, और शरीर के सारे संबंध पदार्थ से है। थोड़ी-सी अल्केमी समझ लें तो दूसरा तीर्थ का अर्थ ख्याल में आ जाए।
अल्क मिस्ट की प्रक्रियाएं है, वह सब गहरी धर्म की प्रक्रियाएं हे। अब अल्क मिस्ट कहते है कि अगर पानी को एक बार बनाया जाए और फिर पानी बनाया जाए, फिर भाप बनाया जाए उसको, फिर पानी बनाया जाए— ऐसा एक हजार बार किया जाए तो उस पानी में विशेष गुण आ जाते है। जो साधारण पानी में नहीं है। इस बात को पहले मजाक समझा जात था। क्योंकि इससे क्या फर्क पड़ेगा, आप एक दफा पानी को डिस्टिल कर लें फिर दोबारा उस पानी को भाप बनाकर डिस्टिल्ड़ करलें। फिर तीसरी बार, फिर चौथी बार, क्या फर्क पड़ेगा। लेकिन पानी डिस्टिल्ड़ ही रहेगा। लेकिन अब विज्ञान ने स्वीकार किया है कि इसमें क्वालिटी बदलती है।
अब विज्ञान ने स्वीकार किया कि वह एक हजार बार प्रयोग करने पर उस पानी में विशिष्टता आ जाती है। अब वह कहां से आती है अब तक साफ नहीं है। लेकिन वह पानी विशेष हो जाता है। लाख बार भी उसको करने के प्रयोग है और तब वह और विशेष हो जाता है। अब आदमी के शरीर में हैरान होंगे जानकर आप, कि पचहत्तर प्रतिशत पानी हे। थोड़ा बहुत नहीं पचहत्तर प्रतिशत, और जो पानी है उस पानी को कैमिकल ढंग वहीं है। जो समुद्र के पानी का है। इस लिए नमक के बिना आप मुश्किल में पड़ जाते हे।
आपके शरीर के भीतर जो पानी है उसमें नमक की मात्रा उतनी ही होनी चाहिए जितनी समुद्र के पानी में है। अगर इस पानी की व्यवस्था को भीतर बदला जा सके तो आपकी चेतना की व्यवस्था को बदलने में सुविधा होती है। तो लाख बार डिस्टिल्ड़ किया हुआ पानी अगर पिलाया जा सके तो आपके भीतर बहुत सी वृतियों में एकदम परिर्वतन होगा। अब यह अल्क मिस्ट हजारों प्रयोग ऐसे कर रहे थे। अब एक लाख दफा पानी को डिस्टिल्ड़ करने में सालों लग जाते है। और एक आदमी चौबीस घंटे यही काम कर रहा था।
इसके दोहरे परिणाम होते है। एक तो उस आदमी का चंचल मन ठहर जाता था। क्योंकि यह ऐसा काम था। जिसमें चंचल होने का उपाय नहीं था। रोज सुबह से सांझ तक वह यही कर रहा था। थक कर मर जाता था। और दिन भर उसने किया क्या, हाथ में कुल इतना है कि पानी को उसने पच्चीस दफा डिस्टिल्ड़ कर लिया।
वर्षों बीत जाते, वह आदमी पानी ही डिस्टिल्ड़ करता रहता। हमें सोचने में कठिनाई होगी, पहले थोड़े दिन में हम ऊब जाएंगे, ऊबेंगे तो हम बंद कर देंगे। यह मजे की बात है जब जहां भी ऊब आ जाए वहीं टर्निंग प्वाइंट होता है। अगर आपने बंद कर दिया तो आप अपनी पुरानी स्थिति में लौट जाते है। और अगर जारी रखा तो आप नयी चेतना को जनम दे लेते हे।
बढ़िया लेख है .....
aman jeet singh,,
एक बहुत ही रोचक और उछ कोटि का , दर्शन देता हुआ सा आलेख
बहुत ही गूढ़ जानकारी मिली, में इससे कभी प्रभावित हुआ
जानकारी बांटने के लिए दिल से आभार
आप घरों में भी शुभ लाभ बनाकर आंकडे लिखकर और यंत्र बनाते है। बिना जाने कि किस लिए बना रहे है। क्यों लिख रहे है यह, आपको खयाल भी नहीं हो सकता है कि आप अपने मकान में एक ऐसा यंत्र बनाए हुए है जो किसी तीर्थ की कुंजी हो सकती है। मगर बाप दादे आपके बनाते रहते है और आप बनाए चले जा रहे है।
सही कहा ..
बढ़िया जानकारी दी .... आभार...
बहुत ग़ूढ ... गहरी बात को सहज ही लिख रहे हैं आप ... धन्यवाद ...
कितनी बढ़िया बात कही है आपने,
वो भी बहुत ही साधारण शब्दों में,
लेकिन एक बात समझ में नहीं आती
की जब आप ओशो के शब्दों का
प्रचार प्रसार कर ही रहे है तो
आप स्वयं सामने क्यों नहीं आते है ........
... prabhaavashaalee post !!!
बहुत ही अच्छा लेख है ....... मंगल कम्नाये कि आप हमेशा ऐसा ही प्रभावशाली लिखते रहे ....
बढ़िया लेख है!
You are sharing my beloved master's words in a nice way.can i know your name please.
लेख का पहला भाग बहुत ही ज़बरदस्त और कमाल का है ,सचमुच में मुल्ला नसीरुद्दीन का तरीका बेहद नायाब और जीवन की कुंजी को प्रदान करने वाला लगा
आपका धन्यवाद इन बातों को हम तक पहुंचाने के लिए
महक
लेख वाकई बहुत अच्छा है मुझे भी काफी पसंद आया सच में मुल्ला नसरुद्दीन ने जो नुस्खा अपनाया वो काबिले तारीफ है.
और एक बात मै आपसे यह भी जानना चाहूँगा अपने यह template कही से प्राप्त किया या बनाया और background भी
http://wwww.jakhira.blogspot.com
अच्छी अच्छी बातें कही हैं जी आपने पर अपना जीवन तो बिना किसी कुंजी / यंत्र के भी आज तक बढ़िया ही चला आ रहा है :-) कभी कभी सोचता हूं कि अगर अल्केमिस्टों की लोहे से सोना बनाने की बातें भी सही होतीं तो आज दसियों बेचारे मज़दूर दक्षिणी अमरीका की खदान में आपने निकाले जाने की प्रतीक्षा न कर रहे होते.
आप मानसिक शांति बांच रहे हैं. धन्यवाद.
intresting!
बहुत सटीक बात कही है ...चिह्नों पर ध्यान लगने से भी आत्मिक उर्जा बढती है ..हर एक तीर्थ कि अपनी कुंजी है ...सार्थक लेख
अध्यात्मिक जानकारी देता बहुत ही सार्थक लेख। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो ............ कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
मैं तो बहुत साधारण बुद्धी वाला मनुष्य हूं। कोई यंत्र-तंत्र नहीं जानता और समझता, गूढ़ दर्शन की बातों की समझ और ज्ञान नहीं रखता। बस इतना जानता हूं कि मैं अपने पापों में फंसा और बेचैन था, मेरा कोई भी प्रयास मुझे पापों से मुक्ति देने और पापों की बेचैनी को दूर करने में कारगर नहीं हुआ।
बहुत साधारण विश्वास के साथ प्रभु यीशु को पुकारा, पापों का अंगीकार किया, उसके नाम से उनके लिये पश्चाताप किया और उसने मेरे सब पापों का बोझ मुझ पर से हटा कर अपनी शांति और अपना जीवन मुझे दिया, मोक्ष और मुक्ति मिली, मेरे किसी कर्मों के द्वारा नहीं परन्तु केवल प्रभु यीशु के अनुग्रह के द्वारा; जैसा उसका वायदा है: "हे सब परिश्र्म करने वालों और [पाप के] बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्रम दूंगा।" (मती ११:२८) "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।" (१ यूहन्ना १:९)
दो पंक्तियों की छोटी सी प्रार्थना " हे यीशु मेरे पाप क्षमा कर, हे यीशु मुझे अपनी शरण में ले ले" ने मेरा जीवन बदल दिया।
मुल्ला नासिरुद्दीन की कहानी बहुत अचछी लगी . अगर कुछ खोजना हे तो तरीका सही होना चाहिये और हमें तो अपना आप ही खोजना है तो अपने भीतर डूब कर गहरे चिंतन से ही खोज सकेंगे । यंत्रों के बारे में मेरी समझ शून्य है ।
आपका आलेख बहुत बढ़िया है. प्रेरणादायक है. ओशो महान विचारक हैं. सदियों के बाद ऐसा मौलिक चिंतन करने वाला व्यक्तित्व भारत में दिखाई दिया. आपके ब्लॉग की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है.
