" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | मंगलवार, अगस्त 03, 2010 | 7 टिप्पणियाँ


साधारण आदमी-जब उसके जीवन में दुख आता है, तब शिकायत करता है। सुख आता है तब धन्यवाद नहीं देता। जब दुख आता है, तब वह कहता है किकहीं कुछ भूल हो रही है। परमात्मा नाराज है। भाग्य विपरीत है।और जब सुख आता है, तब वह कहगता है कियह मेरी विजय है।

मुल्ला नसरुद्दीन एक प्रदर्शनी में गया-अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर। उस प्रदर्शनी में एक जुए का खेल चल रहा था। लोग तीर चला रहे थे धनुष से और एक निशाने पर चोट मार रहे थे। निशाने पर चोट लग जाये तो जितना दांव पर लगाते थे, उससे दस गुना उन्हें मिल जाता था। निशाने पर चोट लगे, तो जो उन्होंने दांव पर लगाया, वह खो जाता।
नसरुद्दीन अपने विद्यार्थियों के साथ पहुँचा; उसने अपनी टोपी सम्हाली; धनुष बाण उठाया; दांव लगाया और पहला तीर छोड़ा तीर पहुंचा ही नहीं-निशान तक। लगने की बात दूर, वह कोई दस-पंद्रह फीट पहले गिर गया। लोग हंसने लगे। नसरुद्दीन ने अपने विद्यार्थियों से कहा, ‘‘इन नासमझों की हंसी की फिक्र मत करो। अब तुम्हें समझाता हूं कि तीर क्यों गिरा।लोग भी चौंककर खड़े हो गये। वह जो जुआ खिलाने वाला था, वह भी चौंककर रह गया। बात ही भूल गया। नसरुद्दीन ने कहा, ‘‘देखो, यह उस, सिपाही का तीर है, जिसको आत्मा पर भरोसा नहीं-जिसको आत्म-विश्वास नहीं। वह पहुंचता ही नहीं है-लक्ष्य तक; पहले ही गिर जाता है। अब तुम दूसरा तीर देखो।

सभी लोग उत्सुक हो गये। उसने दूसरी तीर प्रत्यंचा पर रखा और तेजी से चलाया। वह तीर निशान से बहुत आगे गया। इस बार लोग हंसे नहीं। नसरुद्दीन ने कहा, ‘देखो, यह उस आदमी का तीर है, जो जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ है।और तब उसने तीसरा तीर उठाया और संयोग की बात कि वह जाकर निशान से लग गया। नसरुद्दीन ने जाकर अपना दांव उठाया और कहा, ‘दस गुने रुपये दो।भीड़ में थोड़ी फुसुसाहट हुई और लोगों ने पूछा, ‘‘और यह किसका तीर है ?’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘‘यह मेरा तीर है। पहला तीर उस सिपाही का था, जिसको आत्म-विश्वास नहीं है। दूसरा, उस सिपाही का था, जिसको ज्यादा आत्म-विश्वास है। और तीसरा-जो लग गया, वह मेरा तीर है।

यही साधारण मनोदशा है। जब तीर लग जाये, तो तुम्हारा; चूक जाये, तो कोई और जिम्मेवार है। और जब तुम किसी को जिम्मेवार खोज सको, तो परमात्मा जिम्मेवार है ! जब तक तुम दृश्य जगत में किसी को जिम्मेदार खोज लेते हो, तब तक अपने दुख उस पर डाल देते हो। अगर दृश्य जगत में तुम्हें कोई जिम्मेवार दिखाई पड़े तब भी तुम जिम्मेवारी अपने कंधे पर तो नहीं ले सकते; तब परमात्मा तुम्हारे काम आता है। वह तुम्हारे बोझ को अपने कंधे पर ढोता है।
तुमने परमात्मा को अपने दुखों से ढांक दिया है। अगर वह दिखाई नहीं पड़ता है, तो हो सकता है, सबने मिलकर इतने दुख उस पर ढांक दिये हैं कि वह ढंक गया है; और उसे खोजना मुश्किल है।

7 पाठको ने कहा ...

  1. Basant Sager says:

    यह मनुष्य का स्वभाव है जो असफलता को सहन नहीं कर सकता . बहुत अच्छा लगा पोस्ट को पढ़कर . लिखते रहिये . आभार इस लेखन के लिए

  2. भाई अद्भुत है, मजेदार, जारी रखें.

  3. बहुत-बहुत शुक्रिया, आप सभी का

  4. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

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