" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

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Archive for अगस्त 2010

30 अगस 2010

अब तिब्‍बत में एक किताब है: तिब्‍बतन बुक ऑफ दि डैड। तो अब तिब्‍बत का जो भी चोथा शरीर को उपलब्ध आदमी था। उसने सारी मेहनत इस बात पर की कि मरने के बाद हम किसी को क्‍या सहायता दे सकते हे। आप मर गये हे, मैं आपको प्रेम करता हूं, लेकिन मरने के बाद मैं आपको कोई सहायता नहीं पहुंचा सकता हूं। लेकिन तिब्‍बत में पूरी व्‍यवस्‍था है सात सप्‍ताह की….कि मरने के बाद सात सप्‍ताह तक उस आदमी को कैसे सहायता पहुंचायी जाये; और उसके कैसे गाइड (मार्गदर्शन) किया जाये; और उसको कैसे विशेष जन्‍म के लिए उत्‍प्रेरित किया जाये; और उसे कैसे विशेष गर्भ में प्रवेश में सहयोग किया जाये और किसी विशेष गर्भ में उसे पहुंचाया जाए। अभी विज्ञान को वक्‍त लगेगा। कि वह इन...

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28 अगस 2010

अकबर ने एक दिन तानसेन को कहा, तुम्‍हारे संगीत को सुनता हूं, तो मन में ऐसा ख्‍याल उठता है कि तुम जैसा गाने वाला शायद ही इस पृथ्‍वी पर कभी हुआ हो और न हो सकेगा। क्‍योंकि इससे ऊंचाई और क्‍या हो सकेगी। इसकी धारणा भी नहीं बनती। तुम शिखर हो। लेकिन कल रात जब तुम्‍हें विदा किया था, और सोने लगा तब अचानक ख्‍याल आया। हो सकता है, तुमने भी किसी से सीखा है, तुम्‍हारा भी कोई गुरू होगा। तो मैं आज तुमसे पूछता हूं। कि तुम्‍हारा कोई गुरू है? तुमने किसी से सीखा है? तो तानसेन ने कहा, मैं कुछ भी नहीं हूं गुरु के सामने, जिससे सीखा है। उसके चरणों की धूल भी नहीं हूं। इसलिए वह ख्‍याल मन से छोड़ दो। शिखर? भूमि पर भी नहीं हूं। लेकिन आपने मुझ ही जाना है। इसलिए आपको शिखर मालूम पड़ता हूं।...

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26 अगस 2010

एक जंगल की राह से एक जौहरी गुजर रहा था। देखा उसने राह में। एक कुम्‍हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है। चकित हुआ। ये देख कर की ये कितना मुर्ख है। क्‍या इसे पता नहीं है की ये लाखों का हीरा है। और गधे के गले में सजाने के लिए बाँध रखा है। पूछा उसने कुम्‍हार से, सुनो ये पत्‍थर जो तुम गधे के गले में बांधे हो इसके कितने पैसे लोगे? कुम्‍हार ने कहां महाराज इस के क्‍या दाम पर चलो आप इस के आठ आने दे दो। हमनें तो ऐसे ही बाँध दिया था। की गधे का गला सुना न लगे। बच्‍चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की और से ल जाएँगे। बच्‍चे भी खुश हो जायेंगे और शायद गधा भी की उसके गले का बोझ कम हो गया है। पर जौहरी तो जौहरी ही था, पक्‍का बनिया, उसे लोभ पकड़ गया। उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्‍यादा...

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24 अगस 2010

सब तीर्थ बहुत ख्‍याल से बनाये गए है। अब जैसे कि मिश्र में पिरामिड है। वे मिश्र में पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ है। और एक बड़ी मजे की बात है कि इन पिरामिड के अंदर....। क्‍योंकि पिरामिड जब बने तब, वैज्ञानिको का खयाल है, उस काल में इलैक्ट्रिसिटी हो नहीं सकती। आदमी के पास बिजली नहीं हो सकती। बिजली का आविष्‍कार उस वक्‍त कहां, कोई दस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है, कई बीस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है। तब बिजली का तो कोई उपाय नहीं था। और इनके अंदर इतना अँधेरा कि उस अंधेरे में जाने का कोई उपाय नहीं है। अनुमान यह लगाया जा सकता है कि लोग मशाल ले जाते हों, या दीये ले जाते हो। लेकिन धुएँ का एक भी निशान नहीं है इतने पिरामिड में कहीं । इसलिए बड़ी मुश्‍किल है। एक छोटा सा दीया घर में जलाएगें तो पता...

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22 अगस 2010

जितने दूर का नाता होगा, उतना ही बच्‍चा सुंदर होगा। स्‍वस्‍थ होगा, बलशाली होगा। मेधावी होगा। इसलिए फिक्र की जाती रही कि भाई बहन का विवाह न हो। दूर संबंध खोजें जाते है। जिलों गोत्र का भी नाता न हो, तीन-चार पाँच पीढ़ियों का भी नाता न हो। क्‍योंकि जितने दूर का नाता हो, उतना ही बच्‍चे के भीतर मां और पिता के जो वीर्याणु और अंडे का मिलन होगा, उसमें दूरी होगी तो उस दूरी के कारण ही व्‍यक्‍तित्‍व में गरिमा होती है।इसलिए मैं इस पक्ष में हूं कि भारतीय को भारतीय से विवाह नहीं करना चाहिए; जापनी से करे, चीनी से करे, तिब्‍बती से करे, इरानी से करे, जर्मन से करे, भारतीय से न करे। क्‍योंकि जब दूर ही करनी है जितनी दूर हो उतना अच्‍छा।और अब तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है बात। पशु-पक्षियों के लिए हम प्रयोग भी...

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20 अगस 2010

गंगा के प्रतीक को भी समझने जैसा है। गंगा के साथ हिंदू मन बड़े गहरे में जुड़ा है। गंगा को हम भारत से हटा लें, तो भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । सब बचा रहे, गंगा हट जाए, भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए। गंगा को हटा ले तो भारत का साहित्य अधूरा पड़ जाए। गंगा को हम हटा ले तो हमारे तीर्थ ही खो जाए, हमारे सारे तीर्थ की भावना खो जाए। गंगा के साथ भारत के प्राण बड़े पुराने दिनों से कमिटेड़ है। बड़े गहरे से जुडे है। गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है। मुल्क की भी अगर कोई आत्मा होती हो और उसके प्रतीक होते हो तो, गंगा ही हमारा प्रतीक है। पर क्या कारण होगा गंगा के इस गहरे प्रतीक बन जाने का कि हजारों-हजारों वर्ष पहले कृष्ण भी कहते है। नदियों में मैं गंगा हूं। गंगा कोई नदियों में विशेष...

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18 अगस 2010

एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था। गधे के साथ, अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्‍वामीभक्‍त था। लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा। उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है। तो वह भी झुका कब्र के पास। इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे, उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये। बंजारे को हंसी भी आई आयी। लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुमन पडा। और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्‍यवसाय है। फिर उसी कब्र...

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15 अगस 2010

इस सूत्र को ठीक से कोई साधक समझ ले...और मैं तो आपको इसीलिए कह रहा कि आपको साधना की दृष्टि से खयाल में आ जाए। अगर साधना की दृष्टि से खयाल में आ जाए, तो आप सब करके भी अकर्ता रह जाते हैं। आपने जो भी किया, अगर परमात्मा इतना करके और पीछे अछूता रह जाता है, तो आप भी सब करके पीछे अछूते रह जाते हैं। लेकिन इस सत्य को जानने की बात है, इसको पहचानने की बात है। अगर इतना बड़ा संसार बनाकर परमात्मा पीछे गृहस्थ नहीं बन जाता, तो एक छोटा सा घर बनाकर एक आदमी गृहस्थ बन जाए, पागलपन है! इतने विराट संसार के जाल को खड़ा करके अगर परमात्मा वैसे का वैसा रह जाता है जैसा था, तो आप एक दुकान छोटी सी चलाकर और नष्ट हो जाते हैं? कहीं कुछ भूल हो रही है। कहीं कुछ भूल हो रही है। कहीं अनजाने में आप अपने कर्मों के साथ अपने...

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13 अगस 2010

जीवन प्रतिपल नया है। जीवन हर सांस में बदल रहा है। लेकिन हम और हमारा समाज-विशेषकर भारत में-ठहर सा गया है। इसमें कोई प्रवाह नहीं, कोई गतिशीलता नहीं। उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हम जीवन से ही कट गये हैं। हम पुराने से पुराने हो गये हैं। एकदम ठूंठ। हम विकासमान विश्व के प्रवाह से अलग-थलग हो गये हैं और हम बुरी तरह पिछड़ गये हैं। इस पुस्तक में ओशो हमें झकझोरते हुए कहते हैं : सारी दुनिया में नए को लाने का आमंत्रण है। हम नये को स्वीकार करते हैं ऐसे, जैसे कि पराजय हो ! इसीलिए पांच हजार वर्ष पुरानी संस्कृति तीन सौ वर्ष, पचास वर्ष पुरानी संस्कृतियों के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांगती है, और हमें कोई शर्म भी मालूम नहीं होती है। हम पांच हज़ार वर्षों में इस योग्य भी न हो सके, कि गेहूं पूरा हो सके, कि मकान पूरे...

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11 अगस 2010

गांधी गीता को माता कहते हैं, लेकिन गीता को आत्मसात नहीं कर सके। क्योंकि गाँधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को कहाँ रखेगी ? तो गांधी उपाय खोजते हैं, वह कहते हैं कि यह जो युद्ध है, यह सिर्फ रूपक है, यह कभी हुआ नहीं । यह मनुष्य के भीतर अच्छाई और बुराई की लड़ाई है। यह जो कुरुक्षेत्र है, यह कहीं कोई बाहर का मैदान नहीं है, और ऐसा नहीं है कि कृष्ण ने कहीं अर्जुन को किसी बाहर के युद्ध में लड़ाया हो। यह तो भीतर के युद्ध की रूपक-कथा है। यह ‘पैरबेल’ है, यह एक कहानी है। यह एक प्रतीक है। गांधी को कठिनाई है। क्योंकि गांधी का जैसा मन है, उसमें तो अर्जुन ही ठीक मालूम पडे़गा। अर्जुन के मन में बड़ी अहिंसा का उदय हुआ है। वह युद्ध छोड़कर भाग जाने को तैयार है। वह कहता है, अपनों को मारने से फायदा क्या ? और वह कहता...

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10 अगस 2010

प्रेम अपने ढ़ंग से हिंसा करता है। प्रेमपूर्ण ढंग से हिंसा करता है। पत्नी, पति को प्रेमपूर्ण ढ़ंग से सताती है। पति, पत्नी को प्रेमपूर्ण ढ़ंग से सताता है। बाप, बेटे को प्रेमपूर्ण ढ़ंग से सताता है। और जब, सताना प्रेमपूर्ण हो तो बड़ा सुरक्षित हो जाता है। फिर सताने में बड़ी सुविधा मिल जाती है, क्योंकि हिंसा ने अहिंसा का चेहरा ओढ़ लिया है। शिक्षक विद्यार्थी को सताता है और कहता है, तुम्हारे हित के लिए ही सता रहा हूं। और जब किसी के हित के लिए सताते है, तब सताना बड़ा आसान है। वह गौरवान्वित, पुण्यकारी हो जाता है। इसलिए ध्यान रखना, दूसरे को सताने में हमारे चेहरे सदा साफ होते हैं। जो बड़ी-से-बड़ी हिंसा चलती है वह दूसरे साथ नहीं, वह अपनों के साथ चलती है। सच तो यह है कि किसी को भी शत्रु बनाने के पहले मित्र...

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07 अगस 2010

मैंने सुना है कि एक बहुत बड़ा राजमहल था। आधी रात उस राजमहल में आग लग गयी। आंख वाले लोग बाहर निकल गये। एक अँधा आदमी राजमहल में था। वह द्वार टटोलकर बाहर निकलने का मार्ग खोजने लगा। लेकिन सभी द्वार बंद थे, सिर्फ एक द्वार खुला था। बंद द्वारों के पास उसने हाथ फैलाकर खोजबीन की और वह आगे बढ़ गया। हर बंद द्वार पर उसने श्रम किया, लेकिन द्वार बंद थे। आग बढ़ती चली गयी और जीवन संकट में पड़ता चला गया। अंतत: वह उस द्वार के निकट पहुंचा, जो खुला था। लेकिन दुर्भाग्य कि उस द्वार पर उसके सिर पर खुजली आ गयी ! वह खुजलाने लगा और उस समय द्वार से आगे निकल गया और फिर वह बंद द्वारों पर भटकने लगा ! अगर आप देख रहे हों उस आदमी को तो मन में क्या होगा ? कैसा अभागा था कि बंद द्वार पर श्रम किया और खुले द्वार पर भूल की-जहाँ...

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05 अगस 2010

दो तीन बातें करना चाहूँगा। एक तो जातीय दंगे को साधारण मानना शुरू करना चाहिए। उसे जातीय दंगा मानना नहीं चाहिए, साधारण दंगा मानना चाहिए। और जो साधारण दंगे के साथ व्यवहार करते हैं वही व्यवहार उस दंगे के साथ भी करना चाहिए, क्योंकि जातीय दंगा मानने से कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं, इसलिए जातीय दंगा मानने की जरूरत नहीं है। जब एक लड़का एक लड़की को भगाकर ले जाता है, वह मुसलमान हो कि हिन्दू, कि लड़की हिन्दू है कि मुसलमान है-इस लड़के और लड़की के साथ वही व्यवहार किया जाना चाहिए, जो कोई लड़का किसी लड़की को भगा कर ले जाये, और हो। इसको जातीय मानने का कोई कारण नहीं है।जैसे चीन है-चीन में आप जातीय दंगा नहीं करवा सकते। कोई उपाय नहीं है। और कोई दंगे नहीं कर रहा ! जातीय दंगे नहीं करवा सकते चीन में। उसका कारण है...

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