भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर
"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।"
के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,
"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"
दलाई लामा
"उनके साहित्य को पढ़कर मैं बेहद प्रभावित हुआ हूं।"
फैड्रीको फैलीनी
"मैं सचमुच उनके साहित्य में गहरा गया हूं। मैं सदैव उनकी पुस्तकों के प्रेम में रहा हूं। वे वाकई उच्चतम क्षेणी की हैं।"
मैरिएन विलियमसन, लेखक
"यह प्रतिभाशाली सूत्र सदैव उन सबका मार्ग-निर्देष करते रहेंगे जो प्रत्येक मनुष्य में निहित शुद्ध ज्ञान को स्वयं प्रयोग द्वारा जानने में उत्सुक हैं। यह पुस्तक प्रत्येक लायब्रेरी की शैल्फ पर होनी चाहिये और उन सबके घरों में जो भगवत्ता के उच्च ज्ञान की खोज कर रहे हैं।"
डॉक्टर दीपक चोपड़ा,लेखक: एजलैस बॉडी, टाइमलैस माईंड; क्वांटम हीलिंग ऐंड अनकंडीशनल लाईफ
"नो वॉटर,नो मून को मैने अत्यंत सुखद, विरेचक तथा रोचक पुस्तकों में से एक पाया। यह एक ऐसी पुस्तक है जो सदैव एक सुखदायी मित्र की तरह मेरे साथ रहेगी।"
यहूदी मैन्यूहिन
"मैने उनकी सब पुस्तकें पढ़ी हैं।"
शर्ले मैक्लेन
"मैने ओशो की अधिकतम पुस्तकें पढ़ी हैं और उनके प्रवचनों की कैसेट्स सुनी हैं, और बेशक अध्यात्मिक परंपरा में वे एक अद्वितीय प्रज्ञा हैं और एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमें अनुप्रेरित करने की अद्भुत सामर्थ्य है।"
जेम्ज़ ब्राउटन, कवि और लेखक
"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं।"
काज़ूयोशी कीनो,
होसेन गाकुएन कॉलेज, टोकियो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य
"ओशो आपको आपके पुराने मन के ढांचे से मुक्त करवाते हैं... वे अनन्य नहीं अनंत हैं।"
सिंगापुर में भारतीय राजदूत
"मैने कभी किसी को नहीं सुना जो इतनी खूबसूरती और मस्ती से उन मनोवैज्ञानिक समस्यायों का एकीकरण कर उनका निदान कर दे जो युगों युगों से हमारी ऊर्जा को क्षीण रही हैं"
श्रद्धेय केन, पुरोहित, चर्चिल कॉलेज,केम्ब्रिज
"ओशो जीसस क्राईस्ट के बाद के सर्वाधिक खतरनाक व्यक्ति हैं... निश्चित ही वे बहुत प्रभावशालि व्यक्तित्व हैं अन्यथा वे इतना बड़ा खतरा न होते। वे उन बातों को कह रहे हैं जिन्हें कहने का किसी में साहस नहीं। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास वो सब विचार हैं जो आंदोलित ही नहीं करते नहीं बल्कि जिनमें सत्य की वह अनूगूंज है जो उन सब की जड़ें हिला दें जो परंपरा के प्रति पागल है।"
टॉम रॉबिन्ज़, लेखक: ईवन काउगर्ल्ज़ गैट द ब्लूज़,स्टिल लाईफ विद वुडपैकर और जिटरबग परफ्यूम
"ओशो की द गोल्डन फ्यूचर (और उनकी बहुत सी अन्य पुस्तकों) को पढ़ने के परिणाम स्वरूप मैं आप से कहना चाहूंगा कि मैं ओशो की दृष्टि का पूर्णतया और हार्दिक समर्थन करता हूं। एक लेखक होने के नाते मेरी यह ख्वाहिश है कि उनके शब्द उन सब तक पहुंचे जिन्हें उनकी अत्याधिक ज़रूरत है। मुझे इस निष्कर्ष पर पूर्ण विश्वास है क्योंकि ओशो के शब्द प्रेम से लबरेज़ हैं।"
दोवे द ग्रूत, लेखक
"ये वाकई वही पुस्तकें हैं जिनकी लोगों को तलाश है... ये आज ज़्यादा संगत हैं उस समय के बजाय जब इन्हें बोला गया।"
माईकल मान, अध्यक्ष, एलिमैंट बुक्स
"बुद्ध के बाद ओशो भारत में महानतम अवतार हुए हैं। वे जीवित बुद्ध हैं।"
लामा करमापा, तिब्बती बौद्ध धर्म के कार्गयुप्त (या रैड हैट) संप्रदाय के प्रमुख।
