" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | शुक्रवार, सितंबर 24, 2010 | 52 टिप्पणियाँ


हिंदुस्तान में चार - पांच हजार वर्षो से हम करोडो शुद्रो को सता रहे है, परेशान कर रहे है, क्यों? एक शब्द हमने इजाद कर लिया, "शुद्र"। और कुछ लोगो पर हमने चिपका दिया कि वे शुद्र है। फिर हमारी आँखें बंद हो गयी, फिर हम उनके कष्ट नहीं देख सके, क्योकि शुद्र, दरवाजा बंद हो गया। फिर हम उनकी पीडाएं अनुभव नहीं कर सके, फिर हमारा ह्रदय उनके प्रति प्रेम से प्रवाहित नहीं हो सका। एक शब्द हमने उन पर चिपका दिया, "शुद्र"

एक इजाद कर लिया शब्द। और उस शब्द के आधार पर हम पांच हजार साल से करोडो - करोड़ लोगो को परेशान कर रहे है। और हमें यह ख्याल भी पैदा नहीं हुआ कि हम ये क्या कर रहे है ? इसलिए ख्याल पैदा नहीं हुआ क्योकि जिसे हमने शुद्र कह दिया वह हमारे लिए मनुष्य ही नहीं रह गया। उसका मनुष्यों से कोई सम्बन्ध नहीं रह गया। एक शब्द बड़ा हो गया शुद्र, और मनुष्य से मनुष्य अलग हो गया। वह ठीक हमारे जैसा व्यक्ति, दूसरी तरफ मनुष्यों के बहार हो गया।

अगर उसने वेदों ऋचाएं सुन ली तो हमने उनके कान में शीशा पिघलवा कर भरवा दिया, क्योकि वह सुनने का हक़दार न था, वह शुद्र था। हमें यह ख्याल भी न आया कि उसके भीतर भी हमारे जैसी एक आत्मा है, जो सत्य की खोज करना चाहती है। और अगर उसने वेदों को सुनने की हिम्मत की है, आकांक्षा की है, तो यह स्वागत के योग्य बात है। नहीं, हमें ख्याल नहीं आया। एक शब्द काफी है कि वह शुद्र है और बात ख़त्म हो गई।

हमारे कान बंद हो गए, हमारे प्राण बंद ही गए, हमारे ह्रदय बंद हो गए। हमने हजारो शब्द इजाद कर लिए और ये दीवार की तरह खड़े हुए है।

में एक घर में मेहमान था। उस घर के लोगो ने मेरे साथ बहुत अच्छा व्यव्हार किया। वे बड़े प्रेम से मुझे दो दिनों तक अपने घर में रखे। चलने से कोई दो घंटे पहले उस घर के मालिक ने मुझसे पुछा "आपकी जाति क्या है ?" उन्हें मेरी जाति का कोई पता नहीं था। और मेरी कोई जाति है भी नहीं, पता हो तो कैसे हो ? तो मैंने उनसे मजाक में कहा कि आप खुद ही सोचे कि मेरी जाति क्या हो सकती है ?

उनके घर में एक छोटा सा बच्चा था, उसने मेरी दाढ़ी वगेरह देख कर कहा कि आप मुसलमान तो नहीं ? मैंने कहा कि अगर तुम कहते हो तो यही सही, मुसलमान ही सही। उस घर में बड़ी चिंता फ़ैल गई। उन सब का मेरे प्रति रुख बदल गया। में दो घंटे में दूसरा आदमी हो गया। उसके पहले में दूसरा आदमी था। एक शब्द बीच में
आ गया "मुसलमान" और में दूसरा आदमी हो गया। में वही था जो दो दिन से था, लेकिन वे बीते दो घंटे भिन्न हो गए।

आते वक्त उन्होंने मेरे पैर पड़े थे, जाते वक्त उस घर में से किसी ने मेरे पैर नहीं पड़े। एक शब्द जो बीच में आ गया। आते वक्त वे ख़ुशी से भरे थे, जाने के बाद शायद उन्होंने अपना घर साफ किया हो। किया जरुर होगा, सफाई की होगी - एक मुसलमान जो घर में आ गया। में वही था, लेकिन एक शब्द बीच में आ गया और सारी बात बदल गई।

हमने न जाने कितने शब्द खड़े किये हुए है जो दीवार की तरह एक-दुसरे मनुष्य को अलग कर रहे है। और मनुष्य को अलग ही नहीं कर रहे है, हमारी आँखों को भी अँधा कर रहे है, हमारे प्राणों को भी बहरा कर रहे है, हमारी संवेदनशीलता को तोड़ रहे है।

जर्मनी में हिटलर ने कोई बीस लाख यहूदियों की हत्या करवाई। किन लोगो ने हत्या की ? वे लोग बहुत बुरे लोग है ? नहीं, वे हमारे जैसे ही लोग है। पांच सौ यहूदी रोज नियमित हत्या किये जाते रहे। कौन लोग हत्या कर रहे थे उनकी ? वे कोई पागल है ? उनके दिमाग ख़राब हो ? या कि वे कोई दैत्य है, राक्षस है ? नहीं हमारे जैसे लोग है। सब बाते हमारे जैसी है। लेकिन एक शब्द है यहूदी, और इस शब्द के साथ उनके प्राण पागल हो गए और उन्होंने वह किया जो मनुष्य को करने में जरा भी शोभा नहीं देता।

हमने अपने मुल्क में क्या किया ? हिन्दुओ ने मुसलमानों के साथ क्या किया ? मुसलमानों ने हिन्दुओ के साथ क्या किया ? छोड़ दे हिन्दू-मुसलमान की बात, मराठी गुजराती के साथ क्या कर सकता है ? गुजराती मराठी के साथ क्या कर सकता है ? हिंदी बोलने वाला गैर-हिंदी बोलने वाले के साथ क्या कर सकता है ? गैर-हिंदी बोलने वाला हिंदी बोलने वाले के साथ क्या कर सकता है ? कुछ शब्द, और इन शब्दों में जहा भरा जा सकता है और हमारे प्राण बिलकुल ही पागल हो सकते है।

ऐसे बहुत से शब्दों की दीवार हमने खड़ी कर ली है। इन शब्दों की दीवारों में जो घिरा है वह आदमी कभी भी धार्मिक नहीं हो सकता।

शब्दों से मुक्त होना चाहिए। ये एक तो शब्द है, दीवार की तरह मनुष्य-मनुष्य को तोड़ रहे है और साथ ही ये शब्द जीवन के प्रति भी हमारी आखों को नहीं खुलने देते। हम शायद सब तरफ शब्दों को खड़ा कर लेते है। अपने चारो तरफ एक किला बना लेते है शब्दों का, और उसके भीतर छिप जाते है।

और जब भी जीवन में कोई नई घटना घटती है, तो हम पुराने शब्दों से उसकी व्याख्या कर लेते है, और उसका नयापन समाप्त हो जाता है और ख़त्म हो जाता है ।

ओशो,
अंतर की खोज

ये अख़बार की कटिंग श्री गजेन्द्र सिंह जी के द्वारा भेजी गयी थी, और इस पर ओशो के विचार मेल से भेजने की बात कही गयी थी परन्तु में ओशो के इन विचारो को आप सब के सामने रख रहा हूँ।

52 पाठको ने कहा ...

  1. सुमन्त says:

    बहुत मार्मिक लेख! हमें सोचने पर मजबूर करता है कि शब्द बड़े हैं या मनुष्य? शब्द को ब्रह्म कहा गया है और ब्रह्म की शक्ति अजेय होती है। यह शक्ति किसी व्यक्ति को शिखर पर पहुँचा सकती है और यही शक्ति किसी व्यक्ति का पूरा जीवन नष्ट भी कर सकती है। अतः आवश्यक है कि हम प्रत्येक शब्द का प्रयोग सोच-समझकर करें।

    यदि हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं, तो कौन शूद्र और कौन पवित्र? सभी एक हैं, सभी मनुष्य हैं, सभी ईश्वर के पुत्र हैं, यही सत्य है।

    आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है। मैं अवश्य ही यहाँ नियमित रूप से आता रहूँगा, ताकि कुछ गंभीर व उपयोगी विचार प्राप्त कर सकूँ।

    सादर धन्यवाद!

  2. S.M.Masoom says:

    सब इंसान एक सामान हैं, कोई ना सब एक सामान हैं. सत्य है.

  3. हम कब सुधरेंगे ? i

  4. बेनामी says:

    ओशो बहुत बड़े हस्ताक्षर हैं किसी भी मनुष्य के द्वारा समय के फलक पर किये गये। उनके कहे शब्दों को पढ़ना लोगों की जरुरत है। ओशो ने तो अपने स्त्रोत से अमूल्य शब्दों की, वचनों की गंगा बहा दी है अब लोगों को खुद ही पुण्य कमाने हैं इस गंगा के जल से सराबोर होकर।

  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
  6. इस समाचार को पढ़ मेरा भी मन उद्वेलित हुआ था.. और सोचा था कि कुछ लिखूं. आपने ओशो का कथन इसके विरोध में लगा दिया.. उनसे ज्यादा बेहतर और कौन कह सकता है भला?.. आभार सर.

  7. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मन में पड़े शब्द और चित्र हमारे संस्कार (प्रभाव और सुझाव) हैं. हम इ्न्हें सच मानते हैं जब कि हमारा अस्तित्व इनसे अलग है. हम इनके प्रति सचेत हो कर मानवता के पथ पर आगे जा सकते हैं.

  8. Urmi says:

    जब हम सभी को इश्वर ने बनाया है फिर हम आप आपस में भेद भाव क्यूँ करते हैं? क्यूँ हम मिलजुलकर नहीं रह सकते? आपका हर एक पोस्ट इतना बढ़िया होता है की सोचने पर मजबूर कर देता है! उम्दा प्रस्तुती!

  9. udwelit karne wala samachar...
    saargarbhit post!
    subhkamnayen...

  10. मैं मानव हूँ, धर्म मेरा, अविरत सुख की चाह.
    ढूँढ रहा हर जन्म में, सुख पाने की राह.
    सुख पाने की राह, एक है हर मानव की.
    गौर से देखो चाह एक है हर मानव की.
    कह साधक कवि, बस ओशो जैसा दिखता हूँ.
    हूँ स्वतन्त्र, ना नकल किसी की, मैं मानव हूँ.

  11. शब्दै मारा गिर पड़ा शब्दै छोड़ा राज
    जिन्ही शब्द विवेकिया तिन का सरिगौ काज

  12. आपके विचार अभिप्रेरित करने वाले हैं। मैं तो बस ईश्‍वर से यही चाहता हूं कि हम मधुमक्‍खी की तरह गुणों रूपी मिठास एकत्र करते रहें। और अगर शे’र में कहें तो “बस मौला ज्‍यादा नहीं, कर इतनी औकात, सर उँचा कर कह सकूं, मैं मानुष की जात!” बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    साहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

  13. बहुत अच्छा लेख ...सही है शब्दों की दीवार को तोड़ देना चाहिए ...

  14. सोचने पर मजबूर कर देता है! उम्दा प्रस्तुती!

  15. भाई ओशो रजनीश जी

    यह घटना मैंने भी समाचार पत्रों में पढ़ा है, मिडिया में भी देखा और इसकी व्यापक निंदा -परिनिन्द्द भी सुनी है, आपस में की है. आहात करनेवाली क्षुद्र मानसिकता का प्रतीक है यह घटना. लिकिन बात यह है की इसमें शब्दों का क्या दोष? शब्द तो निर्दोष और पवित्र होते हैं. उसे निहितार्थ और रिधि में तो हमी-आप बांधते है. मै तो इतना ही कहूगा

  16. हाँ भाई अक्षरों और शब्दों से ही सृष्टि और परंपरा का विकास हुआ है, किन्तु लोगों ने जाने - अनजाने इसका अपने अपने तरीके से व्याख्या किया है. तो इसका मुकर विरोध भी हुआ है और ख़ुशी की बात यह है की न्याय प्रिय लोग पहले भी थे और आज भी है. आज मिडिया के द्वारा प्रचार - प्रसार बहुत है, पहले नहीं था. जिस सूक्त "ब्रह्मानोस्यमुखं..." की चर्चा ऋग्वेद में है, उसका तो अर्थ ही यही है -- ब्रह्मण, क्षत्रिय, विषय, शूद्र ये तो विराट ब्रह्म के अंग हैं. विचारणीय प्रश्न यह है की क्या तब भी इस शब्द का यही अर्थ होता यदि नामकरण उलटे क्रम में होता. सोचिये मुख यदि शूद्र कहा गाया होता तो क्या होता? यही होता की शूद्र शब्द आदरणीय और वन्दनीय होता और ब्रह्मण शब्द आज के अर्थों में ....क्यों? क्योकि शब्दों कर अर्थ और मूल्य कार्य . दक्षता और आचरण में सान्निहित होते हैं. सब्दो में नहीं. ठीक उसी प्रकार जैसे यदि पहली बार कलम को पुस्तक नाम दिया गाया होता और पुस्तक को कलम, तो निश्चित जानिये जिन्हें हम आज कलम कह रहें, उसे पुस्तक कहते. और कहते की पुस्तक से एक बछो के लिए कलम लिख रहा हूँ. यह अटपटा नहीं लगता. सबकुछ आचरण, प्रयोग और एवं अर्थ रूधि हो जाने पर एक विशिष्ट अर्थ ग्रहण कर लेता है. मेरा आशय यह नहीं है की मै शूद्र शब्द को आच्रान्हीं बता रहा हूँ क्योकि इसमें अक्षरों का क्या दोष वे वही है - क ख ग घ ....चाहे इधर -उधर कर हम जहाँ रख दे. यदि हमें इस रूधि से बाहर आना है ती तो शूओद्र शब्द को इतना संवेदनशील, आच्रंशील, उद्दार, विनय, विवेकी और महनीय बना दिया जाय की यह पांडित्य और ज्ञानी शब्द को भी पछाड़ दे.
    शूद्र शब्द भी शब्द रूप में उतना ही पवित्र है जितना 'शब्द ब्रह्म'. हमारी शुभकामनाये आपके साथ है . यदि मेरा समर्थन चाहते है तो जिस दिन लगेगा की यह शब्द अपने नए अर्थ को पाने का प्रयास पूर्ण समर्पण और निश्छल होकर कर रहा है, मुझे आप बिना बुलाये अपने पीछे खडा पायेंगे. यह वादा नहीं संकल्प है. और मेरे लिए संकल्प का अर्थ है जिसका कोई विकल्प नहीं...धन्यवाद एक अच्छी चर्चा इसी बहाने हुई जिसकी आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है. कृपया अपनी भावनाओं से अवश्य अवगत कराये एक मित्र मानकर. यहीअनुरोध है साधुवाद....और नमस्कार.

