" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | शुक्रवार, जून 18, 2010 | 3 टिप्पणियाँ



हर व्यक्ति प्रेम चाहता है और यही गलत शुरुआत है

यह शारीरिक नहीं है; इसका नाता कहीं विश्रांति से है, पिघलने से है, पूरा मिट जाने से है। उन पलों में यह मिट जाता है अत: निश्चित ही यह शारीरिक नहीं। तुम्हें अधिक प्रेम देना सीखना होगा। यह केवल तुम्हारी समस्या नहीं है; थोड़ी या ज़्यादा, यह समस्या सभी की है।

एक बच्चा, एक छोटा बच्चा प्रेम नहीं कर सकता, कुछ कह नहीं सकता, कुछ कर नहीं सकता, कुछ दे नहीं सकता; बस ले सकता है। छोटे बच्चे का प्रेम का अनुभव केवल लेने का है: मां से, पिता से, बहनों से, भाइयों से, पड़ोसियों से, अजनबियों से-- बस लेने का अनुभव। तो पहला अनुभव जो उसके अचेतन तक पैठ जाता है वह प्रेम लेने का है। परंतु समस्या यह है कि हर व्यक्ति बच्चा रहा है और हर व्यक्ति के भीतर प्रेम पाने की आकांक्षा है; कोई भी किसी अलग ढंग से पैदा नहीं हुआ है। तो सभी मांग रहे हैं,"हमें प्रेम दो" लेकिन देने वाला कोई भी नहीं क्योंकि वे भी उसी तरह पैदा हुए हैं। हमें सजग व सचेत रहना चाहिए कि हम जन्म की यह अवस्था हमारे पूरे जीवन पर आच्छादित न हो जाए।

बजाये इसके कि तुम कहो कि"मुझे प्रेम दो", तुम प्रेम देना शुरु कर दो। मांगने की बात ही भूल जाओ। बस प्रेम बांटो। और मैं भरोसा दिलाता हूं कि तुम्हें और अधिक प्रेम मिलेगा।

परंतु तुम्हें लेने के बारे में सोचना ही नहीं है, कनखियों से भी नहीं देखना है कि तुम्हें प्रेम मिल रहा है या नहीं। वह भी खलल होगा। तुम केवल प्रेम दो, क्योंकि प्रेम देना बहुत सुंदर बात है और प्रेम मांगना इतनी बढ़िया बात नहीं है। यह एक बड़ा रहस्य है।

प्रेम देना बहुत सुंदर अनुभव है क्योंकि देने में तुम सम्राट हो जाते हो। लेना बहुत तुच्छ अनुभव है क्योंकि तुम भिखारी हो जाते हो। जहां तक प्रेम का प्रश्न है, भिखारी मत बनो, सम्राट रहो क्योंकि तुम्हारे भीतर यह गुणवत्ता असीम है। तुम जितना देना चाहो, दिए चले जा सकते हो। तुम यह चिंता मत करना कि यह चुक जाएगा, कि एक दिन तुम पाओगे कि "हे प्रभु, मेरे पास तो प्रेम देने के लिए बचा ही नहीं।"

प्रेम मात्रा नहीं, गुणवत्ता है, ऐसी गुणवत्ता-- जो देने से बढ़ती है और पकड़े रहने से मर जाती है। अत: इसे पूरी तरह लुटा दो। चिंता मत लो, किसे-- यह कंजूस व्यक्ति सोचता है: मैं उसे प्रेम दूंगा जिसमें अमुक गुण होंगे। तुम्हें पता ही नहीं कि तुम्हारे पास कितना प्रेम है… तुम भरे हुए बादल हो।

बादल यह चिंता नहीं लेता कि कहां बरसे। चट्टान हो कि उपवन या कि सागर-- कोई परवाह नहीं। यह स्वयं को हल्का करना चाहता है और वह निर्भारता ही विश्रांति है।
तो पहला रहस्य है: इसे मांगें मत, प्रतीक्षा मत करें कि कोई आएगा तो हम देंगे। बस दे दें।

अपना प्रेम किसी को भी दें-- किसी अजनबी को ही सही। प्रश्न यह नहीं है कि तुम कुछ बहुत कीमती दे रहे हो, कुछ भी, थोड़ी सी सहायता, और वह काफ़ी है। चौबीस घंटों में तुम जो भी करते हो उसे प्रेम से करो और तुम्हारे दिल की पीड़ा मिट जाएगी।

और क्योंकि तुम इतने प्रेमपूर्ण होओगे, लोग तुम्हें प्रेम करेंगे। यह स्वाभाविक नियम है।

तुम्हें वही मिलता है जो तुम देते हो। वास्तव में तुम उससे अधिक पाते हो जो तुम देते हो। देना सीखो और तुम पाओगे कि लोग तुम्हारे प्रति कितने प्रेमपूर्ण हैं-- वही लोग जिन्होंने तुम्हारे प्रति कभी ध्यान नहीं दिया। तुम्हारी समस्या यही है कि तुम्हारा दिल प्रेम से भरा है लेकिन तुम कंजूस रहे हो; वही प्रेम तुम्हारे दिल पर बोझ हो गया है। दिल को खुला रखने की बजाए तुम इसे पकड़े रहे तो कभी-कभार, किसी प्रेम की घड़ी में यह पीड़ा तिरोहित होने लगती है। पर एक घड़ी क्यों, एक-एक घड़ी क्यों नहीं?

यह केवल किसी जीते-जागते व्यक्ति की बात ही नहीं, तुम किसी कुर्सी को भी उतने प्रेमपूर्ण ढंग से छू सकते हो। इसका संबंध तुमसे है, वस्तु से नहीं।

तब तुम्हें गहन विश्रांति का अनुभव होगा और तुम्हारा एक अंश मिटने लगेगा-- जो बोझ है-- और तुम समग्र में पिघलने लगोगे। यह वास्तव में रोग है: सही अर्थों में डिस-ईज़--बोझ। यह रोग नहीं अत: कोई चिकित्सक तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता। यह मात्र तुम्हारे दिल के तनाव की अवस्था है जो अधिक से अधिक बांटना चाहता है। शायद तुम्हारे पास दूसरों से अधिक प्रेम है, शायद तुम उनसे अधिक भाग्यशाली हो और शायद तुम अपने भाग्य में स्वयं ही दुख पैदा कर रहे हो। यह प्रेम किसे दूं-- इस चिंता को छोड़ो और प्रेम बांटो।

बस बांटो, और तुम अपने भीतर असीम शांति व मौन का अनुभव करोगे। यही तुम्हारा ध्यान बन जाएगा।

ध्यान में उतरने की विभिन्न दिशाएं हैं; और शायद तुम्हारी दिशा यही हो।

3 पाठको ने कहा ...

  1. गुरु देव
    मानती हूँ प्रेम बाटना जीवन का सबसे सुखद अनुभव हैं बिना बदले मे प्रेम मांगे |लेकिन ये मानव मन एक बार तो कही आस कर ही बेठता हैं और जब अपनों से ही नहीं मिलता हैं ये प्रेम तो बड़ी तीखी वेदना होती हैं इस मन मे |क्या सम्राट को किसी से पाने का हक़ नहीं हैं ?

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