क्राइस्ट कहते हैं, तुम कन्फेस कर दो, मैं तुम्हें माफ किए देता हूं। और जो क्राइस्ट पर भरोसा करता है वह पवित्र होकर लोटेगा. असल में क्राइस्ट पाप से तो मुक्त नहीं कर सकते, लेकिन स्मृति से मुक्त कर सकते हे। स्मृति ही असली सवाल हे। गंगा पाप से मुक्त नहीं कर सकती, लेकिन स्मृति से मुक्त कर सकती हे।
अगर कोई भरोसा लेकर गया है। कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप से बाहर हो जाऊँगा और ऐसा अगर उसके चित में है। उसकी कलेक्टव अनकांशेस में है, उसके समाज की करोड़ों वर्ष से छुटकारा नहीं होगा वैसे, क्योंकि चोरी को अब कुछ और नहीं किया जा सकता। हत्या जो हो गई, हो गयी लेकिन यह व्यक्ति पानी के बाहर जब निकला तो सिंबालिक एक्ट हो गया।
क्राइस्ट कितने दिन दुनिया में रहेंगे, कितने पापीयों से मिलेंगे, कितने पापी कन्फेस कर पाएंगे। इसके लिए हिंदुओं ने ज्यादा स्थायी व्यवस्था खोजी है। व्यक्ति से नहीं बांधा। यह नदी कन्फेशन लेती रहेगी। वह नदी माफ करती रहेगी, यह अनंत तक रहेगी, और ये धाराएं स्थायी हो जाएंगी।
क्राइस्ट कितने दिन रहेंगे। मुश्किल से क्राइस्ट तीन साल काम कर पाए, कुल तीन साल। तीस से लेकर तैंतीस साल की अम्र तक, तीन साल में कितने पापी कन्फेस करेंगे। कितने पापी उनके पास आएंगे। कितने लोगों के सिर पर हाथ रखेंगे। यहां के मनीषीयों ने व्यक्ति से नहीं बांधा, धारा से बाँध दिया।
तीर्थ है, वहां जाएगा कोई, वह मुक्त होकर लौटेगा। तो स्मृति से मुक्त होगा। स्मृति ही तो बंधन है। वह स्वप्न जो आपने देखा, आपका पीछा कर रहा है। असली सवाल वही है, और निश्चित ही उससे छुटकारा हो सकता है। लेकिन उस छुटकारे में दो बातें जरूरी है। बड़ी बात तो यह जरूरी है कि आपकी ऐसी निष्ठा हो कि मुक्ति हो जाएगी। और आपकी निष्ठा कैसे होगी। आपकी निष्ठा तभी होगी जब आपको ऐसा ख्याल हो कि लाखों वर्ष से ऐसा वहां होता रहा है। और कोई उपाय नहीं है।
वह सुझाव गहरा होता चला जाता है। वह सरल चित में जाकर निष्ठा बन जाएगी। वह निष्ठा बन जाए तो तीर्थ कारगर हो जाता हे। वह निष्ठा न बन पाए तो तीर्थ बेकार हो जाता है। तीर्थ आपके बिना कुछ नहीं कर सकता। आपका को-औपरेशन चाहिए। लेकिन आप भी को-औपरेशन तभी देते है कि जब तीर्थ की एक धारा हो एक इतिहास हो।
हिंदू कहते है, काशी इस जमीन का हिस्सा नहीं है। इस पृथ्वी का हिस्सा नहीं है। वह अलग ही टुकडा है। वह शिव की नगरी अलग ही है। वह सनातन है। सब नगर बनेंगे, बिगड़ेगे काशी बनी रहेगी। इसलिए कई दफा हैरानी होती है। व्यक्ति तो खो जाते है— बुद्ध काशी आये, जैनों के तीर्थकर काशी में पैदा हुए और खो गए। काशी ने सब देखा— शंकराचार्य आए, खो गए। कबीर आए खो गए। काशी ने तीर्थ देखे अवतार देखे। संत देखे सब खो गए। उनका तो कहीं कोई निशान नहीं रह जाएगा। लेकिन काशी बनी रहेगी। वह उन सब की पवित्रता को, उन सारे लोगों के पुण्य को उन सारे लोगों की जीवन धारा को उनकी सब सुगंध को आत्मसात कर लेती है और बनी रहती हे।
यह जो स्थिति हे। यह निश्चित ही पृथ्वी से अलग हो जाती है। मेटाफरीकली। यह इसका अपना एक शाश्वत रूप हो गया, इस नगरी का अपना व्यक्तित्व हो गया। इस नगरी पर से बुद्ध गूजरें, इसकी गलियों में बैठकर कबीर ने चर्चा की है। यह सब कहानी हो गयी। वह सब स्वप्नवत् हो गया। पर यह नगरी उन सबको आत्मसात किए है। और अगर कभी कोई निष्ठा से इस नगरी में प्रवेश करे तो वह फिर से बुद्ध को चलता हुआ देख सकता है वह फिर से पाश्रर्वनाथ को गुजरते हुए देख सकता है। वह फिर से देखेगा तुलसीदास को वह फिर से देखेगा कबीर को।
अगर कोई निष्ठा से इस काशी के निकट जाए तो यह काशी साधारण नगरी न रह जाएगी लंदन या बम्बई जैसी। एक असाधारण चिन्मय रूप ले लेगी। और इसकी चिन्मयता बड़ी पुरातन है। इतिहास खो जाते है। सभ्यताऐं बनती है। आती है और चली जाती है। और यह अपनी एक अंत: धारा करने के प्रयोजन है। आप भी हिस्सा हो गए है एक अंत धारा को संजोए हुए चलती है। इसके रास्ते पर खड़ा होना, इसके घाट पर स्नान करना इसमें बैठकर ध्यान करने के प्रयोजन है। आप भी हिस्सा हो गए है एक अंत: धारा के। यह भरोसा कि मैं ही सब कुछ कर लुंगा, खतरनाक है। प्रभु का सहारा लिया जा सकता है, अनेक रूपों में— उसके तीर्थ में, उसके मंदिरों में उसका सहारा लिया जा सकता है। सहारे के लिए यह सारा आयोजन है।
यह कुछ बातें जो ठीक से समझ में आ सकें वह मैंने कहीं। बुद्धि, जिनको देख पाये समझ पाये, पर यह पर्याप्त नहीं है। बहुत सी बातें है तीर्थ के साथ, जो समझ में नहीं आ सकेंगी पर घटित होती है। जिनको बुद्धि साफ-साफ नहीं देख पाएगी। जिनका गणित नहीं बनाया जा सकेगा। लेकिन घटित होती है।
सत्य वचन
मन के हरे हर है मन के जीते जीत
सारा खेल मन का ही तो है
यदि मन पर काबू पाले तो सब सही हो जाये
"बहुत सी बातें है तीर्थ के साथ, जो समझ में नहीं आ सकेंगी पर घटित होती है। जिनको बुद्धि साफ-साफ नहीं देख पाएगी। जिनका गणित नहीं बनाया जा सकेगा। लेकिन घटित होती है।"
यह एक बड़ी सच्चाई है.
में जन्म से तो हिन्दू नहीं हूँ, पर काशी के बारे में बहुत सुना है ..... ओशो के कहे इन शब्दों से लग रहा है कि काशी कि यात्रा करनी ही पड़ेगी
इसके लिए हिंदुओं ने ज्यादा स्थायी व्यवस्था खोजी है। व्यक्ति से नहीं बांधा। यह नदी कन्फेशन लेती रहेगी। वह नदी माफ करती रहेगी, यह अनंत तक रहेगी, और ये धाराएं स्थायी हो जाएंगी।
बहुत ही कमाल के होते है ओशो के शब्द .....
एक विचारोत्तेजक आलेख।
मन को नयी दिशा देता लेख है ...... साधुवाद .....
इसे भी देखें .......
( मेरी लेखनी.. मेरे विचार.. )
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अति सुन्दर और ज्ञानवर्धक जानकारी ........ आभार
बढ़िया प्रस्तुति .......
सच
अदभुत है ये
आलेख
dhanyavaad.
achanak man karne laga ki jaa kar banaras me basa raha jay.
magar shayad osho kuchh aur hi kehna chah rahe the. wah kya hai?
shayd man ki baat, nishtha aur shraddha ki baat- aur wah bhi ek maushya ki nahin balki sadiyon ke antral anginat manvon ki ek sammalit shraddha- jo mukt karti hai!!!
sundar aalekh!
faith works wonders....
regards,
सनातर धर्म को अगर सही में समझना है तो हर शब्द को उसे अर्थ देने वाले की बातों को पढ़ना ही पढ़ेगा। अनंत सागर से भी अनंत सनातनधर्मी जाने कहां अपने प्राण खो चुके हैं। उन्हें अपने ही संतों को फिर से देखना होगा। गुरु तो हर कोई होता है फिर इतना विरोध ओशो का क्यूं, समझ में नहीं आता।
पर काशी के बारे में बहुत सुना है ..... ओशो के कहे इन शब्दों से लग रहा है कि काशी कि यात्रा करनी ही पड़ेगी
यह जो स्थिति हे। यह निश्चित ही पृथ्वी से अलग हो जाती है। मेटाफरीकली। यह इसका अपना एक शाश्वत रूप हो गया, इस नगरी का अपना व्यक्तित्व हो गया। इस नगरी पर से बुद्ध गूजरें, इसकी गलियों में बैठकर कबीर ने चर्चा की है। यह सब कहानी हो गयी। वह सब स्वप्नवत् हो गया। पर यह नगरी उन सबको आत्मसात किए है।
...............ज्ञानवर्धक जानकारी ........ आभार
बढ़िया प्रस्तुति .......
बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली! आभार!
आभार सभी पाठको का...... पाठको से निवेदन है कि अपनी टिप्पणिया जहा तक हो सके हिंदी में ही लिखे
पाठको से निवेदन है कि अपनी टिप्पणिया जहा तक हो सके हिंदी में ही लिखे ..... हिंदी हमारे देश कि प्रमुख भासा है .... कृपया इसे सम्मान दे
ज्ञानवर्धक प्रस्तुति .......
क्या प्यारे "ओशो" के बोले गये एक भी शब्द पर कोई टिप्पणी दी जा सकती है?
बस इतना ही कह सकता हूँ कि हमें उनके प्रवचन पढवाने के लिये हार्दिक आभार
प्रणाम स्वीकार करें
अद्भुत वचन।
एक ललक पैदा हुई है कि काशी जाकर कुछ अनुभव किया जाए।
Kya kah sakte hain
नये तरीके से सोचने और समझने की शक्ति देता है ओशो का लिखा .... धीरे धीरे आत्मसात कर रहा हूँ .....
भाई वाह क्या बात कही है ओशो ने .... पर जनाब ये पोस्ट मेरे ब्लॉग पर भी लगी है ..... मतलब के आपकी पोस्ट चोरी हो गयी है ......
भाई वाह क्या बात कही है ओशो ने .... पर जनाब ये पोस्ट मेरे ब्लॉग पर भी लगी है ..... मतलब के आपकी पोस्ट चोरी हो गयी है ......
अगर यकीं नहीं आता तो जरा इस लिंक पर आकर देख लीजिये
अगर यकीं नहीं आता तो जरा इस लिंक पर आकर देख लीजिये
http://chorikablog.blogspot.com/2010/09/blog-post_27.html
आपके जैसे भी विचार हो इस बारे में तो अवगत जरुर कराये .....
सही चिंतन है ।
जी ओशो सच कहते हैं काशी शाश्वत है सारी दुनिया में न्यारी है !
सच में, सारा खेल ही निष्ठा का है.....
ओशो का चिन्तन जीवन की गहराई से उपजता है, उनके कई सूत्र बहुत प्रभावित करते है, मेरे पास भी ध्यानयोग पर उनकी पुस्तकें हैं। बहुत अच्छी पोस्ट। धन्यवाद।
नि:शब्द कर दिया
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
क्राइस्ट कितने दिन रहेंगे। मुश्किल से क्राइस्ट तीन साल काम कर पाए, कुल तीन साल। तीस से लेकर तैंतीस साल की अम्र तक, तीन साल में कितने पापी कन्फेस करेंगे। कितने पापी उनके पास आएंगे। कितने लोगों के सिर पर हाथ रखेंगे। यहां के मनीषीयों ने व्यक्ति से नहीं बांधा, धारा से बाँध दिया।
१०० टका सच बात कही है ......
पढ़िए और मुस्कुराइए :-
जब रोहन पंहुचा संता के घर ...
पाठको से निवेदन है कि अपनी टिप्पणिया जहा तक हो सके हिंदी में ही लिखे ..... हिंदी हमारे देश कि प्रमुख भासा है .... कृपया इसे सम्मान दे
aapka yah nivedan padha(devnagri mein nahi type kar paa rahe hain , iske liye punah kshama karenge)
aapke nivedan ki garima swayamsiddha hai mahoday,
hume dhrisht'ta ke liye kshama karenge,
angrezi mein tipanni kar "asamman" ka jo paap hua wah nischit ashamya hai...
aayinda maun rahna hi shteskar hai mere liye.....
likhte rahen!!!!
subhkamnayen
shteskar = shryeshkar
आभार आप सभी पाठको का ......
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश