" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | बुधवार, मार्च 24, 2010 | 3 टिप्पणियाँ


दुनिया में अब तक धार्मिक क्रांतियां हुई हैं। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोग हो गए। कभी समझाने-बुझाने से हुए, कभी तलवार छाती पर रखने से हो गए लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। हिंदू मुसलमान हो जाए तो वैसे का वैसा आदमी रहता है, मुसलमान ईसाई हो जाए तो वैसा का वैसा आदमी रहता है, कोई फर्क नहीं पड़ा धार्मिक क्रांतियों से।

राजनैतिक क्रांतियां हुई हैं। एक सत्ताधारी बदल गया, दूसरा बैठ गया। कोई जरा दूर की जमीन पर रहता है, वह बदल गया, तो जो पास की जमीन पर रहता है, वह बैठ गया। किसी की चमड़ी गोरी थी वह हट गया तो किसी की चमड़ी काली थी वह बैठ गया, लेकिन भीतर का सत्ताधारी वही का वही है।

आर्थिक क्रांतियां हो गई हैं दुनिया में। मजदूर बैठ गए, पूंजीपति हट गए। लेकिन बैठने से मजदूर पूंजीपति हो गया। पूंजीवाद चला गया तो उसकी जगह मैनेजर्स गए। वे उतने ही दुष्ट, उतने ही खतरनाक! कोई फर्क नहीं पड़ा। वर्ग बने रहे। पहले वर्ग था, जिसके पास धन है-वह, और जिसके पास धन नहीं है-वह। अब वर्ग हो गया-जिसमें धन वितरित किया जाता है-वह और जो धन वितरित करता है-वह। जिसके पास ताकत है, स्टेट में जो है वह, राज्य में जो है वह, और राज्यहीन जो है वह। नया वर्ग बन गया, लेकिन वर्ग कायम रहा।

अब तक इन पांच-छह हजार वर्षों में जितने प्रयोग हुए हैं मनुष्य के लिए, कल्याण के लिए, सब असफल हो गए। अभी तक एक प्रयोग नहीं हुआ है, वह है शिक्षा में क्रांति। वह प्रयोग शिक्षक के ऊपर है कि वह करे। और मुझे लगता है, यह सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है। शिक्षा में क्रांति सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है। राजनीतिक, आर्थिक या धार्मिक कोई क्रांति का इतना मूल्य नहीं है जितना शिक्षा में क्रांति का मूल्य है। लेकिन शिक्षा में क्राम्ति कौन करेगा? वे विद्रोही लोग कर सकते हैं जो सोचें, विचार करें-हम यह क्या कर रहे हैं! और इतना तय समझ लें कि जो भी आप कर रहे हैं वह जरूर गलत है क्योंकि उसका परिणाम गलत है। यह जो मनुष्य पैदा हो रहा है, यह जो समाज बन रहा है, यह जो युद्ध हो रहे हैं, यह जो सारी हिंसा चल रही है, यह जो सफरिंग इतनी दुनिया में है, इतनी पीड़ा, इतनी दीनता, दरिद्रता है, यह कहां से रही है। यह जरूर हम जो शिक्षा दे रहे हैं उसमें कुछ बुनियादी भूलें हैं। तो यह विचार करें, जागें। लेकिन आप तो कुछ और हिसाब में पड़े रहते होंगे

3 पाठको ने कहा ...

  1. सार्थक और विचारणीय आलेख है। धन्यवाद।

  2. rishabh says:

    bilkul sach he ye bahut accha laga mujhe ye sunke osho ki baate sunke mere rongte khade ho jate he agar bhuk lagi ho to me khana bhi nahi khasakta jab unke pravachan sunta hoo to aisa lagta he ki betha rahu kuch na khau na khau na peu bas unke pravachan hi khau aur peu jay oshooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo

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