" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | गुरुवार, अगस्त 26, 2010 | 17 टिप्पणियाँ


एक जंगल की राह से एक जौहरी गुजर रहा था। देखा उसने राह में। एक कुम्‍हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है। चकित हुआ। ये देख कर की ये कितना मुर्ख है। क्‍या इसे पता नहीं है की ये लाखों का हीरा है। और गधे के गले में सजाने के लिए बाँध रखा है। पूछा उसने कुम्‍हार से, सुनो ये पत्‍थर जो तुम गधे के गले में बांधे हो इसके कितने पैसे लोगे? कुम्‍हार ने कहां महाराज इस के क्‍या दाम पर चलो आप इस के आठ आने दे दो। हमनें तो ऐसे ही बाँध दिया था। की गधे का गला सुना न लगे। बच्‍चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की और से ल जाएँगे। बच्‍चे भी खुश हो जायेंगे और शायद गधा भी की उसके गले का बोझ कम हो गया है। पर जौहरी तो जौहरी ही था, पक्‍का बनिया, उसे लोभ पकड़ गया। उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्‍यादा है। तू इस के चार आने ले ले।

कुम्‍हार भी थोड़ा झक्‍की था। वह ज़िद्द पकड़ गया कि नहीं देने हो तो आठ आने नहीं देने है तो कम से कम छ: आने तो दे ही दो, नहीं तो हम नहीं बचेंगे। जौहरी ने कहा पत्‍थर ही तो है चार आने कोई कम तो नहीं। और सोचा थोड़ी दुर चलने पर आवाज दे देगा। आगे चला गया। लेकिन आधा फरलांग चलने के बाद भी कुम्हार ने उसे आवज न दी तब उसे लगा बात बिगड़ गई। नाहक छोड़ा छ: आने में ही ले लेता तो ठीक था। जौहरी वापस लौटकर आया। लेकिन तब तक बाजी हाथ से जा चुकी थी। गधा खड़ा आराम कर रहा था। और कुम्हार अपने काम में लगा था। जौहरी ने पूछा क्‍या हुआ। पत्‍थर कहां है। कुम्‍हार ने हंसते हुए कहां महाराज एक रूपया मिला है उस पत्‍थर का। पूरा आठ आने का फायदा हुआ है। आपको छ आने में बेच देता तो कितना घाटा होता। और अपने काम में लग गया।

पर जौहरी के तो माथे पर पसीना आ गया। उसका तो दिल बैठा जा रहा था सोच-सोच कर। हया लाखों का हीरा यूं मेरी नादानी की वजह से हाथ से चला गया। उसने कहा मूर्ख, तू बिलकुल गधे का गधा ही रहा। जानता है उस की कीमत कितनी है वह लाखों का था। और तूने एक रूपये में बेच दिया, मानो बहुत बड़ा खजाना तेरे हाथ लग गया।

उस कुम्‍हार ने कहां, हुजूर में अगर गधा न होता तो क्‍या इतना कीमती पत्‍थर गधे के गले में बाँध कर घूमता। लेकिन आपके लिए क्‍या कहूं? आप तो गधे के भी गधे निकले। आपको तो पता ही था की लाखों का हीरा है। और आप उस के छ: आने देने को तैयार नहीं थे। आप पत्‍थर की कीमत पर भी लेने को तैयार नहीं हुए।

यदि इन्सान को कोई वास्तु आधे दाम में भी मिले तो भी वो उसके लिए मोलभाव जरुर करेगा, क्योकि लालच हर इन्सान के दिल में होता है . कहते है न चोर चोरी से जाये हेरा फेरी से न जाये. जोहरी ने अपने लालच के कारण अच्छा सोदा गवा दिया

धर्म का जिसे पता है; उसका जीवन अगर रूपांतरित न हो तो उस जौहरी की भांति गधा है। जिन्‍हें पता नहीं है, वे क्षमा के योग्‍य है, लेकिन जिन्‍हें पता है। उनको क्‍या कहें?

17 पाठको ने कहा ...

  1. M says:

    अच्छा लगा लेख पढ़कर ..

  2. Basant Sager says:

    ओशो ने इस छोटी सी कहानी से बहुत बड़ी बात कही है ......... अच्छी प्रस्तुति

  3. Usman says:

    लालच इन्सान को अँधा बना देता है .......

  4. Urmi says:

    आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    हर इंसान को संतुष्ट होना चाहिए क्यूंकि लालच इंसान को ख़त्म कर देता है इसलिए ये कहावत है की "लालच बुरी बला है"!

  5. ओशो पर आपका ब्लोग बहुत सुन्दर है. मुझे आज ही इसका पता मिला, दिव्या की पोस्ट पर, अब तो आते ही रहेंगें.

    ओशो एक क्रांति का नाम है.

    अहोभाव!

  6. ओशो के विचार हम सब तक पहुंचाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । यह बोधकथा भी अच्‍छी है। आप सचमुच एक अच्‍छा काम कर रहे हैं।

  7. बेनामी says:

    VERY NICE POST

  8. आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. ओशो का संदेश देता है। लेकिन एक बात खटक रही है कि ओशो को मानने वाले को अपना नाम छुपाने की क्या आवश्यकता है ! जब आप दूसरे की ब्लॉग में कमेंट करते हैं तो ओशो रजनीश और उनकी तश्वीर सामने आती है। स्पष्टतः यह दिखाई देता है कि ओशो कह रहे हैं जबकि ऐसा होता नहीं, कमेंट तो आप कर रहे होते हैं। विचार भी आपके होते हैं। कहिं ऐसा तो नहीं कि अनजाने में आप ओशो की छवि के साथ अन्याय कर रहे हैं..!

  9. @ बेचैन आत्मा जी,
    मैं आप के विचारो से सहमत हूँ लेकिन आप जानते होंगे की copyright जैसे किसी भी पचड़े में न फसने के लिए ऐसा करना पड़ रहा है, और फिर ओशो कहते है की नाम में क्या रखा है . हमें सिर्फ अपना कर्म करना है . ...............
    धन्यवाद आपका जो आप इस ब्लॉग पर पधारे .

  10. उन सभी पाठको का बहुत - २ धन्यवाद जिन्होंने अपनी बहुमूल्य
    टिपण्णी यहा दी है और साथ ही उनका भी जो इस ब्लॉग पर आये .
    और fillow करने वालो का बहुत - २ शुक्रिया ..........

  11. Sachin says:

    अछि बाते लिखते है ओशो ......

  12. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

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