" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

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Archive for जनवरी 2011

20 जनव 2011

"मैं कोई नहीं हूं। न तो मेरा किसी राष्ट्र से संबंध है न किसी धर्म से और न किसी राजनैतिकपार्टी से। मैं बस एक व्यक्ति हूं, जैसा मुझे अस्तित्व ने बनाया है। मैंने अपने आपको किसी भी मूर्खतापूर्ण सिद्धांत से अलग रखा है-वह चाहे धार्मिक हो,राजनैतिक, सामाजिक या वित्त संबंधी। और चमत्कार यह हैकि क्योंकि मेरी आंखों पर इन सब के चश्मों का बोझनहीं है, न इनका पर्दा पड़ा है,मैं साफ देख सकताहूं।"ओशोXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXआदतें - ओशो प्रवचनXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXओशो के प्रवचनों को औडियो के रूप मे ब्लॉग पर उपलब्ध करवाने का एक छोटा सा प्रयास किया है,यदि ये प्रयास सफल रहा तो जल्द ही आपको ओशो के कहे...

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18 जनव 2011

गलत तपस्‍वी सिर्फ आदत बनाता है तप की। ठीक तपस्‍वी स्‍वभाव को खोजता है, आदत नहीं बनाता। हैबिट और नेचर का फर्क समझ लें। हम सब आदतें बनवाते है। हम बच्‍चे को कहते है—क्रोध मत करो, क्रोध की आदत बुरी है। न क्रोध करने की आदत बनाओ। वहन क्रोध करने की आदत तो बना लेता है, लेकिन उससे क्रोध नष्‍ट नहीं होता। क्रोध भीतर चलता रहता है। कामवासना पकड़ती है तो हम कहते है कि ब्रह्मचर्य की आदत बनाओ। वह आदत बन जाती है। लेकिन कामवासना भीतर सरकती रहती है, वह नीचे की तरफ बहती रहती है। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तपस्‍वी खोजता है—स्‍वभाव के सूत्र को, ताओ को, धर्म को। वह क्‍या है जो मेरा स्‍वभाव हे, उसे खोजता है। सब आदतों को हटाकर वह अपने स्‍वभाव को दर्शन करता है। लेकिन आदतों को हटाने का एक ही उपाय है—ध्‍यान मत...

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10 जनव 2011

"कृपया मुझे बुद्धि से समझने की कोशिश न करें। मैं कोई बुद्धिवादी नहीं हूं,बल्कि बुद्धि-विरोधी हूं। मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं, बल्कि दार्शनिकता विरोधी हूं। मुझे समझने की कोशिश करें। मुझे मौन होकर सुने, बिना किसी भीतरीवार्तालाप के, बिना कोई मूल्यांकन किये। मैं नहीं कह रहा कि जो मैं कह रहाहूं उस पर विश्वास करें, यह नहीं कह रहा कि जो मैं कह रहा हूं उसे स्वीकारें।मैं यह कह रहा हूं कि जो भी मैं कह रहा हूं, उसे स्वीकरने या नकारने में जल्दीन करें। पहले कम से कम सुनें -इतनी जल्दी भी क्या है? जब तुम एक गुलाबको देखते हो तो तुम इसे स्वीकारते हो या नकारते हो ? जब तुम एक सुंदरसूर्यास्त देखते हो तो तुम इसे स्वीकारते हो या नकारते हो? तुम बस इसे देखतेहो और उसे देखने में ही अर्थ छुपा है यदि मैं जो कह...

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