दूसरे की किसी बात को लेकर सोचें मत। "और तुम यही सोचते रहते हो। निन्यानबे प्रतिशत बातें जो तुम सोचते हो उनका लेना-देना दूसरों से रहता है। छोड़ दें, उन्हें इसी वक्त छोड़ दें! "तुम्हारा जीवन बहुत छोटा है, और जीवन हाथों से फिसला जा रहा है। हर घड़ी तुम कम हो रहे हो, हर दिन तुम कम हो रहे हो, और हर दिन तुम कम जीवित होते जाते हो! हर जन्म-दिन तुम्हारा मरण-दिन है; तुम्हारे हाथों से एक वर्ष और फिसल गया। कुछ और प्रज्ञावान बनो।
"जिस बात का लेना-देना दूसरों से है, उसके बारे में मत सोचें। पहले अपनी मुख्य दुर्बलता के विपरीत अभ्यास करें।
"गुरजिएफ अपने अनुयायियों से कहा करता था-- 'पहली बात, सबसे पहली बात, ढूंढें कि तुम्हारी मूल दुर्बलता क्या है, तुम्हारा मुख्य अकर्म, तुम्हारे अवचेतन की केंद्रीय संकीर्णता क्या है। 'हर व्यक्ति अलग है। कोई व्यक्ति काम से ग्रसित है। भारत जैसे देश में, जहां काम को सदियों दबाया जाता रहा है, यह लगभग वहां एक मनोग्रस्ति बन गया है; हर व्यक्ति काम से ग्रसित है। कोई क्रोध से ग्रसित है, और कोई लोभ से ग्रसित है। तुम्हें देखना होगा कि तुम्हारी मूल मनोग्रस्ति क्या है। "अत: सबसे पहले अपनी मूल मनोग्रस्ति को जानें जिसके ऊपर तुम्हारे पूरे अहंकार का भवन खड़ा है। और फिर निरंतर सचेत रहें क्योंकि यह केवल तभी रह सकती है अगर तुम अचेत हो। बोध की अग्नि में जल कर यह स्वयं ही भस्म हो जाती है। "और स्मरण रहे, सदा स्मरण रहे कि तुम्हें इसके विपरीत को पोषित नहीं करना है। नहीं तो होता यह है कि व्यक्ति को यह बोध होने लगता है कि 'मैं क्रोध में ग्रसित हो जाता हूं तो मुझे करुणा को पोषित करना चाहिए।' 'मैं काम मे आविष्ट हो जाता हूं, मुझे क्या करना चाहिए? मुझे ब्रह्मचर्य का अभ्यास करना चाहिए।' "लोग एक अति से दूसरी अति पर जाने लगते हैं। यह अतिक्रमण का ढंग नहीं है। यह वही पेंडुलम है, बाएं से दाएं जाता हुआ और दाएं से बाएं। ठीक इसी तरह तुम्हारा जीवन सदियों से चल रहा है; यह वही पेंड़ुलम है। "पेंडुलम मध्य में रोकना होगा। और यही बोध का करिश्मा है। बस यह बोध रखें, 'यही मेरी मुख्य खाई है, यही वह स्थान है जहां मैं बार-बार टकराता हूं, यही मेरी बेहोशी की जड़ है।' "दूसरी अति को पोषित न करें, बस, अपनी पूरी चेतना वहीं उड़ेल दें। अपने समस्त बोध की होलिका बनाएं, और बेहोशी उसमें जल कर भस्म हो जाएगी। और तब पेंडुलम बीच में रुक जाएगा। "और पेंडुलम के रुकने से समय रुक जाता है। तुम समयातीत, सनातन व शाश्वत में प्रवेश कर जाते हो।
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| मंगलवार, जून 22, 2010 |
5
टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
भगवान् के लिए प्लीज़ अपना माउस कर्सर फौलोवर हटा दें. आपका ब्लौग खुलने में वैसे ही बहुत ज्यादा समय ले रहा है.
Bahut Achha
निशांत मिश्र - Nishant Mishra
आप के निवेदन को स्वीकार करते हुए माउस कर्सर फौलोवर हटा दिया गया है कृप्या ब्लॉग पर अपनी बहुमूल्य टिपण्णी दे और इसी प्रकार यदि आप को भविष्य मैं कोई परेशानी हो तो अवस्य बताये
हां अब ठीक है. वह ध्यान भटकाता था. सरलता-सहजता बनाए रखें. ब्लॉग बहुत उपयोगी है.
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश