गंगा के प्रतीक को भी समझने जैसा है। गंगा के साथ हिंदू मन बड़े गहरे में जुड़ा है। गंगा को हम भारत से हटा लें, तो भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए । सब बचा रहे, गंगा हट जाए, भारत को भारत कहना मुशिकल हो जाए। गंगा को हटा ले तो भारत का साहित्य अधूरा पड़ जाए। गंगा को हम हटा ले तो हमारे तीर्थ ही खो जाए, हमारे सारे तीर्थ की भावना खो जाए।
गंगा के साथ भारत के प्राण बड़े पुराने दिनों से कमिटेड़ है। बड़े गहरे से जुडे है। गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है। मुल्क की भी अगर कोई आत्मा होती हो और उसके प्रतीक होते हो तो, गंगा ही हमारा प्रतीक है। पर क्या कारण होगा गंगा के इस गहरे प्रतीक बन जाने का कि हजारों-हजारों वर्ष पहले कृष्ण भी कहते है। नदियों में मैं गंगा हूं।
गंगा कोई नदियों में विशेष विशाल उस अर्थ में नहीं है। गंगा से बड़ी नदिया है। गंगा से लंबी नदिया है। गंगा से विशाल नदिया पृथ्वी पर है। गंगा कोई लंबाई में, विशालता में, चौड़ाई में किसी दृष्टि् से बहुत बड़ी गंगा नहीं है। कोई बहुत बड़ी नदी नहीं है। ब्रह्मपुत्र है, और अमेजान है, और ह्व्गांहो है। और सैकड़ों नदिया है। जिसके सामने गंगा फीकी पड़ जाए।
पर गंगा के पास कुछ और है, जो पृथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है। और उस कुछ के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ ताल-मेल बना लिया है। एक तो बहुत मजे की बात है। कि पूरी पृथ्वीं पर गंगा सबसे ज्यादा जीवंत नदी है, अलाइव। सारी नदियों का पानी आप बोतल में भर कर रख दें, सभी नदियों का पानी सड़ जाएगा। गंगा का नहीं सड़ेगा। केमिकली गंगा बहुत विशिष्ट है। उसका पानी डिटरिओरेट नहीं होता, सड़ता नहीं, वर्षों रखा रहे। बंद बोतल में भी वह अपनी पवित्रता, अपनी स्वच्छाता कायम रखता है।
ऐसा किसी नदी का पानी पूरी पृथ्वी पर नहीं है। सभी नदियों के पानी इस अर्थों में कमजोर है। गंगा का पानी इस अर्थ में विशेष मालूम पड़ता है। उसका विशेष केमिकल गुण मालूम पड़ता है।
गंगा में इतनी लाशें हम फेंकते है। गंगा में हमने हजारों-हजारों वर्षों से लाशें बहाई है। अकेले गंगा के पानी में, सब कुछ लीन हो जाता है, हड्डी भी। दुनिया की किसी नदी में वैसी क्षमता नहीं है। हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है। और बह जाती है और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती। गंगा सभी को आत्मसात कर लेती है। हड्डी को भी। कोई भी दूसरे पानी में लाश को हम डालेंगे, पानी सड़ेगा। पानी कमजोर और लाश मजबूत पड़ती है। गंगा में लाश को हम डालते है, लाश ही बिखर जाती है। मिल जाती है अपने तत्वों में। गंगा अछूती बहती रहती है। उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
गंगा के पानी की बड़ी केमिकल परीक्षाएं हुई है । और अब तो यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गया है कि उसका पानी असाधारण है।
यह क्यों है असाधारण, यह भी थोड़ी हैरानी की बात है, क्योंकि जहां से गंगा निकलती है वहां से बहुत नदियों निकलती है। गंगा जिन पहाड़ों से गुजरती है वहां से कई नदियों गुजरती है। तो गंगा में जो खनिज और जो तत्व मिलते है वे और नदियों में भी मिलते है। फिर गंगा में कोई गंगा का ही पानी तो नहीं होता, गंगोत्री से तो बहुत छोटी-सी धारा निकलती है। फिर और तो सब दूसरी नदियों का पानी ही गंगा में आता है। विराट धारा तो दूसरी नदियों के पानी की ही होती है।
लेकिन यह बड़े मजे की बात है कि जो नदी गंगा में नहीं मिली, उस वक्त उसके पानी का गुणधर्म और होता है। और गंगा में मिल जाने के बाद उसी पानी का गुण धर्म और हो जाता है। क्या होगा कारण? केमिकली तो कुछ पता नहीं चल पाता। वैज्ञानिक रूप से इतना तो पता चलाता है कि विशेषता है और उसके पानी में खनिज और कैमिकल्स का भेद है। विज्ञान इतना कहा सकता है। लेकिन एक और भेद है वह भेद विज्ञान के ख्याल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा। और वह भेद है, गंगा के पास लाखों-लाखों लोगों का जीवन की परम अवस्था को पाना।
यह मैं आपसे कहना चाहूंगा कि पानी जब भी कोई व्यक्ति, अपवित्र व्यक्ति पानी के पास बैठता है—अंदर जाने की तो बात अलग—पानी के पास भी बैठता है, तो पानी प्रभावित होता है। और पानी उस व्यक्ति की तरंगों से आच्छादित हो जाता है। और पानी उस व्यक्ति की तरंगों को अपने में ले लेता है।
इसलिए दुनिया के बहुत से धर्मों ने पानी का उपयोग किया है। ईसाइयत ने बप्तिसस्मा, बेप्टिाज्मग के लिए पानी का उपयोग किया है।
जीसस को जिस व्यक्ति ने बप्तिास्माय दिया, जान दि बैपटिस्ट ने, उस आदमी का नाम ही पड़ गया थ जान बप्तिस्मा वाला। वह जॉर्डन नदी में—और जॉर्डन यहूदियों के लिए वैसी ही नदी रही, जैसी हिंदुओं के लिए गंगा। वह जॉर्डन नदी में गले तक आदमी को डूबा देता, खुद भी पानी में डुबकर खड़ा हो जाता, फिर उसके सिर पर हाथ रखता और प्रभु से प्रार्थना करता उसके इनीशिएशन की, उसकी दीक्षा की।
पानी में क्यों खड़ा होता था जान? और पानी में दूसरे व्यक्ति को खड़ा करके क्या कुछ एक व्यंक्तिो की तरंगें और एक व्यक्ति के प्रभाव , एक व्यक्ति की आंतरिक दशा का आंदोलन दूसरे तक पहुंचना आसान है।
पानी बहुत शीध्रता से चार्ड्र हो जाता है। पानी बहुत शीध्रता से व्यक्ति से अनुप्राणित हो जाता है। पानी पर छाप बन जाती है।
लाखों-लाखों वर्ष से भारत के मनीषी गंगा के किनारे बैठकर प्रभु को पाने की चेष्टा करते रहे है। और जब भी कोई एक व्यक्ति ने गंगा के किनारे प्रभु को पाया है, तो गंगा उस उपलब्धि से वंचित नहीं रही है। गंगा भी आच्छादित हो जाती है। गंगा का किनारा, गंगा की रेत के कण-कण, गंगा का पानी, सब, इन लाखों वर्षों से एक विशेष रूप से स्प्रिचुअली चार्ज्ड, आध्यात्मिक रूप से तरंगायित हो गया है।
इसलिए हमने गंगा के किनारे तीर्थ बनाए।
गंगा साधारण नदी नहीं है। एक अध्यात्मिक यात्रा है और एक अध्यात्मिक प्रयोग। लाखों वर्षों तक लाखों लोगों को उसके निकट मुक्ति को पाना,परमात्मा के दर्शन को उपलब्ध होना, आत्म-साक्षात्कार को पाना, लाखों का उसके किनारे आकर अंतिम घटना को उपलब्ध होना,वे सारे लोग अपनी जीवन-ऊर्जा को गंगा के पानी पर उसके किनारों पर छोड़ गए है।
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| शुक्रवार, अगस्त 20, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
अच्छा लगा..
बहुत सटीक और बहुत बढ़िया ..... आभार
गंगा नदी के बारे में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया. आभार.
nice post
अच्छी बात कही गयी है, आभार...
गंगा नदी के बारे में बहुत सुंदर बात कही ..........
बहुत अच्छा लिखा आपने.....
पोस्ट के लिए व्यक्त आपके विचारो के लिए आपका आभारी हूँ इसी प्रकार उत्साहवर्धन करते रहे .धन्यवाद !!
बेहतरीन। लाजवाब।
ग़ज़ब की पोस्ट है आज की तो...
ये बड़े ही अफ़सोस की बात है की ओशो के विचार दुनिया को उस समय समझ में नहीं आये जब वे जीवित थे .......... शायद ओशो अपने समय से पहले आ गए थे ........अच्छा लेख है ....................लिखते रहिये.
बहुत सटीक और बहुत बढ़िया
यही सत्य है। गंगा को समझने के लिए भारत की आत्मा को समझना होगा। पर क्या हम भारतीय अब इस बात को समझ रहे हैं। गंगा को बांध में बांधकर भी क्या वो गुण बचा रहेगा। बड़ा सवाल है। इतने साल पहले नए अर्थ में ओशो ने बात कही। दुनिया तक फैली। पर भारतीय खुद ही अनजान रहे। क्यों आज भी लोगो में तीव्रता से ओशो का प्रचार नहीं हो पा रहा। क्या कारण है इसका। कमजोरी कहां हैं?
धन्यवाद !!
गंगा मैया के बारे में और भी अधिक जानकारी देने के लिए आभार...
पिरामिड्स के लिए भी...
ओशो के वचनों से काफी प्रभावित हैं हम..फिर भी जीवन को लेकर हमारे और उनके सभी विचार चाहकर भी एक नहीं हो पाते...
हमें अजीब लगता है की उनसे इतना प्रभावित होकर भी किसी न किसी जगह आकर उन्हें नकार देते हैं हम...
बहरहाल...ब्लॉग पर आना..पढ़ना ...सब कुछ बहुत बहुत अच्छा लगा...
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश