दुनिया में अब तक धार्मिक क्रांतियां हुई हैं। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोग हो गए। कभी समझाने-बुझाने से हुए, कभी तलवार छाती पर रखने से हो गए लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। हिंदू मुसलमान हो जाए तो वैसे का वैसा आदमी रहता है, मुसलमान ईसाई हो जाए तो वैसा का वैसा आदमी रहता है, कोई फर्क नहीं पड़ा धार्मिक क्रांतियों से।
राजनैतिक क्रांतियां हुई हैं। एक सत्ताधारी बदल गया, दूसरा बैठ गया। कोई जरा दूर की जमीन पर रहता है, वह बदल गया, तो जो पास की जमीन पर रहता है, वह बैठ गया। किसी की चमड़ी गोरी थी वह हट गया तो किसी की चमड़ी काली थी वह बैठ गया, लेकिन भीतर का सत्ताधारी वही का वही है।
आर्थिक क्रांतियां हो गई हैं दुनिया में। मजदूर बैठ गए, पूंजीपति हट गए। लेकिन बैठने से मजदूर पूंजीपति हो गया। पूंजीवाद चला गया तो उसकी जगह मैनेजर्स आ गए। वे उतने ही दुष्ट, उतने ही खतरनाक! कोई फर्क नहीं पड़ा। वर्ग बने रहे। पहले वर्ग था, जिसके पास धन है-वह, और जिसके पास धन नहीं है-वह। अब वर्ग हो गया-जिसमें धन वितरित किया जाता है-वह और जो धन वितरित करता है-वह। जिसके पास ताकत है, स्टेट में जो है वह, राज्य में जो है वह, और राज्यहीन जो है वह। नया वर्ग बन गया, लेकिन वर्ग कायम रहा।
अब तक इन पांच-छह हजार वर्षों में जितने प्रयोग हुए हैं मनुष्य के लिए, कल्याण के लिए, सब असफल हो गए। अभी तक एक प्रयोग नहीं हुआ है, वह है शिक्षा में क्रांति। वह प्रयोग शिक्षक के ऊपर है कि वह करे। और मुझे लगता है, यह सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है। शिक्षा में क्रांति सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है। राजनीतिक, आर्थिक या धार्मिक कोई क्रांति का इतना मूल्य नहीं है जितना शिक्षा में क्रांति का मूल्य है। लेकिन शिक्षा में क्राम्ति कौन करेगा? वे विद्रोही लोग कर सकते हैं जो सोचें, विचार करें-हम यह क्या कर रहे हैं! और इतना तय समझ लें कि जो भी आप कर रहे हैं वह जरूर गलत है क्योंकि उसका परिणाम गलत है। यह जो मनुष्य पैदा हो रहा है, यह जो समाज बन रहा है, यह जो युद्ध हो रहे हैं, यह जो सारी हिंसा चल रही है, यह जो सफरिंग इतनी दुनिया में है, इतनी पीड़ा, इतनी दीनता, दरिद्रता है, यह कहां से आ रही है। यह जरूर हम जो शिक्षा दे रहे हैं उसमें कुछ बुनियादी भूलें हैं। तो यह विचार करें, जागें। लेकिन आप तो कुछ और हिसाब में पड़े रहते होंगे