हिंदुओं का जो प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है, इस संबंध में समझना होगा कि संस्कृत, अरबी जैसी पुरानी भाषाएं बड़ी काव्य-भाषाएं है। उनमें एक शब्द के अनेक अर्थ होते है। वे गणित की भाषाएं नहीं हे। इसलिए तो उनमें इतना काव्य है। गणित की भाषा में एक बात का एक ही अर्थ होता है। दो अर्थ हों तो भ्रम पैदा होता है। इसलिए गणित की भाषा तो बिलकुल चलती है सीमा बांधकर। एक शब्द का एक ही अर्थ होना चाहिए। संस्कृत, अरबी में तो एक-एक के अनेक अर्थ होते है।
अब ‘धी’ इसका अर्थ तो बुद्धि होता है। पहली सीढी। और धी से ही बनता है ध्यान—वह दूसरा अर्थ, वह दूसरी सीढी। अब यह बड़ी अजीब बात है। इतनी तरल है संस्कृत भाषा। बुद्धि में भी थोड़ी सह धी है। ध्यान में बहुत ज्यादा। ध्यान शब्द भी ‘धी’ से ही बनता है। धी का ही विस्तार है। इसलिए गायत्री मंत्र को तुम कैसा समझोगे, यह तुम पर निर्भर है, उसका अर्थ कैसा करोगे।
यह रहा गायत्री मंत्र:
ओम भू भुव: स्व: तत्सवितुर् देवस्य वरेण्यं भगो: धी माहि: या: प्र चोदयात्।
वह परमात्मा सबका रक्षक है—ओम प्राणों से भी अधिक प्रिय है—भू:। दुखों को दूर करने वाला है—भुव:। और सुख रूप है—स्व:। सृष्टि का पैदा करनेवाला और चलाने वाला है, स्वप्रेरक—तत्सवितुर्। और दिव्य गुणयुक्त परमात्मा के –देवस्य। उस प्रकार, तेज, ज्योति, झलक, प्रकट्य या अभिव्यक्ति का, जो हमें सर्वाधिक प्रिय है—वरेण्यं भवो:। धीमहि:–हम ध्यान करें।
अब इसका तुम दो अर्थ कर सकते हो: धीमहि:–कि हम उसका विचार करें। यह छोटा अर्थ हुआ, खिड़की वाला आकाश। धीमहि:–हम उसका ध्यान करें: यह बड़ा अर्थ हुआ। खिड़की के बाहर पूरा आकाश।
मैं तुमसे कहूंगा: पहले से शुरू करो, दूसरे पर जाओ। धीमहि: में दोनों है। धीमहि: तो एक लहर है। पहले शुरू होती है खिड़की के भीतर, क्योंकि तुम खिड़की के भीतर खड़े हो। इसलिए अगर तुम पंडितों से पुछोगे तो वह कहेंगे धीमहि: का अर्थ होता है विचार करें, सोचें।
अगर तुम ध्यानी से पुछोगे तो वह कहेगा धीमहि; अर्थ सीधा है: ध्यान करें। हम उसके साथ एक रूप हो जाएं। अर्थात वह परमात्मा—या:, ध्यान लगाने की हमारी क्षमताओं को तीव्रता से प्रेरित करे—न धिया: प्र चोदयार्।
अब यह तुम पर निर्भर है। इसका तुम फिर वहीं अर्थ कर सकते हो—न धिया: प्र चोदयात्—वह हमारी बुद्धि यों को प्रेरित करे। या तुम अर्थ कर सकते हो कि वह हमारी ध्यान को क्षमताओं को उकसाये। मैं तुमसे कहूंगा, दूसरे पर ध्यान रखना। पहला बड़ा संकीर्ण अर्थ है, पूरा अर्थ नहीं।
फिर ये जो वचन है, गायत्री मंत्र जैसे, ये संग्रहीत वचन है। इनके एक-एक शब्द में बड़े गहरे अर्थ भर है। यह जो मैंने तुम्हें अर्थ किया यह शब्द के अनुसार फिर इसका एक अर्थ होता है। भाव के अनुसार, जो मस्तिष्क से सोचेगा उसके लिए यह अर्थ कहा। जो ह्रदय से सोचेगा। उसके लिए दूसरा अर्थ कहता हे।
वह जो ज्ञान का पथिक है, उसके लिए यह अर्थ कहा। वह जो प्रेम का पथिक है, उसके लिए दूसरा अर्थ। वह भी इतना ही सच है। और यहीं तो संस्कृत की खूबी है। यही अरबी लैटिन और ग्रीक की खूबी है। जैसे की अर्थ बंधा हुआ नहीं है। ठोस नहीं, तरल है। सुनने वाले के साथ बदलेगा। सुनने वाले के अनुकूल हो जायेगा। जैसे तुम पानी ढालते, गिलास में ढाला तो गिलास के रूप का हो गया। लोटे में ढाला तो लोटे के रूप का गया। फर्श पर फैला दिया तो फर्श जैसा फैल गया। जैसे कोई रूप नहीं है। अरूप है, निराकार है।
अब तूम भाव का अर्थ समझो:
मां की गोद में बालक की तरह मैं उस प्रभु की गोद में बैठा हूं—ओम, मुझे उसकी असीम वात्सल्य प्राप्त हे—भू: मैं पूर्ण निरापद हूं—भुव:। मेरे भीतर रिमझिम-रिमझिम सुख की वर्षा हो रही है। और मैं आनंद में गदगद हूं—स्व:। उसके रुचिर प्रकाश से , उसके नूर से मेरा रोम-रोम पुलकित है तथा सृष्टि के अनंद सौंदर्य से मैं परम मुग्ध हूं—तत्स् वितुर, देवस्य। उदय होता हुआ सूर्य, रंग बिरंगे फूल, टिमटिमाते तारे, रिमझिम वर्षा, कलकलनादिनी नदिया, ऊंचे पर्वत, हिमाच्छादित शिखर, झरझर करते झरने, घने जंगल, उमड़ते-घुमड़ते बादल, अनंत लहराता सागर,–धीमहि:। ये सब उसका विस्तार है। हम इसके ध्यान में डूबे। यह सब परमात्मा है। उमड़ते-घुमड़ते बादल, झरने फूल, पत्ते, पक्षी, पशु—सब तरफ वहीं झाँक रहा है। इस सब तरफ झाँकते परमात्मा के ध्यान में हम डूबे; भाव में हम डूबे। अपने जीवन की डोर मैंने उस प्रभु के हाथ में सौंप दी—या: न धिया: प्रचोदयात्। अब में सब तुम्हारे हाथ में सौंपता हूं। प्रभु तुम जहां मुझे ले चलों में चलुंगा।
भक्त ऐसा अर्थ करेगा।
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इनमें कोई भी एक अर्थ सच है। और कोई दूसरा अर्थ गलत है। ये सभी अर्थ सच है। तुम्हारी सीढ़ी पर, तुम जहां हो वैसा अर्थ कर लेना। लेकिन एक खयाल रखना, उससे ऊपर के अर्थ को भूल मत जाना, क्योंकि वहां जाना है। बढना है। यात्रा करनी है।
ओशो
अष्टावक्र महा गीता
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| बुधवार, सितंबर 22, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
bahut sunder hai.
मौलिक व्याख्या। अनुकरणीय तथ्य।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है। आप इसी तरह अपना ज्ञान लोगों में बांटते चलिए
badhiya likhte hai aap ..... osho ke vichoro ko logo tak pahuchane ke liye ....aabhar
aman jeet singh,,
परमात्मा का क्या अर्थ है ? जैसे परमात्मा शब्द शब्दातीत की सीढ़ी है
वैसे गायत्री वह धुन है जो परमात्मा के भावातीत से भर देती है . गीता १०.३५ में प्रभु कहते भी हैं - गायत्री मैं हूँ . गायत्री को बुद्धि स्तर पर देखनें से क्या होगा ,इसमें अपनें को घुलानें से कुछ होगा और जो होगा ,उसकी तलाश में हम यहाँ हैं .
सभी पाठको से एक निवेदन है कि यदि आप पुराणी
पोस्ट पर टिपण्णी करे तो उसकी एक कॉपी नई पोस्ट
पर भी कर दे ताकि आपकी टिप्पणियों पढ़ा जसके
एवं धन्यवाद दिया जा सके .....
Really Awesome....
I love to chant Gayatri Mantra.
Hey man, I am following your blog. Can you tell me how to give link in blogs?
behad gyanbardhak jankari
Thanks a ton for your quick and exact reply.
I have added link in my post.
Can you tell me one more thing, How do you type in hindi here?
http://www.google.com/transliterate/
इस लिंक पर जाये और रोमन में टाइप करे जैसे _ अगर आपको लिखना है - मेरा नाम ओशो रजनीश है तो टाइप करे --
mera nam osho rajneesh hai
गायत्री मन्त्र का - विस्तार से जो अर्थ लिखा है - उसके लिए साधुवाद.
Now, you can check your link in my blogs.
बहुत बहुत धन्यवाद|
quite informative !..Thanks.
आप का काम निश्चित ही सराहनीय है,
ओशो मेरे लिए भी सम्माननिय है,
वास्तव में देखा जाये तो पर ओशो के नाम से ही उनके प्रवचनों (discourses ) कों फिर से लिखना कापीराईट एक्ट का उलंघन हो सकता है. आप हो सकते है की ओशो से दीक्षित स्वामी या माँ हो. और दुसरो कों जाग्रत करना आपने जीवन का कर्त्तव्य हो. इसलिए मेरा आपसे एक मात्र ही निवेदन है. आप अपने प्रोफाइल में से ओशो का नाम हटा कर अपना वास्तविक नाम डाले .
अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत जरुर करे.
धन्यवाद
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती! गायत्री मन्त्र का अर्थ विस्तारित रूप से लिखने के लिए धन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है आपने, नित नये ज्ञान भंडार को लेकर आप आ रहे हैं, आप निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ते जायें, शुभकामनाओं के साथ आभार ।
गायत्री मंत्र का सविस्तार वर्णन बहुत अच्छा लगा ..बहुत सारी बातें जानना बहुत अच्छा लगा.
सार्थक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इनमें कोई भी एक अर्थ सच है। और कोई दूसरा अर्थ गलत है। ये सभी अर्थ सच है
यहाँ आकर हमेशा ही अच्छी जानकारी मिलती है ...
अच्छी व्याख्या रही.
ओशो भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं,एक महान विद्वान, स्पष्ट चिंतन वाले और नये विचारों के जन्मदाता हैं ।
बेहतरीन ......
सभी पाठको से एक निवेदन है कि यदि आप पुराणी
पोस्ट पर टिपण्णी करे तो उसकी एक कॉपी नई पोस्ट
पर भी कर दे ताकि आपकी टिप्पणियों पढ़ा जसके
एवं धन्यवाद दिया जा सके .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है। आप इसी तरह अपना ज्ञान लोगों में बांटते चलिए
@Amit Soni जी,
आभार मेरे इस छोटे से प्रयास का उत्साहवर्धन करने करने के लिए ......
जहा तक आपका प्रशन है copuright का तो में इन प्रवचनों को लिख नहीं रहा हूँ, इन्हें केवल प्रकाशित कर रहा हूँ .
ओशो के नाम से प्रकशित करने में मुझे तो कोई बुरे नजर नहीं आती ? में इस शब्दों को प्रकाशित कर रहा हूँ वो भी बिना किसी स्वार्थ के, में इन प्रवचनों के द्वारा किसी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं कम रहा हूँ सिवाय थोड़े से पुण्य के .
अब यदि में प्रोफाइल में अपना नाम डाल कर प्रकाशित करता हूँ तो शायद लोग इसे किसी धर्म, जात-बिरादरी जैसे किसी विवाद में न उलझा ले ....
मेरा मकसद केवल ओशो के इन अमृत वचनों को आमजन तक पहुचने का है ...... यदि आप को इस टिपण्णी पर कोई आपत्ति हो तो जरुर अवगत कराये
sundar lekh...aabhar.
Ati sundar vyakhya.......
अर्थ और व्याख्या बहुत बढ़िया ..सरल भाषा में समझ आया ...
लेकिन गायत्री मन्त्र पूरा नहीं लिखा ...
आप इसी तरह अपना ज्ञान लोगों में बांटते चलिए.........
बहुत अच्छी जानकारी.........
सच में बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं ये.. वाह..ओशो का ये कथन पहली बार पढ़ा.. आभार आपका..
मन को शांति प्रदान करने वाली पोस्ट। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति है। धन्यवाद।
bahut hi sundar wyakya hai ji .. bahut badhayi aapko ..
बहुत ही बढ़िया लगा लेख पढ़कर ........
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .......
पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html
its beautiful i love this
बहुत बढ़िया ..... अच्छी व्याख्या की है मन्त्र की ...
इसे पढ़े, जरुर पसंद आएगा :-
(क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
यहाँ भी आये : http://kashmirandindia.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
आपकी चर्चा है यहाँ भी ......
ye sahi arth hai
ye ek mantra h jo ishver ke liye h na ki koi devi
व्याख्या बेहद उपयोगी है…..……बस यही कहूँगी सबका अपना अपना नज़रिया होता है वैसे भी जो जिस रूप मे उसको भजता है वो वैसा ही बन जाता है।
ओशो मेरे लिए भी सम्माननिय है,
Main bhi Osho sahitya se kafi prabhavit hun.
Unki baton me jeevan jeene ka mool mantra hai.
Aapke lekh ne prabhavpurna urja ka sanchar kiya.
Lekhani me aapki pakad mazboot hai.klyan ho.
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश
sabse pehle toh mai aapka shukriya karna chahungi....
aapne bht saral shabdoo mai aarth pardaan kiye hai...
aapke aanya lekh bhi maine pade,bht se nayi jaankaariya mili,accha laga padkar
thank you sir...
Veery good Sir
अपने गायत्री मंत्र लिखा है -
ओम भू भुव: स्व: तत्सवितुर् देवस्य वरेण्यं भगो: धी माहि: या: प्र चोदयात्।
जो की सही नहीं है, सही गायत्री मंत्र है -
ॐ भूर्भुव स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
Thanks to OSHO, The Sadguru. He has changed the life.......