एक टेलर था। दर्जी था। यह बीमार पडा। करीब-करीब मरने के करीब पहुंच गया था। आखिरी घड़िया गिनता था। अब मर की तब मरा। रात उसने एक सपना देखा कि वह मर गया। और कब्र में दफनाया जा रहा है। बड़ा हैरान हुआ, क्रब में रंग-बिरंगी बहुत सी झंडियां लगी हुई है। उसने पास खड़े एक फ़रिश्ते से पूछा कि ये झंडियां यहाँ क्यों लगी है?
दर्जी था, कपड़े में उत्सुकता भी स्वभाविक थी। उसे फ़रिश्ते ने कहा, जिन-जिन के तुमने कपड़े चुराए है। जितने-जितने कपड़े चुराए है। उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियां लगी है। परमात्मा इस से तुम्हारा हिसाब करेगा। कि ये तुम्हारी चोरी का रहस्य खोल देंगी, ये झंडियां तुम्हारे जीवन का बही खाता है।
वह घबरा गया। उसने कहा, हे अल्लाह, रहम कर, झंडियों को कोई अंत ही न था। दुर तक झंडियां ही झंडियां लगी थी। जहां तक आंखें देख पा रही थी। और अल्लाह की आवाज से घबराहट में उसकी नींद खुल गई। बहुत घबरा गया। पर न जाने किस अंजान कारण के वह एक दम से ठीक हो गया। फिर वह दुकान पर आया तो उसके दो शागिर्द थे जो उसके साथ काम करते थे। वह उन्हें काम सिखाता भी था। उसने उन दोनों को बुलाया और कहा सुनो, अब एक बात का ध्यान रखना।
मुझे अपने पर भरोसा नहीं है। अगर कपड़ा कीमती आ जाये तो मैं चुराऊंगा जरूर। पुरानी आदत है समझो। और अब इस बुढ़ापे में बदलना बड़ी कठिन है। तुम एक काम करना, तुम जब भी देखो कि मैं कोई कपड़ा चुरा रहा हूं। तुम इतना ही कह देना, उस्ताद जी झंन-झंडी, जोर से कहा देना, दोबारा भी गुरु जी झंन-झंडी। ताकि में सम्हल जाऊँ।
शिष्यों ने बहुत पूछा कि इसका क्या मतलब है गुरु जी। उसने कहा, वह तुम ना समझ सकोगे। और इस बात में ना ही उलझों तो अच्छा हे। तुम बस इतना भर मुझे याद दिला देना, गुरु जी झंन-झंडी। बस मेरा काम हो जाएगा।
ऐसे तीन दिन बीते। दिन में कई बार शिष्यों को चिल्लाना पड़ता, उस्ताद जी। झंडी। वह रूक जाता। चौथे दिन लेकिन मुश्किल हो गई। एक जज महोदय की अचकन बनने आई । बड़ा कीमती कपड़ा था। विलायती था। उस्ताद घबड़ाया कि अब ये चिल्लाते ही हैं। झंन-झंडी। तो उसने जरा पीठ कर ली शिष्यों की तरफ से। और कपड़ा मारने ही जा रहा था। कि शिष्य चिल्लाया, उस्ताद जी, झंन-झंडी।
दर्जी ने इसे अनसुना कर दिया पर शिष्य फिर चिल्लाया, उस्ताद जी, झंन-झंडी। उसने कहा बंद करो नालायको, इस रंग के कपड़े की झंडी वहां पर थी ही नहीं। क्या झंन-झंडी लगा रखी है। और फिर हो भी तो क्या फर्क पड़ता है जहां पर इतनी झंडी लगी है वहां एक और सही।
ऊपर-ऊपर के नियम बहुत गहरे नहीं जाते। सपनों में सीखी बातें जीवन का सत्य नहीं बन सकती। भय के कारण कितनी देर सम्हलकर चलोगे। और लोभ कैसे पुण्य बन सकता है?
–ओशो
एस धम्मो सनंतनो,
जीवन में नियम बनाना जितना आसान है, और फिर नियम तुम्हे तय करने है तो कोई मुश्किल काम नहीं है, उतना ही कठिन होता है उनका पालन करना. खुद से तो पीठ फेर लोगे लेकिन उस अल्लाह से, उस ईश्वर से कैसे फेरोगे जो सबको देखता है .
बहुत ज्ञान की बातें। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
कहानी ऐसे बनीं–, राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
बहुत ही बढ़िया और प्रेरणामयी पोस्ट ,इसे हम सबके साथ साझा करने के लिए बहुत-२ आभार आपका
महक
यह टिपण्णी आपको असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप वाली लग सकती है, पर कहना आवश्यक हो जाता है. प्रकाशित न भी करें तो कोई फर्क नहीं पड़ता, बस पढ़ लें.
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क्या ओशो के शब्दों में अपने शब्द जोड़ने की ज़रूरत है? अगर जोड़ें तो अपनी टीप प्रवचन से ऐसे अलग कर लें की कोई इन्हें प्रवचन का हिस्सा न समझ सके. और भी बेहतर होगा की आप प्रवचन को सिर्फ ओशो के शब्दों में ही प्रस्तुत करें, अपनी टीप कमेन्ट बॉक्स में ही दें.
आपके जोड़े हुए शब्द आभास देते हैं जैसे रेशम पर टाट का पैबंद. क्या आप खुद को इस लायक समझते हैं की ओशो के शब्दों में कुछ जोड़ सकें? हमें तो नहीं लगता.
ओशो बस एक नाम नहीं
उस नाम मे छिपा धाम है
मुक्ति का एक मार्ग है वो
मद मस्त जीवन जाम है
lajavab..... bahut aanand aaya padhker.. aapka dhanyavad..
बहुत ही बढ़िया लगा लेख पढ़कर ........
बढ़िया प्रस्तुति .......
लाजवाब!
बहुत प्रेरणामयी पोस्ट..
नीयम बनना एक बात है . उन पर चलना अलग ...प्रेरणादायक पोस्ट
तभी तो अपन जीवन में कोई उसूल नहीं बनाते.
बहुत सुन्दर बोधकथा है। अगर ये बात इन्सान समझ जाये तो दुनिया स्वर्ग बन जाये। धन्यवाद।
बहुत ही बढ़िया और प्रेरणामयी पोस्ट ,
दुनिया .....मेरी नजरो से.
bahit ji shaandar rachna, seekh dene wali
baghai
बहुत ही बढ़िया और प्रेरणामयी पोस्ट
kya baat hai . bahut sundar
... sundar post !!!
बढिया, प्रेरक कथा !
बहुत ही प्रेरणा देने वाला संस्मरण है!
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इस प्रकार के प्रेरक प्रसंग आप जारी रखिए!
ओह टेलरों को ऐसे सपने आते हैं .....इसका मतलब आजकल रेडिमेड कपडे ही लेने चाहिएं ....हा हा हा ..
मजाक से इतर ...एक प्रेरणादायक पोस्ट है ....
बहुत ही बढ़िया और प्रेरणामयी
नियमों को बनाना तो आसान है पर उन पर चलना उतना ही मुश्किल...मानवीय कमजोरी है....बहुत अच्छी तरह से बताया...
आपकी बातों से मैं १००% सहमत हूँ| मेरी समझ में नियम बनाना उतना ज़रुरी नहीं है जितना नियमों का पालन करना| धन्यवाद|
इस रंग के कपड़े की झंडी वहां पर थी ही नहीं। क्या झंन-झंडी लगा रखी है। और फिर हो भी तो क्या फर्क पड़ता है जहां पर इतनी झंडी लगी है वहां एक और सही।
बढिया, प्रेरक कथा !
बहुत ही बढ़िया शब्द कहे है आपने .........
धन्यवाद आपका मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी बात कहने के लिए ..
जीवन-सूत्र।
सही है आदमी आदत से मरते दम तक बाज नहीं आता।
आत्म मंथन करने वाली बात ।
main shuru se hi osho ka prashanshak raha hu...!! blog achha safar raha aapke blog par sochta hu yahi thahar jau...
JAI HO MANGALMAY HO
सच है ... गिरने के भय के कारण कोई चलना बंद नही कर देता ....
बहुत अच्छी कथा है ....
बहुत ही सुन्दर एवं प्रेरक पोस्ट, आभार ।
"जीवन में नियम बनाना जितना आसान है, और फिर नियम तुम्हे तय करने है तो कोई मुश्किल काम नहीं है, उतना ही कठिन होता है उनका पालन करना. खुद से तो पीठ फेर लोगे लेकिन उस अल्लाह से, उस ईश्वर से कैसे फेरोगे जो सबको देखता है"
पता नहीं ये शब्द आपके है या ओशो के पर इतना जरूर है कि हुत ही बढ़िया बात कही है आपने इन शब्दों के द्वारा ......
"जीवन में नियम बनाना जितना आसान है, और फिर नियम तुम्हे तय करने है तो कोई मुश्किल काम नहीं है, उतना ही कठिन होता है उनका पालन करना. खुद से तो पीठ फेर लोगे लेकिन उस अल्लाह से, उस ईश्वर से कैसे फेरोगे जो सबको देखता है"
पता नहीं ये शब्द आपके है या ओशो के पर इतना जरूर है कि "बहुत" ही बढ़िया बात कही है आपने इन शब्दों के द्वारा ......
वर्तनी कि गलती की वजह से दोबारा टिपण्णी करनी पड़ रही है
ओशो रजनीश जी,
ताऊ पहेली के पर आपका नाम विजेताओ कि लिस्ट में देखा ........... बधाई
लेख बहुत ही अच्छा व् शिक्षाप्रद है ..........
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
बहुत सुन्दर और लाजवाब लेख! बेहतरीन प्रस्तुती!
प्रेरक कथा
सभी पाठको का शुक्रिया ....
सभी पाठको से एक निवेदन है कि यदि आप पुराणी
पोस्ट पर टिपण्णी करे तो उसकी एक कॉपी नई पोस्ट
पर भी कर दे ताकि आपकी टिप्पणियों पढ़ा जसके
एवं धन्यवाद दिया जा सके .....
एक प्रेरणादायक पोस्ट है ....
It is a nice story giving an opportunity to learn, what ideals one can follow with out which life has no value.
Thanks for such posting.
Ajay Singh "Ekal"
http://ajayekal.blogspot.com
अगर आप को ओशो के लेख लिखने की इतनी ही रूचि है तो सम्पूर्ण लेख प्रकाशित करो इस तरह कट छांट करके केवल अपना और पाठकों का समय बर्बाद मत करो |
युवराज737 जी,
अगर इस साईट पर आकर आपका समय बर्बाद होता है तो आप से विनम्र निवेदन है की आप अपना समय बर्बाद न करे ...........
रही बात लेख में कांट- छांट की तो ये लेख १७९ प्रष्ट का है क्या आप इसे एक बार में पूरा पढ़ पाएंगे ?
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश
hindi likhne mai itni galti aap se ho rahi hain to english main likho
बढिया, प्रेरक कथा !
Very Nice Post