" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

Archive for जनवरी 2010


यह जीवन के सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, क्योंकि यह मूल जीवन-ऊर्जा से संबंधित है। कामवासना...यह शब्द ही अत्यंत निंदित हो गया है। क्योंकि समस्त धर्म उन सब चीजों के दुश्मन हैं, जिनसे मनुष्य आनंदित हो सकता है, इसलिए काम इतना निंदित किया गया है। उनका न्यस्त स्वार्थ इसमें था कि लोग दुखी रहें, उन्हें किसी तरह की शांति, थोड़ी सी भी सांत्वना, और इस रूखे-सूखे मरुस्थल में क्षण भर को भी मरूद्यान की हरियाली पाने की संभावना शेष न रहे। धर्मों के लिए यह परम आवश्यक था कि मनुष्य के सुखी होने की पूरी संभावना नष्ट कर दी जाए।

यह उनके लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों था? यह महत्वपूर्ण था क्योंकि वे तुम्हें, तुम्हारे मन को किसी और दिशा में मोड़ना चाहते थे-परलोक की ओर। यदि तुम सच में ही यहां आनंदित हो-इसी लोक में, तो भला तुम क्यों किसी परलोक की चिंता करोगे? परलोक के अस्तित्व के लिए तुम्हारा दुखी होना अत्यंत आवश्यक है। उसका स्वयं अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं है, उसका अस्तित्व है तुम्हारे दुख में, तुम्हारी पीड़ा में, तुम्हारे विषाद में।

दुनिया के सारे धर्म तुम्हारे अहित करते रहे हैं। वे ईश्वर के नाम पर, सुंदर और अच्छे शब्दों की आड़ में तुममें और अधिक पीड़ा और अधिक संताप, और अधिक घृणा, और अधिक क"ोध, और अधिक घाव पैदा करते रहे हैं। वे प्रेम की बातचीत करते हैं, मगर तुम्हारे प्रेमपूर्ण हो सकने की सारी संभावनाओं को मिटा देते हैं।

मैं काम का शत्रु नहीं हूं। मेरी दृष्टि में काम उतना ही पवित्र है, जितना जीवन में शेष सब पवित्र है। असल में न कुछ पवित्र है, न कुछ अपवित्र है; जीवन एक है-सब विभाजन झूठे हैं, और काम जीवन का केंद्र बिंदु है।

इसलिए तुम्हें समझना पड़ेगा कि सदियों-सदियों से क्या होता आ रहा है। जैसे ही तुम काम को दबाते हो, तुम्हारी ऊर्जा स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए नये-नये मार्ग खोजना प्रारंभ कर देती है। ऊर्जा स्थिर नहीं रह सकती। जीवन के आधारभूत नियमों में से एक है कि ऊर्जा सदैव गत्यात्मक होती है, गतिशीलता का नाम ही ऊर्जा है। वह रुक नहीं सकती, ठहर नहीं सकती। यदि उसके साथ जबरदस्ती की गई, एक द्वार बंद किया गया, तो वह दूसरे द्वारों को खोल लेगी, लेकिन उसे बांधकर नहीं रखा जा सकता। यदि ऊर्जा का स्वाभाविक प्रवाह अवरुद्ध किया गया, तो वह किसी अप्राकृतिक मार्ग से बहने लगेगी। यही कारण है कि जिन समाजों ने काम का दमन किया, वे अधिक संपन्न और समृद्ध हो गए। जब तुम काम का दमन करते हो, तो तुम्हें अपने प्रेम-पात्र को बदलना होगा। अब स्त्री से प्रेम करना तो खतरनाक है, वह तो नरक का द्वार है। चूंकि सारे शास्त्र पुरुषों ने लिखे हैं, इसलिए सिर्फ स्त्री ही नरक का मार्ग है। पुरुषों के बारे में क्या खयाल है?

मैं हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों से कहता रहा हूं कि अगर स्त्री नरक का मार्ग है, तब तो फिर केवल पुरुष ही नरक जा सकते हैं, स्त्री तो जा ही नहीं सकती। मार्ग तो सदा अपनी जगह रहता है, वह तो कहीं आवागमन नहीं करता। लोग ही उस पर आवागमन करते हैं। यूं कहने को तो हम कहते हैं कि यह रास्ता फलां जगह जाता है, लेकिन इसमें भाषा की भूल है। रास्ता तो कहीं आता-जाता नहीं, अपनी जगह आराम से पड़ा रहता है, लोग ही उस पर आते-जाते हैं। यदि स्त्रियां नरक का मार्ग हैं, तब तो निश्चित ही नरक में केवल पुरुष ही पुरुष भरे होंगे। नरक “सिर्फ पुरुषों का क्लब” होगा।