  17. सदा says:

    बहुत ही सुन्‍दर लेखन, इससे बेहतर और कोई प्रस्‍तुति नहीं हो सकती थी, आभार ।

  18. anshumala says:

    अच्छी और सही बात |

  19. bahut hi asardar lekh hai
    hum sabhi ko is se nasihat hasil karni chahiye
    dabirnews.blogspot.com

  20. पाण्डे जी बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक ब्लॉग है आपका। बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर।
    सादर

  21. ये सिर्फ शब्द नहीं, मान्यताएं हैं और समाज के लिए काफी घातक हैं। मान्यतावादियों ने समाज को बहुत आघात पहुंचाया है।

  22. अब भला क्या सुधरेंगे ! अच्छी प्रस्तुति , ओसो जी गायत्री मन्त्र की विवेचना बहुत पसंद आई थी लेकिन टिपण्णी नहीं दे पाया क्योंकि आजकल आपकी ब्लॉग साईट ठीक से नहीं खुलती शायद बहुत ज्यादा विजेट लगे होने की वजह से !

  23. sochne ko majbur kiya aapke post ne kya ham issi sabhya samaj me rah rahe hain.......:(

  24. तकलीफ़ देती हैं इस तरह की ख़बरें। विकास के आंकड़ों को लेकर हम क्या करेंगे?

  25. ईश्वर ने हम सबको एक जैसा बनाया है लेकिन न जाने हम कब तक सुधरेंगे या सुधरेंगे भी या नहीं...
    यहां भी आपका स्वागत है अगर रचनाएं पसंद आएं तो ब्लॉग जरूर फॉलो करें मुझे खुशी होगी
    http://veenakesur.blogspot.com/

  26. समय says:

    रूढ़ियों से मुक्त होने की दिशा में ओशो एक महत्त्वपूर्ण योजक कड़ी हैं।
    अच्छी प्रस्तुति।

    शुक्रिया।

  27. manu says:

    उसने वेदों ऋचाएं सुन ली तो हमने उनके कान में शीशा पिघलवा कर भरवा दिया, क्योकि वह सुनने का हक़दार न था, वह शुद्र था। हमें यह ख्याल भी न आया कि उसके भीतर भी हमारे जैसी एक आत्मा है...



    to iski sajaa aam aadmi ko kyun...?
    jis saale ne sheeshaa pighlaaa kar daalaa thaa use koi kyun nahin kahtaa kuchh..?


    MANU

  28. manu says:

    binaa poori post padhe..
    binaa koi comment padhe...

    comment kiya hai aj.....

  29. Rohit Singh says:

    अक्सर ऐसे समाचार सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि कब समझेंगे हम। हमने बचपन से ऐसा भेदभाव नहीं देखा न ही मां-बाप ने कभी सिखाया। कर्म के सिदांत को जन्म का सिद्दांत बनाकर क्या पाया हमने सिर्फ खोने के। कर्म भी कौन सा...जो इंसान की सेवा का था......उसे नीच मान लिया। खुद नहीं कर सके दूसरे को मजबूर किया करने के लिए। खैर कम से कम महानगरों में हालात सुधरे हैं। पर अब भी शादी की बात पर कत्ल करने वालों की तादाद ही ज्यादा है।

  30. ये शब्द जो हमें एक दूसरे से मिलते हैं , अपना बनाते हैं ...इन्ही का गलत इस्तेमाल हमें दूर भी करता है ...

    सार्थक लेख ...

    आभार ..!

  31. सोचने पर मजबूर करती हैं ऐसी
    घटनाएँ ....... अफ़सोस

  32. एक बहुत ही अफ़सोस जनक वाकये पर कहे गए ओशो के शब्द, वो भी बरसो पहले .... साबित करते है कि ओशो अपने समय से बहुत पहले आ गए थे .... आभार आपका इन प्रवचनों को हम तक पहुचने का ....

  33. लेकिन एक बात खलती जरुर है ... ओशो को मानने वाले को अपना नाम छुपाने कि क्या आवशयकता है ....कृपया अपनी पहचान उजागर करे ... हमें भी तो पता चले कि इतने सुन्दर शब्दों को हम तक पहुचने वाला आखिर दिखता कैसा है ..

  34. Usman says:

    ओशो के कहे शब्द हमेशा ही बेहतरीन होते है .... बढ़िया

  35. Usman says:

    ओशो के कहे शब्द हमेशा ही बेहतरीन होते है .... बढ़िया

  36. M says:
    इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
  37. M says:

    मराठी गुजराती के साथ क्या कर सकता है ? गुजराती मराठी के साथ क्या कर सकता है ? हिंदी बोलने वाला गैर-हिंदी बोलने वाले के साथ क्या कर सकता है ? गैर-हिंदी बोलने वाला हिंदी बोलने वाले के साथ क्या कर सकता है ?

    एकदम सही बात कही है ..... सार्थक और सुंदर शब्द

  38. Basant Sager says:

    शब्द के आधार पर हम पांच हजार साल से करोडो - करोड़ लोगो को परेशान कर रहे है। और हमें यह ख्याल भी पैदा नहीं हुआ कि हम ये क्या कर रहे है ? इसलिए ख्याल पैदा नहीं हुआ क्योकि जिसे हमने शुद्र कह दिया वह हमारे लिए मनुष्य ही नहीं रह गया।

    ये आज की दुनिया है जहा हम एक और तो चाँद पर जाने की सोच रखते है और दूसरी और अपनी इस "अछूत" सोच को ही नहीं बदल पा रहे है

  39. बहुत ही बढ़िया ... शब्द नहीं है मेरे पास इस पर कुछ कहने के लिए ... आभार आपका मेरे मेल किये गए आलेख पर इन शब्दों प्रकाशित करने का ...

  40. कृपया ब्लॉग टेम्पलेट बदल ले ये बहुत देर से खुलता है ....

  41. बेनामी says:

    एक विशेस चतुर जाति नही चाहती थी
    कि सब एक हो जाये ....
    लोगो को अलग 2 कर ही राज्य करना संभव था
    परमात्मा ने तो कोई भेद नही किया

  42. बेनामी says:

    उपर से भले ये लगता हो कि जाति भेद कम हो रहा है
    पर अभी हालत वही के वही है

  43. बहुत ही सार्थक लेख ! एक एक कही बात बिलकुल सच है !

  44. अत्यंत सुंदर ब्लॉग 'ओशो' से कौन प्रभावित नहीं हो सकता
    जो या तो चोर है,चरित्र से हिन् है ,

  45. सोचने पर मजबूर कर देता है! उम्दा प्रस्तुती!

  46. manu says:

    या तो चोर है,चरित्र से....


    osho kinse prabhaavit hain...?

  47. Yuvraj says:

    प्रिय
    जीवन की दौड़ और लगातार बदलती जीवनशैली में में ओशो के विचार पढने और अनुसन करने में अपने आप के काफी आपराधिक पाता था आपने यह पीड़ा अपने लिख से हर ली |
    एक और अनुपम भेंट निर्मोह रूप से प्रदान करने के लिए अनुग्रहित हु |
    आप की सुदर्तम लेख से भगवान् रजनीश के अमृत वचन पढ़कर अपने में सृजनात्मक फर्क देख पाता हु |
    आपके अगले भेंट के आस रहेगी |
    मन्ह्पुर्वक आभार और धन्यवाद !

  48. Janakisharan says:

    इस पोस्ट में जो फ़ोन्ट काम में लिया गया है, वह मेरे सिस्टम पर मौजूद नहीं है, फ़ोन्ट को कैसे डाऊनलोड करे, बताये....

  49. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

  50. बेनामी says:

    ''GLOBAL WARMING''के मुह पर''बर्फ''/''ठण्ड''का जोरदार ''थप्पड़'' कैसा लगा.?.
    http://shivputraekmission.blogspot.com

  51. बेनामी says:

    http://shivputraekmi...ssion.blogspot.com/

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