" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5

Archive for सितंबर 2010

30 स&# 2010

राम को कितने दिन हुए, कोई राम पैदा नहीं होता। हाँ, रामलीला के राम बहुत पैदा हुए। रामलीला के राम बनना शोभापूर्ण है? रामलीला के राम बनना गरिमापूर्ण है? यह भी हो सकता है कि रामलीला का राम इतना कुशल हो जाये बार-बार रामलीला करते हुए कि असली राम से अगर प्रतिस्पर्धा करवाई जाये तो असली राम हार जाये।यह भी हो सकता है। क्योकि असली राम से भूल भी होती है, चूक भी होती है, नकली राम से कोई भूल-चूक नहीं होती, नकली आदमी भूल-चूक करता ही नहीं। क्योकि उसे तो सब पार्ट याद करके करना होता है। राम को तो बेचारे को पाठ याद करने की सुविधा नहीं थी, सीता खो गयी तो उन्हें कोई बताने वाला नहीं था की अब किस तरह छाती पीटो और क्या कहो। जो हुआ होगा वह सहज हुआ होगा। वह स्पोंटेनिय्स था। कही कोई लिखी हुई किताब से याद किया हुआ नहीं...

और आगे पढ़े ...
27 स&# 2010

क्राइस्‍ट कहते हैं, तुम कन्‍फेस कर दो, मैं तुम्‍हें माफ किए देता हूं। और जो क्राइस्ट पर भरोसा करता है वह पवित्र होकर लोटेगा. असल में क्राइस्‍ट पाप से तो मुक्‍त नहीं कर सकते, लेकिन स्मृति से मुक्‍त कर सकते हे। स्‍मृति ही असली सवाल हे। गंगा पाप से मुक्‍त नहीं कर सकती, लेकिन स्‍मृति से मुक्त कर सकती हे।अगर कोई भरोसा लेकर गया है। कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप से बाहर हो जाऊँगा और ऐसा अगर उसके चित में है। उसकी कलेक्‍टव अनकांशेस में है, उसके समाज की करोड़ों वर्ष से छुटकारा नहीं होगा वैसे, क्‍योंकि चोरी को अब कुछ और नहीं किया जा सकता। हत्‍या जो हो गई, हो गयी लेकिन यह व्‍यक्‍ति पानी के बाहर जब निकला तो सिंबालिक एक्‍ट हो गया। क्राइस्‍ट कितने दिन दुनिया में रहेंगे, कितने पापीयों से...

और आगे पढ़े ...
24 स&# 2010

हिंदुस्तान में चार - पांच हजार वर्षो से हम करोडो शुद्रो को सता रहे है, परेशान कर रहे है, क्यों? एक शब्द हमने इजाद कर लिया, "शुद्र"। और कुछ लोगो पर हमने चिपका दिया कि वे शुद्र है। फिर हमारी आँखें बंद हो गयी, फिर हम उनके कष्ट नहीं देख सके, क्योकि शुद्र, दरवाजा बंद हो गया। फिर हम उनकी पीडाएं अनुभव नहीं कर सके, फिर हमारा ह्रदय उनके प्रति प्रेम से प्रवाहित नहीं हो सका। एक शब्द हमने उन पर चिपका दिया, "शुद्र"एक इजाद कर लिया शब्द। और उस शब्द के आधार पर हम पांच हजार साल से करोडो - करोड़ लोगो को परेशान कर रहे है। और हमें यह ख्याल भी पैदा नहीं हुआ कि हम ये क्या कर रहे है ? इसलिए ख्याल पैदा नहीं हुआ क्योकि जिसे हमने शुद्र कह दिया वह हमारे लिए मनुष्य ही नहीं रह गया। उसका मनुष्यों से कोई सम्बन्ध नहीं रह गया।...

और आगे पढ़े ...
22 स&# 2010

हिंदुओं का जो प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है, इस संबंध में समझना होगा कि संस्‍कृत, अरबी जैसी पुरानी भाषाएं बड़ी काव्‍य-भाषाएं है। उनमें एक शब्‍द के अनेक अर्थ होते है। वे गणित की भाषाएं नहीं हे। इसलिए तो उनमें इतना काव्‍य है। गणित की भाषा में एक बात का एक ही अर्थ होता है। दो अर्थ हों तो भ्रम पैदा होता है। इसलिए गणित की भाषा तो बिलकुल चलती है सीमा बांधकर। एक शब्‍द का एक ही अर्थ होना चाहिए। संस्‍कृत, अरबी में तो एक-एक के अनेक अर्थ होते है। अब ‘धी’ इसका अर्थ तो बुद्धि होता है। पहली सीढी। और धी से ही बनता है ध्‍यान—वह दूसरा अर्थ, वह दूसरी सीढी। अब यह बड़ी अजीब बात है। इतनी तरल है संस्‍कृत भाषा। बुद्धि में भी थोड़ी सह धी है। ध्‍यान में बहुत ज्‍यादा। ध्‍यान शब्‍द भी ‘धी’ से ही बनता है। धी का ही...

और आगे पढ़े ...
19 स&# 2010

एक टेलर था। दर्जी था। यह बीमार पडा। करीब-करीब मरने के करीब पहुंच गया था। आखिरी घड़िया गिनता था। अब मर की तब मरा। रात उसने एक सपना देखा कि वह मर गया। और कब्र में दफनाया जा रहा है। बड़ा हैरान हुआ, क्रब में रंग-बिरंगी बहुत सी झंडियां लगी हुई है। उसने पास खड़े एक फ़रिश्ते से पूछा कि ये झंडियां यहाँ क्‍यों लगी है?दर्जी था, कपड़े में उत्‍सुकता भी स्‍वभाविक थी। उसे फ़रिश्ते ने कहा, जिन-जिन के तुमने कपड़े चुराए है। जितने-जितने कपड़े चुराए है। उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियां लगी है। परमात्‍मा इस से तुम्‍हारा हिसाब करेगा। कि ये तुम्‍हारी चोरी का रहस्‍य खोल देंगी, ये झंडियां तुम्‍हारे जीवन का बही खाता है। वह घबरा गया। उसने कहा, हे अल्‍लाह, रहम कर, झंडियों को कोई अंत ही न था। दुर तक झंडियां...

और आगे पढ़े ...
16 स&# 2010

उपनिषद में एक कथा है:- उद्दालक का बेटा श्‍वेतकेतु ज्ञान लेकर घर लौटा, विश्‍वविद्यालय से घर आया। बाप ने देखा, दूर गांव की पगडंडी से आते हुए। उसकी चाल में मस्‍ती कम और अकड़ ज्‍यादा थी। सुर्य पीछे से उग रहा था। अंबर में लाली फेल रही थी। पक्षी सुबह के गीत गा रहे थे। पर उद्दालक सालों बाद अपने बेटे को घर लोटते देख कर भी उदास हो गया। क्‍योंकि बाप ने सोचा था विनम्र होकर लौटेगा। वह बड़ा अकड़ा हुआ आ रहा था। अकड़ तो हजारों कोस दूर से ही खबर दे देती है अपनी। अकड़ तो अपनी तरंगें चारों तरफ फैला देती है। वह ऐसा नहीं आ रहा था की कुछ जान का आ रहा है। वह ऐसे आ रहा था जैसे मूढ़ता से भरा हुआ। ऊपर-ऊपर ज्ञान तो संग्रहीत कर लिया है। पंडित होकर आ रहा है। विद्वान होकर आ रहा है। प्रज्ञावान होकर नहीं आ रहा।...

और आगे पढ़े ...
ओशो के वीडियो और औडियो प्रवचन सुनने के लिए यहाँ क्लिक करे