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
बहुत आभार इस आलेख के लिए.
हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
आपका आलेख बहुत बढ़िया है. प्रेरणादायक है. ओशो महान विचारक हैं. सदियों के बाद ऐसा मौलिक चिंतन करने वाला व्यक्तित्व भारत में दिखाई दिया. आपके ब्लॉग की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है.
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत ही गूढ़ जानकारी मिली, में इससे कभी प्रभावित हुआ
दार्शनिक शिक्षाप्रद लेख...
मुझे जहां तक लगता है किसी भी मनुष्य में दार्शनिकता की कमी नहीं होती... हम सब में कहीं कमी है तो वह है...अच्छी वस्तुओं का अपने जीवन में समावेश करना.. यहीं हम चूक जाते हैं.... लिखते रहिये..
हां एक बात और.... आपका ब्लोग काफ़ी हैवी है मतलब खुलने में काफ़ी समय लेता है....हो सकता है बहुत से पाठक बिना पढे ही लौट जाते हों... मेरा सुझाव है कि अनावश्यक विजिट को अपने ब्लोग से हटा कर इसे तुरन्तु खुलने लायक बनायें.
achcha lekh hai sabhi ke sath batne ke liye shukriya ....
bhut achi lga padkar
किसी भी तथ्य को मानने के लिए मान्यताएं अपनी जगह पर, और विश्वास अपनी जगह पर, और जब हम अपने विशवास को ज्यादा मानते हैं तो वही आगे जीवन में लोगो के लिए धारणीय बन जाते हैं.............अच्छी प्रस्तुति साभार ........
यह सही है की हम पूर्व से ही ओशो को न मात्र पढ़ते है, बल्कि अपने हिंदी पाक्षिक प्रेसपालिका के हर अंक में ओशो के विचारों को स्थान भी देते हैं. आपके ब्लॉग पर भी अनेक बार आना हुआ है. आपने vichar meemansa par उपस्थित होने का कष्ट उठाया और अपने ब्लॉग का पता छोड़ कर चलते बने. कितना ठीक होता की आप भी vichar meemansa par प्रस्तुत आलेख "बेलगाम नौकरशाही को लूट की छूट!" पर कुछ टिप्पणी करते. परन्तु टिपण्णी करने के लिए आलेख को पढना पड़ता, जिसके लिए शयद आपके पास समय नहीं है. हमारे जीवन में न मात्र ओशो का प्रभाव है, बल्कि ओशो ने करोड़ों लोगों के जीवन पर प्रभाव डाला है, अनेक अंधों को रास्ता दिखाया है. सबसे बड़ी समस्या ये है की जो लोग ओशो के विचारों में विश्वास रखते है और जो ओशो को मानते हैं, वे समाज के सामने इस बात को स्वीकारने में हिचकते है. लोग मुखौटों को उतरना नहीं चाहते! धन्यवाद.
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
बहुत ही अच्छी, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली! बढ़िया पोस्ट!
ओशो को कहीं से भी पढ़ें,बात पूरी प्रतीत होती है। आंतरिक चेतना के बारे में ओशो के विस्तृत विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .......
मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
प्रेरक,अनुकरणीय।
कृपया इसे देखें..
http://www.osho.com/Main.cfm?Area=Magazine&Language=Hindi
सभी पाठको का बहुत बहुत शुक्रिया .... ब्लॉग पर आते रहे और ऐसा ही सहयोग बनाये रखे
बहुत अच्छा लगा यहां आकर...जानकारी भी अच्छी है...कभी समय हो तो यहां भी जरूर आइए
http://veenakesur.blogspot.com/
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश