" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

Archive for 2011


अजहूँ चेत गंवार

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अजहूँ चेत गंवार

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गुरु की खोज जितनी सरल और सहज हम समझते है। शायद उतनी आसान नहीं है। गुरु की खोज एक प्रतीक्षा है। और गुरु तुम्‍हें दिखाया नहीं जा सकता। कोई नहीं कह सकता,’’यहां जाओ और तुम्‍हें तुम्‍हारा सद्गुरू मिल जायेगा। तुम्‍हें खोजना होगा, तुम्‍हें कष्‍ट झेलना होगा, क्‍योंकि कष्‍ट झेलने और खोजने के द्वारा ही तुम उसे देखने के योग्‍य हो जाओगे। तुम्‍हारी आंखे स्‍वच्‍छ हो जायेगी। आंसू गायब हो जायेगे। तुम्‍हारी आंखों के आगे आये बादल छंट जायेंगे और बोध होगा कि यह सद्गुरू है।

एक सूफी फकीर हुआ जुन्‍नैद वह अपनी जवानी के दिनों में जब गुरु को खोजने चला तो। वह एक बूढ़े फकीर के पास गया। और उससे कहने लगा ‘’मैंने सुना है आप सत्‍य को जानते है। मुझे कुछ राह दिखाईये। बूढ़े फकीर ने एक बार उसकी और देखा और कहा: तुमने सूना है कि मैं जानता हूं। तुम नहीं जानते की मैं जानता हूं।

जुन्‍नैद ने कहा: आपके प्रति मुझे कुछ अनुभूति नहीं हो रही है। लेकिन बस एक बात करें मुझे वह राह दिखायें जहां में अपने गुरु को खोज लूं। आपकी बड़ी कृपा होगी। वह बूढ़ा आदमी हंसा। और कहने लगा। जैसी तुम्‍हारी मर्जी: तब तुम्‍हीं बहुत भटकना और ढूंढना होगा। क्‍या इतना सहसा और धैर्य है तुम में।

जुन्‍नैद ने कहा: उस की चिंता आप जरा भी नहीं करे। वो मुझमें हे। मैं एक जनम क्‍या अनेक जन्‍म तक गुरु को खोज सकता हूं। बस आप मुझे वह तरीका बता दे। की गुरु कैसा दिखाता होगा। कैसे कपड़े पहने होगा।

फकीर ने कहा। तो तुम सभी तीर्थों पर जाओ मक्‍का, मदीना, काशी गिरनार…वहां तुम प्रत्‍येक साधु को देखा। जिसकी आंखों से प्रकाश झरता होगा। बड़ी-बड़ी उसकी जटाये बहुत लम्‍बी होगी। और एक हाथ वह आसमान की तरफ किये होगा। और वह एक नीम के वृक्ष के नीचे अकेला बैठा होगा। तुम उसके आस पास कस्‍तूरी की सुगंध पाओगे।

कहते है जुन्नैद बीस वर्ष तक यात्रा करता रहा। एक जगह से दूसरी जगह। बहुत कठिन मार्ग से चल कर गुप्‍त जगहों पर भी गया। जहां कही भी सुना की कोई गुरु रहता है। वह वहां गया। लेकिन उसे न तो वह पेड़ मिला और न ऐसी सुगन्‍ध ही मिली। न ही किसी की आँखो से प्रकाश झाँकता दिखाई दिया। जिस व्‍यक्‍तित्‍व की खोज कर रहा था वह मिलने वाला ही नहीं था। और उसके पास एक बना-बनाया फार्मूला ही था। जिससे वह तुरंत निर्णय कर लेता था। ‘’वह मेरा गुरु नहीं है’’। और वह आगे बढ़ जाता।

बीस वर्ष बाद वह एक खास वृक्ष के पास पहुंचा। गुरु वहां पर था। कस्‍तूरी की गंध भी महसूस हो रही थी उसके आस पास। हवा में शांति भी थी। उसकी आंखे प्रज्‍वलित थी प्रकाश से। उसकी आभा को उसने दुर से ही महसूस कर लिया। यही वह व्‍यक्‍ति है जिस की वह तलाश कर रहा था। पिछले बीस वर्ष से कहां नहीं खोजा इसे। जुन्‍नैद गुरु के चरणों पर गिर गया। आंखों से उसके आंसू की धार बहने लगी। ‘’गुरूदेव मैं आपको बीस वर्ष से खोज रहा हूं।‘’

गुरु ने उत्‍तर दिया, मैं भी बीस वर्ष से तुम्‍हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। देख जहां से तू चला था ये वहीं जगह हे। देख मेरी और। जब तू पहली बार मुझसे पूछने आया था। गुरु के विषय में। और तू तो भटकता रहा। ओर में यहां तेरा इंतजार कर रहा हूं। की तू कब आयेगा। मैं तेरे लिए मर भी नहीं सका। की तू जब थक कर आयेगा। और यह स्‍थान खाली मिला तो तेरा क्‍या होगा। जुन्‍नैद रोने लगा। और बोला। की आपने ऐसा क्‍यों किया। क्‍या आपने मेरे साथ मजाक किया था। आप पहले ही दिन कह सकते थे मैं तेरा गुरु हूं। बीस वर्ष बेकार कर दिये। आप ने मुझे रोक क्‍यों नहीं लिया।

बूढ़े आदमी ने जवाब दिया: उससे तुझे कोई मदद न मिलती। उसका कुछ उपयोग न हुआ होता। क्‍योंकि जब तक तुम्‍हारे पास आंखे नहीं है देखने के लिए। कुछ नहीं किया जा सकता। इन बीस वर्षों ने तुम्‍हारी मदद की है, मुझे देखने में। मैं वहीं व्‍यक्‍ति हूं। और अब तुम मुझे पहचान सके। अनुभूति पा सके। तुम्‍हारी आंखे निर्मल हो सकी। तुम देखने में सक्षम हो सके। तुम बदल गये। इन पिछले बीस वर्षों ने तुम्‍हें जोर से माँज दिया। सारी धूल छंट गई। तुम्‍हारा में स्फटिक हो गया। तुम्‍हारे नासापुट संवेदन शील हो उठे। जो इस कस्तूरी की सुगंध को महसूस कर सके। वरना तो कस्तूरी की सुगंध तो बीस साल पहले भी यहां थी। तुम्‍हारा ह्रदय स्‍पंदित हो गया है। उसमें प्रेम का मार्ग खुल गया है। वहां पर एक आसन निर्मित हो गया है। जहां तुम आपने प्रेमी को बिठा सकते हो। इस लिए संयोग संभव नहीं था तब।

तुम स्वय नही जानते। और कोई नहीं कहा सकता कि तुम्‍हारी श्रद्धा कहां घटित होगी। मैं नहीं कहता गुरु पर श्रद्धा करो। केवल इतना कहता हूं कि ऐसा व्यक्ति खोजों जहां श्रद्धा घटित होती है। वहीं व्‍यक्‍ति तुम्‍हारा गुरु है। और तुम कुछ कर नहीं सकते इसे घटित होने देने में। तुम्‍हें घूमना होगा। घटना घटित होनी निश्‍चित है लेकिन खोजना आवश्‍यक है। क्‍योंकि खोज तुम्‍हें तैयार करती है। ऐसा नहीं है खोज तुम तुम्‍हारे गुरु तक ले जाये। खोजना तुम्‍हें तैयार करता है ताकि तुम उसे देख सको। हो सकता है वह तुम्‍हारे बिलकुल नजदीक हो।

–ओशो

पतंजलि: योग-सूत्र

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प्रस्तुत है इस प्रवचन माला का अंतिम भाग

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अध्यात्म उपनिषद - भाग 16
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अध्यात्म उपनिषद - भाग 14
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अध्यात्म उपनिषद - भाग 13
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सभी पाठको को सपरिवार

होली

की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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अध्यात्म उपनिषद - भाग 12
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अध्यात्म उपनिषद - भाग 11
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अध्यात्म उपनिषद - भाग 8
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इस ब्लॉग का उद्देश्य टिप्पणिया प्राप्त करना नहीं है बल्कि

ओशो के संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाने का है

आप लोगो से निवेदन है कि इस ब्लॉग का ज्यादा से ज्यादा प्रचार करे

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इस ब्लॉग पर ओशो के प्रवचनों को औडियो के रूप मे उपलब्ध

करवाने का प्रयास किया किया है,

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अध्यात्म उपनिषद - भाग 5
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अध्यात्म उपनिषद - भाग 4
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अध्यात्म उपनिषद - भाग 3
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इस ब्लॉग पर ओशो के प्रवचनों को उपलब्ध करवाने का

प्रयास किया किया है,

कुछ पाठक चाहते है की इन प्रवचनों को

डाउनलोड करने की भी व्यवस्था की जाए


पर ये कैसे किया जाता है इस बारे मे कोई जानकारी नहीं

है यदि कोई इस विषय मे मदद कर सके तो आभार होगा


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आध्यात्म उपनिषद - भाग 2
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"सौ साल बाद लोग बिलकुल ठीक ढंग से ये जान पायेंगे कि मुझे ग़लत

क्यों समझा गया - क्योंकि मैं रहस्यवाद और अतर्क की शुरुआत हूं।

मैं अतीत से जुड़ा हुआ नहीं हूं, अतीत मुझे समझ न पायेगा!

केवल भविष्य मुझे जान पायेगा।"


ओशो


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अध्यात्म
उपनिषद - प्रवचन

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"मैं कोई नहीं हूं। तो मेरा किसी राष्ट्र से संबंध है किसी धर्म से और किसी राजनैतिक

पार्टी से। मैं बस एक व्यक्ति हूं, जैसा मुझे अस्तित्व ने बनाया है। मैंने अपने आप

को किसी भी मूर्खतापूर्ण सिद्धांत से अलग रखा है-वह चाहे धार्मिक हो,

राजनैतिक, सामाजिक या वित्त संबंधी। और चमत्कार यह है

कि क्योंकि मेरी आंखों पर इन सब के चश्मों का बोझ

नहीं है, इनका पर्दा पड़ा है,

मैं साफ देख सकता

हूं।"



ओशो
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX

आदतें - ओशो प्रवचन

XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
ओशो के प्रवचनों को औडियो के रूप मे ब्लॉग पर उपलब्ध करवाने का एक छोटा सा प्रयास

किया
है,यदि ये प्रयास सफल रहा तो जल्द ही आपको ओशो के कहे सारे शब्द इस

ब्लॉग
पर मिलेंगे ... ये प्रयास आपको कैसा लगा आप जरूर बताए

XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX

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गलत तपस्वी सिर्फ आदत बनाता है तप की। ठीक तपस्वी स्वभाव को खोजता है, आदत नहीं बनाता। हैबिट और नेचर का फर्क समझ लें। हम सब आदतें बनवाते है। हम बच्चे को कहते हैक्रोध मत करो, क्रोध की आदत बुरी है। क्रोध करने की आदत बनाओ। वहन क्रोध करने की आदत तो बना लेता है, लेकिन उससे क्रोध नष् नहीं होता। क्रोध भीतर चलता रहता है। कामवासना पकड़ती है तो हम कहते है कि ब्रह्मचर्य की आदत बनाओ। वह आदत बन जाती है। लेकिन कामवासना भीतर सरकती रहती है, वह नीचे की तरफ बहती रहती है। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तपस्वी खोजता हैस्वभाव के सूत्र को, ताओ को, धर्म को। वह क्या है जो मेरा स्वभाव हे, उसे खोजता है। सब आदतों को हटाकर वह अपने स्वभाव को दर्शन करता है। लेकिन आदतों को हटाने का एक ही उपाय हैध्यान मत दो, आदत पर ध्यान मत दो।

एक मित्र चार छह दिन पहले मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि आप कहते है कि बम्बई में रहकर, और ध्यान हो सकता है। यह सड़क का क्या करें, भोंपू का क्या करें। ट्रेन जा रही है, सीटी बज रही है, बच्चे आस पास शोर मचा रहे है, इसका क्या करें?

मैंने कहाध्यान मत दो।

उन्होंने कहाकैसे ध्यान दें। खोपड़ी पर भोंपू बज रहा है, नीचे कोई हार्न बजाएं जा रहा है, ध्यान कैसे दें।

मैंने कहाएक प्रयास करो। भोंपू कोई नीचे बजाये जा रहा है, उसे भोंपू बजाने दो। तुम ऐसे बैठे रहो, कोई प्रतिक्रिया मत करो कि भोंपू अच्छा है कि भोंपू बुरा है। कि बजाने वाला दुश्मन कि बजाने वाला मित्र हे। कि इसका सिर तोड़ देंगे अगर आगे बजाया। कुछ प्रति क्रिया मत करो। तुम बैठे रहो, सुनते रहो। सिर्फ सुनो। थोड़ी देर में तुम पाओगे कि भोंपू बजता भी हो तो भी तुम्हारे लिए बजना बन् हो जाएगा। ऐक्सैप्टैंस इट, स्वीकार करो।

जिस आदम को बदलना हो उसे स्वीकार कर लो। उससे लड़ों मत। स्वीकार कर लो, जिसे हम स्वीकार लेते है उस पर ध्यान देना बन् हो जाता है। क्या आपका पता है किसी स्त्री के आप प्रेम में हों उस पर ध्यान होता है। फिर विवाह करके उसको पत्नी बना लिया, फिर वह स्वीकृत हो गयी। फिर ध्यान बंद हो जाता है। जिस चीज को हम स्वीकार लेते है एक कार आपके पास नहीं है वह सड़क पर निकलती है चमकती हुई,ध्यान खींचती है। फिर आपको मिल गयी, फिर आप उसमे बैठ गये है। फिर थोड़े दिन में आपको ख्याल ही नहीं आता है कि वह कार भी है, चारों तरफ जो ध्यान को खींचती थी। वह स्वीकार हो गयी।

जो चीज स्वीकृत हो जाती है उस पर ध्यान बन् हो जाता है। स्वीकार कर लो, जो है उसे स्वीकार कर लो अपने बुरे से बुरे हिस्से को भी स्वीकार कर लो। ध्यान बन् कर दो, ध्यान मत दो। उसको ऊर्जा मिलनी बंद हो जायेगी। वह धीरे-धीरे अपने आप क्षीण होकर सिकुड़ जाएगी,टूट जाएगी। और जो बचेगी ऊर्जा, उसका प्रवाह अपने आप भीतर की तरफ होना शुरू हो जायेगा।

गलत तपस्वी उन्हीं चीजों पर ध्यान देता है जिन पर भोगी देता है। सही तपस्वी….ठीक तप की प्रक्रियाध्यान का रूपांतरण है। वह उन चीजों पर ध्यान देता है। जिन पर भोगी ध्यान देता है, तथा कथित त्यागी ध्यान देता है। वह धान को ही बदल देता है। और ध्यान हमार हमारे हाथ में है। हम वहीं देते है जहां हम देना चाहते है।

अभी यहां हम बैठे है, आप मुझे सुन रहे है। अभी यहां आग लग जाए मकान में,आप एकदम भूल जाएंगे कि सुन रहे थे, की कोई बोल रहा था, सब भूल जाएंगे। आग पर ध्यान दौड़ जाएगा, बहार निकल जाएंगे। भूल ही जाएंगे कि कुछ सुन रहे थे। सुनने का कोई सवाल ही रह जाएगा। ध्यान प्रतिपल बदल सकता है। सिर्फ नए बिन्दु उसको मिलने चाहिए। आग मिल गयी, वह ज्यादा जरूरी हे जीवन को बचाने के लिए। आग हो गयी, तो तत्काल ध्यान वहीं दौड़ जाएगा। आप के भीतर तप की प्रक्रिया में उन नए बिन्दुओं और केन्द्रों की तलाश करनी है जहां ध्यान दौड़ जाए और जहां नए केन्द्र सशक् होने लगें। इसलिए तपस्वी कमजोर नहीं होता, शक्तिशाली हो जाता है। गलत तपस्वी कमजोर हो जाता है। गलत तपस्वी कमजोर होकर सोचता हे कह हम जीत लेंगे और भ्रांति पैदा होती है जीतने की

ओशो

महावीर वाणी

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