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"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर
"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,
"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा
"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य
"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार
तो मैंने समझा की अगर थोड़ी सह किरण से इतनी बेचैनी हुई तो फिर पूरे प्रकाश की चर्चा कर लेनी उचित है। ताकि साफ हो सके कि ज्ञान मनुष्य को धार्मिक बनाता है या अधार्मिक बनाता है। यह कारण था इसलिए यह विषय चुना। और अगर यह कारण न होता तो शायद मुझे अचानक खयाल न आता इसे चुनने का। शायद इस पर मैं कोई बात नहीं करता। इस लिहाज से वे लोग धन्यवाद के पात्र है, जिन्होंने अवसर पैदा किया यह विषय चुनने का। और अगर आपको धन्यवाद देना हो तो मुझे मत देना। वह भारतीय विद्या भवन ने जिन्होंने सभा आयोजित की थी, उनको धन्यवाद देना। उन्होंने ही यह विषय चुनाव दिया। मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है।एक मित्र ने पूछा है, कि मैंने कहा कि काम का रूपांतरण ही प्रेम बनता है। तो उन्होंने पूछा है कि मां का बेटे के लिए प्रेम—क्या...
"मैं न तो पूर्व का व्यक्ति हूं न पश्चिम का। मेरा संबंध न किसी देश से है, न किसी राष्ट्र से और न किसी धर्म से। क्योंकि यदि आप किसी एक देश से जुड़े है तो फिर सबसे नहीं जुड़ सकते। यदि आप किसी एक धर्म से जुड़े हैं तो सब धर्म आपके नहीं हो सकते। मैं किसी एक से नहीं जुड़ा हूं। मेरी जड़ें न किसी एक देश मैं हैं, न किसी एक धर्म में न किसी विशेष मानव जाति में ।"ओशो...
"मैं तुम्हें कोई लक्ष्य नहीं देने वाला। मैं तुम्हें केवल दिशा दे सकता हूं - जाग्रत, जीवन से स्पंदित, अज्ञात, सदा विस्मयपूर्ण, बिना किसी पूर्वानुमान के। मैं तुम्हें कोई नक्शा नहीं दे रहा। मैं तुम्हें तलाश की महा - जिज्ञासा दे सकता हूं।हां, कोई नक्शा नहीं चाहिये। तलाश के लिये महा - अभीप्सा, महा - आकांक्षा चाहिये। फिर मैं तुम्हें अकेला छोड़ देता हूं। फिर तुम अकेले निकल पड़ते हो। महा - यात्रा पर जाने के लिये। अनंत की यात्रा पर निकल पड़ो और धीरे - धीरे इस पर श्रद्धा करना सीखो। स्वयं को जीवन के भरोसे छोड़ दो।" ...
"कभी-कभी कुछ मूर्ख लोग मेरे पास आते हैं और पूछते हैं: ´आपकी देशना क्या है? आपकी कौनसी ऐसी पुस्तक है जिसमें आपकी पूरी देशना का सार-सूत्र हो?´ मेरी कोई देशना नहीं है! तभी मेरी इतनी पुस्तकें उपलब्ध हैं। नहीं तो इतनी पुस्तकें कैसे संभव होती? अगर कोई विशेष देशना हो तो एक या दो पुस्तकें बहुत हैं। तभी तो मैं बोलता चला जाता हूं क्योंकि मेरी कोई देशना नहीं है। हर देशना एक न एक दिन चुक जायेगी। मैं नहीं चुक सकता। कहीं कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं... हम सदा मध्य में हैं। मैं कोई शिक्षक नहीं हूं।" ...
एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को कुछ लोग बंबई कहते है। उस बड़े बाजार में एक सभा थी और उस सभा में एक पंडितजी, कबीर क्या कहते है, इस संबंध में बोलते थे। उन्होंने कबीर की एक पंक्ति कहीं और उसका अर्थ समझाया। उन्होंने कहा, ‘’कबिरा खड़ा बजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर बारे अपना चले हमारे साथ।’’ उन्होंने यह कहा कि कबीर बाजार में खड़ा था और चिल्लाकर लोगों से कहने लगा कि लकड़ी उठाकर बुलाता हूं उन्हें जो अपने घर को जलाने की हिम्मत रखते हों वे हमारे साथ आ जायें। उस सभा में मैंने देखा कि लोग यह बात सुनकर बहुत खुश हुए। मुझे बड़ी हैरानी हुई— मुझे हैरानी यह हुई कि वह जो लोग खुश हो रहे थे। उनमें से कोई भी आपने घर को जलाने को कभी तैयार नहीं था। लेकिन उन्हें प्रसन्न देखकर मैंने समझा...
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