न किसी धर्म से। क्योंकि यदि आप किसी एक देश से जुड़े है तो फिर सबसे
नहीं जुड़ सकते। यदि आप किसी एक धर्म से जुड़े हैं तो सब धर्म
आपके नहीं हो सकते। मैं किसी एक से नहीं जुड़ा हूं। मेरी
जड़ें न किसी एक देश मैं हैं, न किसी एक धर्म
में न किसी विशेष मानव
जाति में ।"
अच्छे विचार .
अद्भुद !
ओशो का हस्ताक्षर मुझे अत्यंत प्रिय है ... संभव हो तो ब्लॉग पर लगाएं ... प्रेम!
अच्छे विचार . अद्भुद !
बहुत अच्छे विचार है ओशो के इन विचारो से अवगत करने के लिए आभार ....
अच्छे विचार है , दिल से धन्यवाद
बहुत बढ़िया प्रस्तुति। आभार।
धन्यवाद आपका ओशो के इन सुंदर विचारो से रु-ब-रु करने के लिए........ आगे भी अच्छा लिखते रहिये .......
बहुत सुन्दर विचार
सच
अदभुत है ये
आलेख
sundar aalekh!
sundar aalekh!
faith works wonders....
सनातर धर्म को अगर सही में समझना है तो हर शब्द को उसे अर्थ देने वाले की बातों को पढ़ना ही पढ़ेगा। अदभुत है
जी ओशो सच कहते हैं
likhte rahen!!!!
subhkamnayen
ओशो का चिन्तन जीवन की गहराई से उपजता है, उनके कई सूत्र बहुत प्रभावित करते है, मेरे पास भी ध्यानयोग पर उनकी पुस्तकें हैं। बहुत अच्छी पोस्ट। धन्यवाद।
अति सुन्दर
very nice
very nice
क्या प्यारे "ओशो" के बोले गये एक भी शब्द पर कोई टिप्पणी दी जा सकती है?
बस इतना ही कह सकता हूँ कि हमें उनके प्रवचन पढवाने के लिये हार्दिक आभार
प्रणाम स्वीकार करें
क्या प्यारे "ओशो" के बोले गये एक भी शब्द पर कोई टिप्पणी दी जा सकती है?
बस इतना ही कह सकता हूँ कि हमें उनके प्रवचन पढवाने के लिये हार्दिक आभार
प्रणाम स्वीकार करें
ati uttam
aman jeet singh,,
ज्ञानवर्धक प्रस्तुति .......
नये तरीके से सोचने और समझने की शक्ति देता है ओशो का लिखा ....