महावीर से गोशालक के नाराज हो जाने के कुछ कारणों में एक कारण यह पौधा भी था--महावीर को छोड़ कर चले जाने में। ज्योतिष का--जिस ज्योतिष की मैं बात कर रहा हूं--उसका संबंध अनिवार्य से, एसेंशियल से, फाउंडेशनल से है। आपकी उत्सुकता ज्यादा से ज्यादा सेमी एसेंशियल तक जाती है। पता लगाना चाहते हैं कि कितने दिन जीऊंगा? मर तो नहीं जाऊंगा? जीकर क्या करूंगा, जी ही लूंगा तो क्या करूंगा, इस तक आपकी उत्सुकता ही नहीं पहुंचती। मरूंगा तो मरते में क्या करूंगा, इस तक आपकी उत्सुकता नहीं पहुंचती। घटनाओं तक पहुंचती है, आत्माओं तक नहीं पहुंचती। जब मैं जी रहा हूं, तो यह तो घटना है सिर्फ। जीकर मैं क्या कर रहा हूं, जीकर मैं क्या हूं, वह मेरी आत्मा है! जब मैं मरूंगा, वह तो घटना होगी। लेकिन मरते क्षण में मैं क्या होऊंगा, क्या करूंगा, वह मेरी आत्मा होगी। हम सब मरेंगे। मरने के मामले में सब की घटना एक सी घटेगी। लेकिन मरने के संबंध में, मरने के क्षण में हमारी स्थिति सब की भिन्न होगी। कोई मुस्कुराते हुए मर सकता है! मुल्ला नसरुद्दीन से कोई पूछ रहा है जब वह मरने के करीब है। उससे कोई पूछ रहा है कि आपका क्या खयाल है मुल्ला, लोग जब पैदा होते हैं तो कहां से आते हैं? जब मरते हैं तो कहां जाते हैं? मुल्ला ने कहा, जहां तक अनुभव की बात है, मैंने लोगों को पैदा होते वक्त भी रोते ही पैदा होते देखा और मरते वक्त भी रोते ही जाते देखा है। अच्छी जगह से न आते हैं, न अच्छी जगह जाते हैं। इनको देख कर जो अंदाज लगता है, न अच्छी जगह से आते हैं, न अच्छी जगह जाते हैं। आते हैं तब भी रोते हुए मालूम पड़ते हैं, जाते हैं तब भी रोते हुए मालूम पड़ते हैं। लेकिन नसरुद्दीन जैसा आदमी हंसता हुआ मर सकता है। मौत तो घटना है, लेकिन हंसते हुए मरना आत्मा है। तो आप कभी ज्योतिषी से पूछे कि मैं हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए? नहीं पूछा होगा। पूरी पृथ्वी पर एक आदमी ने नहीं पूछा ज्योतिषी से जाकर कि मैं मरते वक्त हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए मरूंगा? यह पूछने जैसी बात है, लेकिन यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से जुड़ी हुई बात है। आप पूछते हैं, कब मरूंगा? जैसे मरना अपने आप में मूल्यवान है बहुत! कब तक जीऊंगा? जैसे बस जी लेना काफी है! किसलिए जीऊंगा, क्यों जीऊंगा, जीकर क्या करूंगा, जीकर क्या हो जाऊंगा, कोई पूछने नहीं जाता! इसलिए महल गिर गया। क्योंकि वह महल गिर जाएगा जिसके आधार नॉन एसेंशियल पर रखे हों। गैर-जरूरी चीजों पर जिसकी हमने दीवारें खड़ी कर दी हों वह कैसे टिकेगा! आधारशिलाएं चाहिए। मैं जिस ज्योतिष की बात कर रहा हूं, और आप जिसे ज्योतिष समझते रहे हैं, उससे गहरी है, उससे भिन्न है, उससे आयाम और है। मैं इस बात की चर्चा कर रहा हूं कि कुछ आपके जीवन में अनिवार्य है। और वह अनिवार्य आपके जीवन में और जगत के जीवन में संयुक्त और लयबद्ध है, अलग-अलग नहीं है। उसमें पूरा जगत भागीदार है। उसमें आप अकेले नहीं हैं। जब बुद्ध को ज्ञान हुआ तो बुद्ध ने दोनों हाथ जोड़ कर पृथ्वी पर सिर टेक दिया। कथा है कि आकाश से देवता बुद्ध को नमस्कार करने आए थे कि वह परम ज्ञान को उपलब्ध हुए हैं। बुद्ध को पृथ्वी पर हाथ टेके सिर रखे देख कर वे चकित हुए। उन्होंने पूछा कि तुम और किसको नमस्कार कर रहे हो? क्योंकि हम तो तुम्हें नमस्कार करने स्वर्ग से आते हैं। और हम तो नहीं जानते कि बुद्ध भी किसी को नमस्कार करे ऐसा कोई है। बुद्धत्व तो आखिरी बात है। तो बुद्ध ने आंखें खोलीं और बुद्ध ने कहा, जो भी घटित हुआ है उसमें मैं अकेला नहीं हूं, सारा विश्व है। तो इस सबको धन्यवाद देने के लिए सिर टेक दिया है। यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से बंधी हुई बात है। सारा जगत...। इसलिए बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे कि जब भी तुम्हें कुछ भी भीतरी आनंद मिले, तत्क्षण अनुगृहीत हो जाना समस्त जगत के। क्योंकि तुम अकेले नहीं हो। अगर सूरज न निकलता, अगर चांद न निकलता, अगर एक रत्ती भर भी घटना और घटी होती तो तुम्हें यह नहीं होने वाला था जो हुआ है। माना कि तुम्हें हुआ है, लेकिन सबका हाथ है। सारा जगत उसमें इकट्ठा है। एक कास्मिक, जागतिक अंतर-संबंध का नाम ज्योतिष है। तो बुद्ध ऐसा नहीं कहेंगे कि मुझे हुआ है। बुद्ध इतना ही कहते हैं कि जगत को मेरे मध्य हुआ है। यह जो घटना घटी है एनलाइटेनमेंट की, यह जो प्रकाश का आविर्भाव हुआ है, यह जगत ने मेरे बहाने जाना है। मैं सिर्फ एक बहाना हूं, एक क्रास रोड, जहां सारे जगत के रास्ते आकर मिल गए हैं। कभी आपने खयाल किया है कि चौराहा बड़ा भारी होता है। लेकिन चौराहा अपने में कुछ नहीं होता, वे जो चार रास्ते आकर मिले होते हैं उन चारों को हटा लें तो चौराहा विदा हो जाता है। हम सब क्रिसक्रास प्वाइंट्स हैं, जहां जगत की अनंत शक्तियां आकर एक बिंदु को काटती हैं; वहां व्यक्ति निर्मित हो जाता है, इंडिविजुअल बन जाता है। तो वह जो सारभूत ज्योतिष है उसका अर्थ केवल इतना ही है कि हम अलग नहीं हैं। एक, उस एक ब्रह्म के साथ हैं, उस एक ब्रह्मांड के साथ हैं। और प्रत्येक घटना भागीदार है। तो बुद्ध ने कहा है कि मुझसे पहले जो बुद्ध हुए उनको नमस्कार करता हूं, और मेरे बाद जो बुद्ध होंगे उनको नमस्कार करता हूं। किसी ने पूछा कि आप उनको नमस्कार करें जो आपके पहले हुए, समझ में आता है। क्योंकि हो सकता है, उनसे कोई जाना-अनजाना ऋण हो। क्योंकि जो आपके पहले जान चुके हैं उनके ज्ञान ने आपको साथ दिया हो। लेकिन जो अभी हुए ही नहीं, उनसे आपको क्या लेना-देना है? उनसे आपको कौन सी सहायता मिली है? तो बुद्ध ने कहा, जो हुए हैं उनसे भी मुझे सहायता मिली है, जो अभी नहीं हुए हैं उनसे भी मुझे सहायता मिली है। क्योंकि जहां मैं खड़ा हूं वहां अतीत और भविष्य एक हो गए हैं। वहां जो जा चुका है वह उससे मिल रहा है जो अभी आने को है। वहां जो जा चुका उससे मिलन हो रहा है उसका जो अभी आने को है। वहां सूर्योदय और सूर्यास्त एक ही बिंदु पर खड़े हैं। तो मैं उन्हें भी नमस्कार करता हूं जो होंगे; उनका भी मुझ पर ऋण है। क्योंकि अगर वे भविष्य में न हों तो मैं आज न हो सकूंगा। इसको समझना थोड़ा कठिन पड़ेगा। यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी की बात है। कल जो हुआ है अगर उसमें से कुछ भी खिसक जाए तो मैं न हो सकूंगा, क्योंकि मैं एक शृंखला में बंधा हूं। यह समझ में आता है। अगर मेरे पिता न हों जगत में तो मैं न हो सकूंगा। यह समझ में आता है। क्योंकि एक कड़ी अगर विदा हो जाएगी तो मैं नहीं हो सकूंगा। अगर मेरे पिता के पिता न हों तो मैं न हो सकूंगा, क्योंकि कड़ी विसर्जित हो जाएगी। लेकिन मेरा भविष्य अगर उसमें कोई कड़ी न हो तो मैं न हो सकूंगा, समझना बहुत मुश्किल पड़ेगा। क्योंकि उससे क्या लेना-देना, मैं तो हो ही गया हूं! लेकिन बुद्ध कहते हैं कि अगर भविष्य में भी जो होने वाला है, वह न हो, तो मैं न हो सकूंगा। क्योंकि भविष्य और अतीत दोनों के बीच की मैं कड़ी हूं। कहीं भी कोई बदलाहट होगी तो मैं वैसा ही नहीं हो सकूंगा जैसा हूं। कल ने भी मुझे बनाया, आने वाला कल भी मुझे बनाता है। यही ज्योतिष है! बीता कल ही नहीं, आने वाला कल भी; जा चुका ही नहीं, जो आ रहा है वह भी; जो सूरज पृथ्वी पर उगे वे ही नहीं, जो उगेंगे वे भी, वे भी भागीदार हैं। वे भी आज के क्षण को निर्मित कर रहे हैं। क्योंकि यह जो वर्तमान का क्षण है यह हो ही न सकेगा अगर भविष्य का क्षण इसके आगे न खड़ा हो! उसके सहारे ही यह हो पाता है। हम सब के हाथ भविष्य के कंधे पर रखे हुए हैं। हम सब के पैर अतीत के कंधों पर पड़े हुए हैं। हम सब के हाथ भविष्य के कंधों पर रखे हुए हैं। नीचे तो हमें दिखाई पड़ता है कि अगर मेरे नीचे जो खड़ा है वह न हो तो मैं गिर जाऊंगा। लेकिन भविष्य में मेरे जो फैले हाथ हैं, वे जो कंधों को पकड़े हुए हैं, अगर वे भी न हों तो भी मैं गिर जाऊंगा। जब कोई व्यक्ति अपने को इतनी आंतरिक एकता में अतीत और भविष्य के बीच जुड़ा हुआ पाता है तब वह ज्योतिष को समझ पाता है। तब ज्योतिष धर्म बन जाता है, तब ज्योतिष अध्यात्म हो जाता है। और नहीं तो, वह जो नॉन एसेंशियल है, गैर-जरूरी है, उससे जुड़ कर ज्योतिष सड़क की मदारीगिरी हो जाता है, उसका फिर कोई मूल्य नहीं रह जाता। श्रेष्ठतम विज्ञान भी जमीन पर पड़ कर धूल की कीमत के हो जाते हैं। हम उनका क्या उपयोग करते हैं इस पर सारी बात निर्भर है। इसलिए मैं बहुत द्वारों से एक तरफ आपको धक्का दे रहा हूं कि आपको यह खयाल में आ सके कि सब संयुक्त है--संयुक्तता, इस जगत का एक परिवार होना या एक आर्गेनिक बॉडी होना, एक शरीर की तरह होना। मैं सांस लेता हूं तो पूरा शरीर प्रभावित होता है। सूरज सांस लेता है तो पृथ्वी प्रभावित होती है। और दूर के महासूर्य हैं, वे भी कुछ करते हैं तो पृथ्वी प्रभावित होती है। और पृथ्वी प्रभावित होती है तो हम प्रभावित होते हैं। सब चीज, छोटा सा रोआं तक महान सूर्यों के साथ जुड़ कर कंपता है, कंपित होता है। यह खयाल में आ जाए तो हम सारभूत ज्योतिष में प्रवेश कर सकें। और असारभूत ज्योतिष की जो व्यर्थताएं हैं उनसे भी बच सकें। क्षुद्रतम बातें हम ज्योतिष से जोड़ कर बैठ गए हैं। अति क्षुद्र! जिनका कहीं भी कोई मूल्य नहीं है। और उनको जोड़ने की वजह से बड़ी कठिनाई होती है। जैसे हमने जोड़ रखा है कि एक आदमी गरीब पैदा होगा या एक आदमी अमीर पैदा होगा तो इसका संबंध ज्योतिष से होगा। नहीं, गैर-जरूरी बात है। अगर आप नहीं जानते हैं तो ज्योतिष से संबंध जुड़ा रहेगा; अगर आप जान लेते हैं तो आपके हाथ में आ जाएगा। एक बहुत मीठी कहानी आपको कहूं तो खयाल में आए। जिंदगी ऐसा ही बैलेंस है, ऐसा ही संतुलन है। मोहम्मद का एक शिष्य है, अली। और अली मोहम्मद से पूछता है कि बड़ा विवाद है सदा से कि मनुष्य स्वतंत्र है अपने कृत्य में या परतंत्र! बंधा है कि मुक्त! मैं जो करना चाहता हूं वह कर सकता हूं या नहीं कर सकता हूं! सदा से आदमी ने यह पूछा है। क्योंकि अगर हम कर ही नहीं सकते कुछ, तो फिर किसी आदमी को कहना कि चोरी मत करो, झूठ मत बोलो, ईमानदार बनो, नासमझी है! एक आदमी अगर चोर होने को ही बंधा है, तो यह समझाते फिरना कि चोरी मत करो, नासमझी है! या फिर यह हो सकता है कि एक आदमी के भाग्य में बदा है कि वह यही समझाता रहे कि चोरी न करो--जानते हुए कि चोर चोरी करेगा, बेईमान बेईमानी करेगा, असाधु असाधु होगा, हत्या करने वाला हत्या करेगा, लेकिन अपने भाग्य में यह बदा है कि अपन लोगों को कहते फिरो कि चोरी मत करो! एब्सर्ड है! अगर सब सुनिश्चित है तो समस्त शिक्षाएं बेकार हैं; सब प्रोफेट और सब पैगंबर और सब तीर्थंकर व्यर्थ हैं। महावीर से भी लोग पूछते हैं, बुद्ध से भी लोग पूछते हैं कि अगर होना है, वही होना है, तो आप समझा क्यों रहे हैं? किसलिए समझा रहे हैं? मोहम्मद से भी अली पूछता है कि आप क्या कहते हैं? अगर महावीर से पूछा होता अली ने तो महावीर ने जटिल उत्तर दिया होता। अगर बुद्ध से पूछा होता तो बड़ी गहरी बात कही होती। लेकिन मोहम्मद ने वैसा उत्तर दिया जो अली की समझ में आ सकता था। कई बार मोहम्मद के उत्तर बहुत सीधे और साफ हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जो लोग कम पढ़े-लिखे हैं, ग्रामीण हैं, उनके उत्तर सीधे और साफ होते हैं। जैसे कबीर के, या नानक के, या मोहम्मद के, या जीसस के। बुद्ध और महावीर के और कृष्ण के उत्तर जटिल हैं। वह संस्कृति का मक्खन है। जीसस की बात ऐसी है जैसे किसी ने लट्ठ सिर पर मार दिया हो। कबीर तो कहते ही हैं: कबीरा खड़ा बजार में, लिए लुकाठी हाथ। लट्ठ लिए बाजार में खड़े हैं! कोई आए हम उसका सिर खोल दें! मोहम्मद ने कोई बहुत मेटाफिजिकल बात नहीं कही। मोहम्मद ने कहा, अली, एक पैर उठा कर खड़ा हो जा! अली ने कहा कि हम पूछते हैं कि कर्म करने में आदमी स्वतंत्र है कि परतंत्र! मोहम्मद ने कहा, तू पहले एक पैर उठा! अली बेचारा एक पैर--बायां पैर--उठा कर खड़ा हो गया। मोहम्मद ने कहा, अब तू दायां भी उठा ले। अली ने कहा, आप क्या बातें करते हैं! तो मोहम्मद ने कहा कि अगर तू चाहता पहले तो दायां भी उठा सकता था। अब नहीं उठा सकता। तो मोहम्मद ने कहा कि एक पैर उठाने को आदमी सदा स्वतंत्र है। लेकिन एक पैर उठाते ही तत्काल दूसरा पैर बंध जाता है। वह जो नॉन एसेंशियल हिस्सा है हमारी जिंदगी का, जो गैर-जरूरी हिस्सा है, उसमें हम पूरी तरह पैर उठाने को स्वतंत्र हैं। लेकिन ध्यान रखना, उसमें उठाए गए पैर भी एसेंशियल हिस्से में बंधन बन जाते हैं। वह जो बहुत जरूरी है वहां भी फंसाव पैदा हो जाता है। गैर-जरूरी बातों में पैर उठाते हैं और जरूरी बातों में फंस जाते हैं।
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| शनिवार, मार्च 13, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
Osho jagrit prush the.. unke shahitya ka maine gahra adhyan kiya hai..wo jatil se jatil baat ko bahut asaan aur rochak shabdo mein pesh kar dete the.. iss tarah koi aatm gyani hi apni baat kar sakta hai..kintu mujhe gyat nahi aaj uss mahan Osho ke sanyashi kya kar rahe hain? Osho ne kaha tha..shayad sant dariya par bolte huye...
Naav mili kewat nahi..kaise utre paar..
yaani..dharam mil gaya lekin jeevit guru nahi ho to uss paar nahi utra jaa sakta..unhone kaha , maine jo ghaat banaya hai, aaj main hoon , to uss paar tumhe utaar dunga..lekin mere baad ye ghaat rah jayega..naav rah jaayegi.. lekin main nahi rahunga... tab tum kisi naye sadguru ki talash karna..kisi naye budh ko dhoondhna.. mere ghaat par baithe mat rah jaana..ghaat par..naav mein kuch nahi rakha... jivit sadguru ko talash karna...
while I am here these devices will function perfectly well. in my hands they can be great situations for inner transformation, but once my hands are no more visible these same devices will be in the hands of the pundits and the scholars, and then the same story will be repeated as it has been in the past.
beware, be watchful, don't waste time.
ye likhne ka mera matlab bas itna hai, ki Osho mahan ke sanyasi sochen..aap bahut achcha kaam kar rahe hain.. unka sahitya , unka gyan baant rahe hain.. iss se kitne logon mein khoj ka beej padega..lekin bina Osho ke jagriti nahi ho sakti... isliye uss mahan osho ko prem karne walo ko unki baat ka samman karna hoga... mujhe pata nahi ab unke sanyasi kya kar rahe hain...kya wo kisi jagrit purush ki talash mein hain ya..ghaat par baithe utsav mana rahe hain?
Please tell me how did you placed photographs of Osho on title place which pops out...My email is chandar30@gmail.com.
Regards
Chandar Meher
angrezikiclass.blogspot.com