"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं,एक महान विद्वान, स्पष्ट चिंतन वाले और नये विचारों के जन्मदाता। और साथ ही उन्हें मौखिक और लिखित शब्दों प्राकृतिक वरदान प्राप्त है। आने वाले अनेक दशकों तक हमें उन जैसी प्रतिभा न देख पायेंगे... उन्हें चिंतकों की श्रेणी में ही रखना श्रेयस्कर होगा और चिंतक के रूप में उनकी गणना दिग्गजों में होगी।"
खुशवंत सिंह, भूतपूर्व संपादक दि टाइम्स ऑफ इंडिया;लेखक और इतिहासकार
रहस्यदर्शियों को हमसे परिचित करवाने की कला में ओशो का सानी कोई दूसरा नहीं हो सकता, जो स्वयं इन सबकी सराहनीय संगति में भी सबसे अनूठे हैं। अपने पूर्ववर्ती जाग्रत पुरुषों को फिर से जीवंत करते हुए,उन्हें समकालीन बनाते हुए वे अपने अनुभव से बोलते हैं।"
जॉन लिली
"आज तक, पहले या बाद में मैंने कभी भी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा होगा जिसके पास कला, विज्ञान, मनोविज्ञान व धार्मिकता के सामंजस्य की इतनी समरस व सृजनात्मक अंतर्दॄष्टि हो। अभिनव मानव की उनकी अवधारणा के अभाव में निश्चित तौर पर हम मौलिक रूप में वंचित रह जाएंगे।"
डा. ए. श्लेजर, पी.एच. डी, इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, स्विटज़रलैंड
"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" काज़ुयोशी कीनो।
काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य
"उनके अविश्वसनीय ध्वनि-मुद्रित प्रवचनों और पुस्तकों ने मुझे, और लाखों अन्य लोगों को, आत्म विकास के मार्ग पर प्रेरित किया है। वे एक विशाल घंटनाद की आवाज की तरह हैं: जागो, जागो, जागो!"
जेम्ज़ कोबर्न, अभिनेता
"ओशो के साथ शब्दों का प्रवाह अंतहीन हो जाता है- निरंकुश, चुनौतीपूर्ण। आने वाले सौ वर्षों में ओशो-साहित्य की प्रतियों का प्रकाशन बाइबल से अधिक होने वाला है, और अब तक का उत्कॄष्ट बहुविक्रीत साहित्य।"
एम. वी. कामथ , भूतपूर्व संपादक दि इलस्ट्रेटिड वीकली, इंडिया
"As you savor the chapters, you´ll discover that Osho is like a Zen archer. Almost poetically he circles his target, surveying it over and over again from many positions before he draws back his bow and lets the arrow fly."
Robert Rimmer, USA. Author of The Harrad Experiment and Proposition 31
"Indian mystic Osho has been one of the most successful mixers of Eastern philosophies with Western therapeutic techniques."
Russel Chandler, Understanding the New Age
"The Upanishads talk about ultimate wisdom, Osho tells you how to live it"
R.E. Gussner, Dept of Religion, University of Vermont, USA
"It is a religion for the irreligious, for the agnostic, for the unbeliever, for the rationalist."
Khushwant Singh, Former editor of The Times of India; author and historian
"Osho is a mystical giant, a flowering of a unique intelligence and one of those rare humans ex-pressing himself with joy."
Paul Reps, author of Zen Flesh, Zen Bones
"The teachings of Osho, in fact, encompass many religions, but he is not defined by any of them. He is an illuminating speaker on Zen, Taoism, Tibetan Buddhism, Christianity and ancient Greek philosophy...and also a prolific author."
