इसे थोड़ा समझना पड़ेगा। और इसे हम न समझ पाएं, तो ईशावास्य के पहले और अंतिम सूत्र को भी नहीं समझ पाएंगे। एक चित्रकार एक चित्र बनाता है। अगर हम हिसाब लगाने बैठें, तो रंगों की कितनी कीमत होती है? कुछ ज्यादा नहीं। कैनवस की कितनी कीमत होती है? कुछ ज्यादा नहीं। लेकिन कोई भी श्रेष्ठ कृति, कोई भी श्रेष्ठ चित्र, रंग और कैनवस का जोड़ नहीं है, जोड़ से कुछ ज्यादा है-समथिंग मोर। एक कवि एक गीत लिखता है। उसके गीत में जो भी शब्द होते हैं, वे सभी शब्द सामान्य होते हैं। उन शब्दों को हम रोज बोलते हैं। शायद ही उस कविता में एकाध ऐसा शब्द मिल जाए जो हम न बोलते हों। न भी बोलते हों, तो परिचित तो होते हैं। फिर भी कोई कविता शब्दों का सिर्फ जोड़ नहीं है। शब्दों के जोड़ से कुछ ज्यादा है-समथिंग मोर। एक व्यक्ति सितार बजाता है। सितार को सुनकर हृदय पर जो परिणाम होते हैं, वे केवल ध्वनि के आघात नहीं हैं। ध्वनि के आघात से कुछ ज्यादा हम तक पहुंच जाता है। इसे ऐसा समझें-एक व्यक्ति आंख बंद करके आपके हाथ को प्रेम से छूता है, स्पर्श वही होता है; वही व्यक्ति क्रोध से भरकर आपके हाथ को छूता है, स्पर्श वही होता है। जहां तक स्पर्श के शारीरिक मूल्यांकन का सवाल है, दोनों स्पर्श में कोई बुनियादी फर्क नहीं होता। फिर भी जब कोई प्रेम से भरकर हृदय को छूता है, तो उसी छूने में से कुछ निकलता है जो बहुत भिन्न है। और जब कोई क्रोध से छूता है, तो कुछ निकलता है जो बिलकुल और है। और कोई अगर बिलकुल निष्पक्षता से, तटस्थता से छूता है, तो कुछ भी नहीं निकलता है। छूना एक सा है, स्पर्श एक सा है। अगर हम भौतिकशास्त्री से पूछने जाएंगे, तो वह कहेगा कि हाथ पर एक आदमी ने हाथ को छुआ, कितना दबाव पड़ा, दबाव नापा जा सकता है। हाथ पर कितना विद्युत का आघात पड़ा, वह भी नापा जा सकता है। एक हाथ से दूसरे हाथ में कितनी ऊष्मा, कितनी गर्मी गई, वह भी नापी जा सकती है। लेकिन वह ऊष्मा, वह हाथ का दबाव, किसी भी रास्ते से बता न सकेगा कि जिस आदमी ने छुआ उसने क्रोध से छुआ था कि प्रेम से छुआ था। फिर भी स्पर्श के भेद हम अनुभव करते हैं। निश्चित ही स्पर्श, केवल हाथ की गर्मी, हाथ का दबाव, विद्युत के प्रभाव का जोड़ नहीं है, कुछ ज्यादा है। जीवन कुछ श्रेष्ठतर गणित पर निर्भर है। यहां जिन चीजों को हमने जोड़ा था, उनसे नई चीज पैदा हो जाती है, उनसे श्रेष्ठतर का जन्म हो जाता है, उनसे महत्वपूर्ण पैदा हो जाता है। क्षुद्रतम से भी महत्वपूर्ण पैदा हो जाता है। जिंदगी साधारण गणित नहीं है। बहुत श्रेष्ठतर, गहरा, सूक्ष्म गणित है। ऐसा गणित है जहां आंकड़े बेकार हो जाते हैं। जहां गणित के जोड़ और घटाने के नियम बेकार हो जाते हैं। और जिस आदमी को गणित के पार, जिंदगी के रहस्य का पता नहीं है, उस आदमी को जिंदगी का कोई भी पता नहीं है
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| सोमवार, जून 28, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
कृपया पढने वाले पाठको से अनुरोध की बताये की लेख आपको कैसा लगा , क्या कोई तरीका है जिसके द्वारा डेस्कटॉप पर हिंदी मैं लिखा जा सकता है
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश