" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | शनिवार, अगस्त 28, 2010 | 23 टिप्पणियाँ


अकबर ने एक दिन तानसेन को कहा, तुम्‍हारे संगीत को सुनता हूं, तो मन में ऐसा ख्‍याल उठता है कि तुम जैसा गाने वाला शायद ही इस पृथ्‍वी पर कभी हुआ हो और न हो सकेगा। क्‍योंकि इससे ऊंचाई और क्‍या हो सकेगी। इसकी धारणा भी नहीं बनती। तुम शिखर हो। लेकिन कल रात जब तुम्‍हें विदा किया था, और सोने लगा तब अचानक ख्‍याल आया। हो सकता है, तुमने भी किसी से सीखा है, तुम्‍हारा भी कोई गुरू होगा। तो मैं आज तुमसे पूछता हूं। कि तुम्‍हारा कोई गुरू है? तुमने किसी से सीखा है?
तो तानसेन ने कहा, मैं कुछ भी नहीं हूं गुरु के सामने, जिससे सीखा है। उसके चरणों की धूल भी नहीं हूं। इसलिए वह ख्‍याल मन से छोड़ दो। शिखर? भूमि पर भी नहीं हूं। लेकिन आपने मुझ ही जाना है। इसलिए आपको शिखर मालूम पड़ता हूं। ऊँट जब पहाड़ के करीब आता है, तब उसे पता चलता है, अन्यथा वह पहाड़ होता ही है। पर तानसेन, ने कहां कि मैं गुरु के चरणों में बैठा हूं; मैं कुछ भी नहीं हूं। कभी उनके चरणों में बैठने की योग्‍यता भी हो जाए, तो समझूंगा बहुत कुछ पा लिया।
तो अकबर ने कहा, तुम्‍हारे गुरु जीवित हों तो तत्‍क्षण, अभी और आज उन्‍हें ले आओ। मैं सुनना चाहूंगा।
पर तानसेन ने कहा: यही तो कठिनाई है। जीवित वे है, लेकिन उन्‍हें लाया नहीं जा सकता हे।
अकबर ने कहा, जो भी भेट करना हो, तैयारी है। जो भी। जो भी इच्‍छा हो, देंगे। तुम जो कहो, वहीं देंगे। तानसेन ने कहा, वही कठिनाई है, क्‍योंकि उन्‍हें कुछ लेने को राज़ी नहीं किया जा सकता। क्‍योंकि वह कुछ लेने का प्रश्‍न ही नहीं है।
अकबर ने कहा, कुछ लेने का प्रश्‍न नहीं है तो क्‍या उपाय किया जाए? तानसेन ने कहा, कोई उपाय नहीं, आपको ही चलना पड़े। तो उन्‍होंने कहा,मैं अभी चलने को तैयार हूं।
तानसेन ने कहा, अभी चलने से तो कोई सार नहीं है। क्‍योंकि कहने से वह गायें गे नहीं। ऐसा नहीं है वे गाते बजाते नहीं है। तब कोई सन ले बात और है। तो मैं पता लगाता हूं, कि वह कब गाते-बजाते है। तब हम चलेंगे।
पता चला—हरिदास फकीर उसके गुरू थे। यमुना के किनारे रहते थे। पता चला रात तीन बजे उठकर वह गाते है। नाचते हे। तो शायद ही दुनिया के किसी अकबर की हैसियत के सम्राट ने तीन बजे रात चोरी से किसी संगीतज्ञ को सुना हो। अकबर और तानसेन चोरी से झोपड़ी के बाहर ठंडी रात में छिपकर बैठ गये। पूरी रात इंतजार करेने के बाद सुबह जब बाबा हरिदास ने भक्ति भाव में गीत गया और मस्‍त हो कर डोलने लगे। तब अकबर की आंखों से झर-झर आंसू गिर रहे थे। वह केवल मंत्र मुग्ध हो कर सुनते रहे एक शब्‍द भी नहीं बोले।
संगीत बंद हुआ। वापस घर जाने लगे। सुबह की लाली आसमान पर फैल रही थी। अकबर शांत मौन चलते रहे। रास्‍ते भर तानसेन से भी नहीं बोले। महल के द्वार पर जाकर तानसेन से केवल इतना कहां- अब तक सोचता था कि तुम जैसा कोई भी नहीं गा बजा सकता है। यह मेरा भ्रम आज टुट गया। अब सोचता हूं कि तुम हो कहां। लेकिन क्‍या बात है? तुम अपने गुरु जैसा क्‍यों नहीं गा सकते हो?
तानसेन न कहा, बात तो बहुत साफ है। मैं कुछ पाने की लिए बजाता हूं और मेरे गुरु ने कुछ पा लिया है। इसलिए बजाते गाते है। मेरे बजाने के आगे कुछ लक्ष्‍य है। जो मुझे मिल उसमें मेरे प्राण है। इसलिए बजाने में मेरे प्राण पूरे कभी नहीं हो पाते। बजाते-गाते समय में सदा अधूरा रहता हूं। अंश हूं। अगर बिना गाए-बजाएं भी मुझे वह मिल जाए जो गाने से मिलता है। तो गाने-बजाने को फेंककर उसे पा लुंगा। गाने मेरे लिए साधन है। साध्‍य नहीं। साध्‍य कहीं और है—भविष्‍य में, धन में, यश में, प्रतिष्‍ठा में—साध्‍य कहीं और है। संगीत सिर्फ साधन है। साधन कभी आत्‍मा नहीं बन सकता; साध्‍य में ही आत्‍मा का वास होता है। अगर साध्य बिना साधन के मिल जाए, तो साध को छोड़ दूँ अभी। लेकिन नहीं मिलता साधन के बिना, इसलिए साधन को खींचता हूं। लेकिन दृष्‍टि और प्राण और आकांशा ओर सब घूमता है साध्य के निकट। लेकिन जिनको आप सुनकर आ रहे है। संगीत उनके लिए कुछ पाने का साधन नहीं है। आगे कुछ भी है जिसे पाने को वह गा-बजा रहे हे। बल्‍कि पीछे कुछ है। वह बह रहा है। जिससे उनका संगीत फूट रहा है। और बज रहा है। कुछ पा लिया है, कुछ भर गया है। वह बह रहा है। कोई अनुभूति, कोई सत्‍य, कोई परमात्‍मा प्राणों में भर गया है। अब वह बह रहा है। पैमाना छलक रहा है आनंद का। उत्‍सव का।
अकबर बार-बार पूछने लगा, किस लिए? किस लिए?
स्‍वभावत: हम भी पूछते है। किस लिए? पर तानसेन ने कहा, नदिया किस लिए बह रही है? फूल किस लिए खिल रहे है? चाँद-सूरज किस लिए चमक रहे है? जीवन किस लिए बह रहा है?
किस लिए मनुष्‍य की बुद्धि ने पैदा किया है । सारा जगत ओवर फ्लोइंग है, आदमी को छोड़कर। सारा जगत आगे के लिए नहीं जी रहा है। सारा जगत भीतर से जी रहा है। फूल खिल रहे। खिलनें का आनंद है। सूर्य निकलता है। निकलने में आनंद है। पक्षी गीत गा रहे है। गाने में आनंद है। हवाएँ बह रही है, चाँद-तारे,आकाश गंगाए चमक रही है। चारों तरफ एक उत्सव का माहौल है। पर आदमी इसके बीच कैसा पत्थर और बेजान सा हो गया है। आनंद अभी है, यही है, स्‍वय में विराजने में है अपने होने में है। अभी और यही। ऐसे थे फकीर संत हरी दास।

23 पाठको ने कहा ...

  1. Urmi says:

    बहुत सुन्दरता से आपने हर एक शब्द लिखा है! आख़िर अकबर का भ्रम दूर हो गया जब की वो ये सोचते थे की तानसेन से अच्छा और कोई गा नहीं सकता! संगीत सिर्फ साधन है और ये बात सौ फीसदी सही है और इसे कोई खरीद नहीं सकता । आजकल हर इंसान की ज़िन्दगी मशीन के जैसा हो गया है जिसमें खुशियाँ आने पर भी उसका आनंद नहीं ले पाते!

  2. manu says:

    aap hain..
    itnaa hi kaafi hai....

    hamaare liye...


    aap hamaaraa jeewan jee nahin sakeinge..

    isiliye..apko commnets karte hain ham..

  3. Basant Sager says:

    आज के युग में इंसान सिर्फ आगे की सोचकर जीता है,
    उसे भविष्य की चिंता है जबकि वो ये नहीं जनता कि
    वो आने वाले कल के लिए अपने आज को खो रहा है ......अच्छा लिखा है

  4. बेनामी says:

    very nice article

    Aman jeet singh

  5. Usman says:

    सही कहा ......अच्छा लिखा है

  6. anshumala says:

    bahut achchi or sahi bat kahi hai aapne (tansen ne )

  7. बहुत अच्छा किया जो आपने ओशो का ब्लाग बनाया हम जैसों को बहुत लाभ मिलेगा।

  8. M says:

    बहुत ही अच्छी कहानी है .......और इसके द्वारा कही गयी बात और भी सुंदर है .......

  9. जिन्दगी का आनंद किसी चीज से ख़रीदा नहीं जा सकता है , बहुत ही अच्छी बात कहीं है तानसेन ने .........

  10. एक समय ऐसा भी था की ओशो के क्रांतिकारी विचारों के में भी दीवाना था....

  11. आनंदित हुआ इस प्रसंग को पढकर!!इससे अधिक कुछ भी कहना धृष्टता होगी!!!

  12. hem pandey says:

    सुन्दर बोध कथा.

  13. तुमसे मिलके मुझको महसूस यूँ हुआ
    बरसों के बाद जैसे हमसे मिले हों हम

  14. nice thoughts captured through an anecdote!
    subhkamnaten:)

  15. Sachin says:

    अच्छी बात कही है कहानी के द्वारा ...

  16. jnaab shiksha prd lekh he shi khaa aek se bdh kr aek hen. osho kaa saahity ho to men pdhnaa chaahta hun kese bhejoge pliz bhejoge naa vrnaa upr jaakr to men unse svrg yaa nrk me se le hi lunga . akhtar khan akela kota rajsthan

  17. शुक्रिया आप सभी पाठको का जो आपने मुझे इतना प्रोत्साहित किया ...

  18. बहुत अच्छा लगा ओशो के विचार पढ़कर. आपका बहुत आभार प्रस्तुत करने के लिए.

  19. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

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