Nevill Drury, Dictionary of Mysticism and the Occult, USA
"He discourses with eloquent familiarity on virtually all the world´s great mystics - Zen masters, Hassids, Sufis, Bauls, Buddha, Lao-Tzu, Jesus.… Though he "knocks the mind," Osho is an intellectual´s guru, and his message is aimed not at spiritual sheep but at rebels and risk takers - people who consider themselves intelligent, adventurous, and independent, and want to be more so."
Annie Gottlieb, Author of Do You Believe in Magic?
"He had provided us a rare insight into our lives and times. He has ridiculed us, pushed us...hurt us, and thereby, made richer human beings out of us. He made us think for ourselves; forced us to reject him, and by that act of rejection, brought us closer to him -and in a strange kind of way, closer to ourselves."
Pritish Nandy, JAIN TV presenter; former Editor, Publisher of The Illustrated Weekly, India
"Osho has a unique identity of his own. Our worldly life can become more fruitful through meditation and people can evolve towards a better society with the help of Osho´s wisdom."
Rt. Hon´ble Shri Girija Prasad Koirala, Prime Minister of Nepal, 17th of May, 1998
"Treatises on Buddhism are often dry and reverential, if not tediously scholastic, and if Osho´s treatment is not canonical, it compensates by throbbing with life, humor, penetrating insight and the continual provocation to think for oneself."
Guy Claxton, Author of Noises from the Darkroom
"Osho speaks the language of today´s Yug Bhasha. His message is for the whole world."
Vice-President of India, Krishnakant
"Osho is one of the most important educators and philosophical and religious leaders in the late 20th century...I firmly believe that hundreds and thousands ...would be thrilled, delighted and gain a new perspective on life by reading his books."
Robert Rimmer, author The Harvard Experiment and Proposition 31
"A great mystic, a great philosopher.... In his own way Osho captured the essence of ancient wisdom, related it to contemporary needs, tempered it with the modern times and became a powerful messenger of eternal Indian thought and Indian wisdom."
Dr. Manmohan Singh, former finance minister of India,
"Osho is certainly a religious man, an intelligent human, and one of those rare humans expressing himself with joy."
Paul reps, author of Zen Flesh, Zen Bones
"Here is somebody who fuses everything and makes it understandable to people, and it makes sense. And he also challenges very fixed beliefs, challenges religions which have tradition and ritual and so forth."
Aroon Purie, Editor of India Today
"Wit and playfulness are a tremendously serious transcendence of evil, and this is one thing that Osho understood better than any contemporary teacher that I can think of. Gurdjieff had an element of that in his teachings, but certainly in the past fifty years there has not existed a teacher in the world who understood the value of playfulness and wit quite so well as Osho."
Tom Robbins, author of Even Cowgirls Get the Blues, Still Life with Woodpecker and Jitterbug Perfume and others.
"Osho is such a vision that stands for the welfare of the whole of humanity, transcending the narrow boundaries of religions. Though today´s man is so caught up in his myriad problems, all of Osho´s books and discourses suggest simple and easy ways for man´s liberation."
Lokendra Bahadur Chand, the former premier, of Nepal
"Osho is not trying to purvey information but a truth that bypasses conscious thought and all that belongs to it, just as the most important activities of human beings bypass the mind."
Bernard Levin, Journalist, commentator and writer.
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश
great bhai. i am also osho lover
जनसंख्या विस्फोट
प्रश्न कर्ता: भगवान श्री, एक और प्रश्न है कि परिवार नियोजन जैसा अभी चल रहा है उसमें हम देखते है कि हिन्दू ही उसका प्रयोग कर रहे है, और बाकी और धर्मों के लोग ईसाई, मुस्लिम, ये सब कम ही उपयोग कर रहे है। तो ऐसा हो सकता है कि उनकी संख्या थोड़े वर्षों के बाद इतनी बढ़ जाये कि एक और पाकिस्तान मांग लें और तुर्किस्तान मांग लें और कुछ ऐसी मुश्किलें खड़ी हो जायें। फिर पाकिस्तान या चीन है, जहां जनसंख्या पर रूकावट नहीं है। तो उसमें अधिक लोग हो जायेंगे और पर हमला करने की चेष्टा रखते है। तो हमारी जनसंख्या कम होने से हमारी ताकत कम हो जाय। तो इसके बारे में आपके क्या ख्याल है?
भगवान श्री: इस संबंध में दो तीन बातें ख्याल में रखने की है।
पहली बात तो यह कि आज के वैज्ञानिक युग में जनसंख्या का कम होना, शक्ति का कम होना नहीं है। हालतें उल्टी है, हाल तो यह है कि जिस मुल्क की जनसंख्या जितनी ज्यादा है, या टेकांलॉजिकल दृष्टि से कमजोर है। क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या के पालन-पोषण में, व्यवस्था में उसके पास अतिरिक्त सम्पति बचने वाली नहीं है। जिससे वह एटम बम बनाये, हाइड्रोजन बम बनाये, सुपर बन बनाये, और चाँद पर जाये। जितना गरीब देश होगा आज वह उतना ही वैज्ञानिक दृष्टि से शक्तिहीन देश है।
आज तो वहीं देश शक्ति शाली होगा, जिसके पास ज्यादा संपति है, ज्यादा व्यक्ति नहीं।
वह जमाना गया, जब आदमी ताकतवर था, अब मशीन ताकतवर है। और मशीन उसी देश के पास अच्छी से अच्छी हो सकेगी, जिस देश के पास जितनी सम्पन्नता होगी और सम्पन्नता उसी देश के पास ज्यादा होगी, जिसके पास प्राकृतिक साधन ज्यादा और जनसंख्या कम होगी।
तो पहली बात यह है कि आज जनसंख्या शक्ति नहीं है और इसलिए भ्रांति में पड़ने का कोई कारण नहीं है। चीन के पास चाहे जितनी जनसंख्या हो तो भी शक्तिशाली अमेरिका होगा। चीन के पास जितनी भी जनसंख्या हो तो भी छोटा सा मुल्क इंगलैंड शक्तिशाली है। और जापन जैसा मुल्क भी शक्ति शाली है। शक्ति का पूरा का पूरा आधार बदल गया है।
जब आदमी ही एक मात्र आधार था, तब तो ये बातें ठीक थी कि जनसंख्या बड़ा मूल्य रखती थी। लेकिन अब आदमी से भी बड़ी शक्ति हमने पैदा कर ली है, जो मशीन की है। मशीन ताकत है। और उतना ही सम्पन्न हो सकता है। जितना ज्यादा जनसंख्या उसकी कम हो, ताकि उसके पास सम्पति बच सके, लोगों को खिलाने कपड़ा पहिनाने, इलाज कराने के बाद; ताकि उस शक्ति को वैज्ञानिक विकास में लगा सकें।
दूसरी बात यह समझने जैसी है कि संख्या कम होने से उतना बड़ा दुर्भाग्य नहीं टूटेगा, जितना बड़ा दुर्भाग्य संख्या के बढ़ जाने से बिना किसी हमले के टूट जायेगा। यानी हमले का तो कोई उपाय भी किया जा सकता है कि कोई बड़ा मुल्क हम पर हमला करे तो हम दूसरों से सहायता ले लें, लेकिन हमारे ही बच्चे हमलावर सिद्ध हो जायें संख्या के अत्यधिक बढ़ जाने के कारण तो हम किसी की सहायता न ले सकेंगे। उस वक्त हम बिलकुल असहाय हो जायेंगे।
इस वक्त युद्ध इतना बड़ा खतरा नहीं है, जितना बड़ा खतरा जनसंख्या विस्फोट का है। खतरा बाहर नहीं है कि हमें कोई मार डाले,वरन जो हमारी उत्पाद क्षमता है बच्चें की, वहीं हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा है—कि संख्या इतनी ही जाये कि हम सिर्फ मर जाये इस कारण से कि न पानी हो, न भोजन हो, न रहने को जगह।
तीसरी बात यह कि जो हम सोचते है क हिन्दू अपनी संख्या कम कर लें तो मुसलमान से कम न हो जायें, तो इस डर से हिंदू भी अपनी संख्या कम न करें। मुसलमान भी इस डर से अपनी संख्या कम न करें कि कहीं हिन्दू ज्यादा न हो जायें। ईसाई भी यही डर रखें। जैन भी यहीं डर रखें। तो इन सके डर एक है। तब परिणाम यह होगा कि मुल्क ही मर जायेगा।
तो यह डर किसी को तो तोड़ना शुरू करना पड़ेगा। और जो समाज इस डर को तोड़ेगा, वह संपन्न हो जायेगा। मुसलमानों से उनके बच्चे ज्यादा स्वस्थ ज्यादा शिक्षित होंगे, ज्यादा अच्छे मकानों में रहेंगे। वे दूसरे समाजों को जिनकी संख्या कीड़े मकोड़ों की तरह बढ़ेगी उनको पीछे छोड़कर आगे निकल जायेंगे। और इसका परिणाम यह भी होगा कि दूसरे समाजों में भी स्पर्धा पैदा होगी इस ख्याल से कि वे गलती कर रहे है।
आज दूनिया में यह बड़ा सवाल नहीं है कि हिन्दू कम हो गये तो कोई हर्ज हो रहा है। कि मुसलमान ज्यादा हो गये तो उनको कोई फायदा हो रहा है। बड़ा सवाल यह है कि अगर इन सारे लोगों के दिमाग में यही सवाल भरा रहे तो यह पूरा मुल्क मर जायेगा। मगर यही विकल्प है कि हिन्दू कम हो जायेंगे और इससे हिन्दुओं की संख्या को नुकसान पहुँचेगा।
मुसलमान ज्यादा हो जायेंगे, ईसाई ज्यादा हो जायेंगे। तो भी मैं कहूंगा कि हिन्दू अपने को कम कर लें और भारत को बचाने का श्रेय ले लें। चाहे खुद मिट जायें। हालांकि इसकी कोई संभावना नहीं है। तो भी मैं कहूंगा कि मेरे लिए यह इतना बड़ा सवाल नहीं है, हिन्दू-मुसलमान का, जितना बड़ा मेरे लिए एक दूसरा सवाल है।
जब तक हम परिवार नियोजन को स्वेच्छा पर छोड़े हुए है, तब तक खतरा एक दूसरा है कि जो जितना शिक्षित आरे उन्नत है, जो जितना संपन्न है, जिसकी बुद्धि विकसित है, वह तो राजी हो जाएगा स्वभावत। वह तो आज परिवार नियोजन के लिए राज़ी हो जाएगा।
सिर्फ बुद्धूओं को छोड़कर। बुद्धिमान तो राज़ी होंगे ही; क्योंकि परिवार नियोजन से उसके बच्चे ज्यादा सुखी होंगे। ज्यादा शिक्षित होंगे।
लेकिन खतरा यह है कि जो बुद्धिहीन वर्ग है—उसको न कोई शिक्षा है, न कोई ज्ञान है, न कोई सवाल है—वे समझ ही न पाये और बच्चे पैदा करते चले जायें। तो जो नुकसान हो सकता है लम्बे अर्थों में,वह यह हो सकता है वह अशिक्षित,अविकसित, पिछड़े हुए लोग ज्यादा बच्चे पैदा करें और शिक्षित वह संपन्न लोग कम बच्चे पैदा करें तो मुल्क की प्रतिभा को ज्यादा नुकसान पहुंचे। यह हो सकता है।
इसलिए मेरी यह मान्यता है कि परिवार नियोजन की बात धीरे-धीरे अनिवार्य हो जानी चाहिए।
कहीं ऐसा न हो कि बुद्धिमान तो स्वीकार कर लें और गैर-बुद्धिमान न करें,तो वह अनिवार्य होना चाहिए। इसलिए मैं अनिवार्य परिवार नियोजन के पक्ष में हूं।
परिवार नियोजन किसी का स्वेच्छा पर नहीं छोड़ा जा सकता है।
यह तो ऐसा है कि जैसे हम हत्या को स्वेच्छा पर छोड़ दें कि जिसको करना हो करें, जिनको न करना हो न करें। डाके को स्वेच्छा पर छोड़ दें कि जिसको डाका डालना हो डाले,न डालना हो न डाले।
सरकार समझाने की कोशिश करेगी ओर देखती रहेगी। डाका भी आज उतना खतरनाक नहीं है हत्या भी आज उतनी खतरनाक नहीं है जितना जनसंख्या का बढ़ना।
इस जीवंत सवाल को इस तरह स्वेच्छा पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। और जब हम इसे स्वेच्छा पर नहीं छोड़ते तो यह हिन्दू, मुसलमान, ईसाई का सवाल नहीं रह जाता। क्योंकि सिक्ख को उसका गुरु समझा रहा है कि तुम कम हो जाओगे। मुसलमान ज्यादा हो जायेंगे।
मुसलमान को मौलवी समझा रहा है कि तुम कम हो जाओगे, हिन्दू कम ज्यादा हो जायेगे। वहीं ईसाई पादरी भी सोच रहा है वही हिन्दू पंडित भी सोच रहा है। ये बस जा सोच रहे है इनकी सोचने की वजह भी अनिवार्य परिवार नियोजन से मिट जायेगी।
यदि हम परिवार नियोजन कर देते है तो कोई हिन्दू, मुसलमान, ईसाई का सवाल नहीं रह जाता है।
मेरे लिए तो सवाल यह है कि सैकड़ों वर्षों में कुछ लोग विकसित हो गये है और कुछ लोग अविकसित रह गये है। जो अविकसित वर्ग है, वह बच्चे ज्यादा छोड़ जाये तो देश की प्रतिभा और बुद्धिमत्ता को भी भारी नुकसान पहुंच सकता है। और यह नुकसान खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
इसलिए इस दृष्टि से मैं सारे सवाल को सोचता हूं कि केवल परिवार नियोजन ही न हो, बल्कि ऐसा लगता है कि वह अनिवार्य हो। एक भी व्यक्ति सिर्फ इसलिए न छोड़ा जा सके कि वह राज़ी नहीं है। और यह हमें करना ही पड़ेगा। इसे बिना किये हम इन आने वाले 50 वर्षों में जिन्दा नहीं रह सकते।
शक्ति के सारे मापदंड बदल गये है, यह हमें ठीक से समझ लेना चाहिए।
आज शक्तिशाली वह है जो संपन्न है और संपन्न वह है, जिसके पास जनसंख्या कम है और उत्पादन के साधन ज्यादा है।
आज मनुष्य न तो उत्पादन का साधन है। न शक्ति का साधन है। आज मनुष्य सिर्फ भोक्ता है, कन्ज्यूमर है। मशीन पैदा करती है, जमीन पैदा करती है, मनुष्य खा रहा है।
और धीरे-धीरे जैसे टेक्नोलॉजी विकसित होती है, आदमी की शक्ति सा सारा मूल्य समाप्त हुआ जा रहा है। आदमी ने हो तो भी चल सकता है। एक लाख आदमी जिस फैक्टरी में काम करते हों, उसे एक आदमी चला सकेगा। न हो तो भी चल सकता है।
और हिरोशिमा में एक लाख आदमी मारना हो तो उन्हें एक आदमी मार सकेगा। पुराने जमाने में तो कम से कम एक लाख आदमी ले जाने पड़ते। अब तो कोई एक आदमी जाता है और एटम बम गिराकर उनको समाप्त कर देता है।
कल यह भी हो सकता है कि एक आदमी को भी न जाना पड़े। कम्प्युटराइज्ड आदेश एक आदमी भर देगा मशीन में काम हो जायेगा। आदमी की संख्या बिलकुल महत्वहीन हो गयी है।
यह जरूरी नहीं है कि मेरी सारी बातें मान ली जायें। इतना ही काफी है कि आप मेरी बात पर सोचें,विचार करें, अगर इस देश में सोच-विचार आ जाये तो शेष चीजें अपने आप छाया की तरह पीछे चली आयेगी।
मेरी बातें ख्याल में ले और उस पर सूक्ष्मता से विचार करें तो हो सकता है कि आपको यह बोध आ जाये कि परिवार नियोजन की अनिवार्यता कोई साधारण बात नहीं है।
जिसकी उपेक्षा की जा सके। वह जीवन की अनेक-अनेक समस्याओं की गहनत्म जड़ों से संबंधित है। और उसे क्रियान्वित करने की देरी पूरी मनुष्य जाति के लिए आत्म धात सिद्ध हो सकती है।
ओशो
संभोग से समाधि की और
जनसंख्या विस्फोट
प्रवचन—9