स्त्री नरक का मार्ग नहीं है। लेकिन एक बार तुम्हारे दिमाग में यह गलत संस्कार बैठ जाए, तो तुम किसी और वस्तु में स्त्री को प्रक्षेपित करने लगोगे; फिर तुम्हें कोई और प्रेम-पात्र चाहिए। धन तुम्हारा प्रेम-पात्र बन सकता है। लोग पागलों की तरह धन-दौलत से चिपके हैं, जोरों से पकड़े हैं, क्यों? इतना लोभ और लालच क्यों है? क्योंकि दौलत ही उनकी प्रेमिका बन गई। उन्होंने अपनी सारी जीवन ऊर्जा धन की ओर मोड़ ली।

अब यदि कोई उनसे धन त्यागने को कहे, तो वे बड़ी मुसीबत में पड़ जाएंगे। फिर राजनीति से उनका प्रेम-संबंध जुड़ जाएगा। राजनीति में सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर चढ़ते जाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो जाएगा। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद की ओर, राजनीतिज्ञ ठीक उसी लालसा से देखता है, जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका की ओर देखता है। यह विकृति है।

कोई व्यक्ति किन्हीं और दिशाओं में जा सकता है, जैसे शिक्षा; तब पुस्तकें उसकी प्रेम की वस्तुएं हो जाती हैं। कोई आदमी धार्मिक बन सकता है, तब परमात्मा उसका प्रेम-पात्र बन जाता है...तुम अपने प्रेम को किसी भी काल्पनिक चीज पर प्रक्षेपित कर सकते हो, लेकिन स्मरण रहे, उससे तुम्हें परितृप्ति नहीं मिल सकती।


ओशो,
फ्रॉम डार्कनेस टु लाइट

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मैं हमेशा ऐसा अनुभव क्यों करता हूं, जैसे कि मेरा एक हिस्सा दूसरे हिस्से के विरुद्ध लड़ रहा है?


मनुष्य का इतिहास एक अत्यंत दुखद घटना रहा है, और इसके दुखद होने का कारण समझना बहुत कठिन नहीं है। उसे खोजने के लिए तुम्हें ज्यादा दूर जाना न पड़ेगा, वह प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद है।

मनुष्य के पूरे अतीत ने मनुष्य में एक विभाजन पैदा कर दिया है, हर आदमी के भीतर निरंतर एक शीत युद्ध चल रहा है। यदि तुम्हें बेचैनी का अनुभव होता है, तो उसका कारण व्यक्तिगत नहीं है। तुम्हारी बीमारी सामाजिक है। और जिस चालाकी से भरी तरकीब का उपयोग किया गया है, वह है: तुम्हें दुश्मनों के दो खेमों में बांटना-भौतिकवादी और अध्यात्मवादी, जोरबा और बुद्ध।

वस्तुतः तुम बंटे हुए नहीं हो। वास्तविकता यह है कि तुम अखंड हो-एक स्वर में, एक लय में आबद्ध। लेकिन तुम्हारे मन में यह संस्कार गहरा बैठा है कि तुम एक नहीं हो, अखंड नहीं हो, पूर्ण नहीं हो। तुम्हें अपने शरीर के खिलाफ लड़ना होगा। यदि आध्यात्मिक होना चाहते हो तो तुम्हें अपने शरीर को हर संभव तरीके से जीतना पड़ेगा, उसे हराना पड़ेगा, उसे सताना और नष्ट करना पड़ेगा।

पूरी दुनिया में यह धारणा स्वीकृत रही है। विभिन्न धर्मों में, विभिन्न संस्कृतियों में उसके रंग-रूप भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, किंतु आधारभूत सिद्धांत वही है-मनुष्य को विभाजित करो, उसमें संघर्ष पैदा करो, जिससे एक हिस्सा श्रेष्ठ अनुभव करने लगे, पवित्र बन जाए, पुण्यात्मा बन जाए, और दूसरे हिस्से की पापी की तरह निंदा करना शुरू कर दे।

मगर कठिनाई यह है कि तुम एक हो, तुम्हें खंडित करने का कोई उपाय नहीं है। हर विभाजन तुम में दुख पैदा करने वाला है। विभाजन का अर्थ होगा कि तुम्हारी आत्मा का आधा भाग, दूसरे आधे भाग से लड़ रहा है। और यदि तुम स्वयं के भीतर लड़ रहे हो, तो कैसे विश्राम को उपलब्ध होओगे?

पूरी की पूरी मनुष्यता अब तक स्किजोफ्रेनिक ढंग से, खंडित-मानसिकता में जीती रही है। प्रत्येक व्यक्ति टुकड़ों में, खंडों में तोड़ दिया गया है। तुम्हारे धर्म, तुम्हारे दर्शनशास्त्र, तुम्हारे सिद्धांत, घाव भरने वाले नहीं, वरन घाव करने के साधन रहे हैं-वे अंतर्युद्ध और संघर्ष के कारण रहे हैं। तुम खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते रहे हो। तुम्हारा दायां हाथ, बाएं हाथ को चोट पहुंचाता है, बायां हाथ, दाएं हाथ को घायल करता है, और अंतत: तुम्हारे दोनों हाथ लहूलुहान हो जाते हैं।

पश्चिम ने चार्वाक को चुना, जोरबा को चुना। विक्षिप्तता से बचने का दूसरा रास्ता न था-एक हिस्से को पूर्णतः नष्ट करना पड़ा । पश्चिम ने मनुष्य के आंतरिक सत्य को, उसकी चेतना को अस्वीकार कर दिया-आदमी केवल शरीर है, कहीं कोई आत्मा नहीं है-खाओ, पीओ, और मौज करो, बस यही एकमात्र धर्म है। यह मन की शांति पाने का एक उपाय था, संघर्ष से बाहर आने का, एक निर्णय और निष्कर्ष पर पहुंचने का-क्योंकि यह स्वीकृत हो गया कि तुम एक हो-केवल पदार्थ, केवल शरीर।

ऊपर-ऊपर से देखो तो ऐसा लगता है कि पूरब और पश्चिम अलग-अलग चीजें कर रहे हैं, किंतु गहराई से समझो तो वे एक ही चीज कर रहे हैं। सचाई यह है कि वे एक होने का बौद्धिक रूप से प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि "दो' होने का मतलब है निरंतर बेचैनी में, सतत संघर्ष में होना; इससे बेहतर है कि "दूसरे' का ख्याल ही भूल जाओ।

इसी संदर्भ में तुम्हें यह स्मरण दिलाना महत्वपूर्ण होगा कि आधुनिक विज्ञान इस निष्कर्ष पर पहुंच गया है कि पदार्थ का होना एक भ्रम है। पदार्थ का अस्तित्व नहीं है, वह केवल दिखाई देता है। वे इस निष्पत्ति पर एक बिलकुल भिन्न मार्ग से पहुंचे हैं-पदार्थ का सूक्ष्म अन्वेषण करते हुए उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे पदार्थ में गहरे जाते हैं, वैसे-वैसे उसकी भौतिकता; उसका पदार्थ-पन कम से कम होता जाता है, और परमाणु के बाद एक ऐसा बिंदु आता है जहां कोई पदार्थ नहीं बचता, सिर्फ इलेक्ट्रॉन रह जाते हैं, जो विद्युत कण हैं, वे पदार्थ नहीं, सिर्फ ऊर्जा तरंगें हैं।

पश्चिमी प्रतिभा को केवल पदार्थ के साथ काम करने की छूट थी। पूरब में प्रतिभा के लिए पहली चुनौती थी-अंतर्यात्रा। सिर्फ द्वितीय श्रेणी के लोगों ने, मध्यम कोटि के लोगों ने बाहरी सांसारिक चीजों के लिए श्रम किया। जो वास्तव में बुद्धिमान थे, उन्होंने सदा ध्यान की दिशा में गति की।

धीरे-धीरे दूरी बढ़ती गई। पश्चिम भौतिकवादी हो गया-इसकी पूरी जिम्मेवारी ईसाई चर्च की है, और पूर्वीय मनुष्यता अधिक से अधिक अध्यात्मवादी हो गई। प्रत्येक व्यक्ति में जो विभाजन, जो विखंडन किया गया था; वही विस्तृत पैमाने पर पूरब और पश्चिम का विभाजन बन गया।

एक महान कवि ने लिखा है: "पूरब" पूरब है; और "पश्चिम" पश्चिम है; और दोनों कभी नहीं मिलेंगे। और इस कवि रुडयार्ड किपलिंग की पूरब में अत्यधिक रुचि थी। वह कई वर्षों तक भारत में रहा-वह सरकारी नौकरी में था। पर इस भेद को देख कर-कि संपूर्ण पूर्वीय चेतना भीतर गति करती है, और पश्चिमी चेतना बहिर्मुखी है...वे कैसे मिल सकते हैं?
मेरा पूरा काम रुडयार्ड किपलिंग को गलत सिद्ध करना है। मैं कहना चाहूंगा कि न पश्चिम पश्चिम है; न पूरब पूरब है-वे दोनों पहले से ही मिले हुए हैं। न कोई पूरब है, न कोई पश्चिम है। उनके दृष्टिकोण बहुत भिन्न रहे लेकिन वे समझे जा सकते हैं।

मेरी दृष्टि यह है, मेरा सारा प्रयास यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक सेतु निर्मित हो, ताकि तुम एक हो जाओ, पूर्ण हो जाओ। देह से दुश्मनी न करो, वह तुम्हारा घर है। अपनी आत्मा से शत्रुता न साधो, क्योंकि बिना चेतना के हो सकता है तुम्हारा घर खूब सजा-धजा हो, पर वह खाली मकान होगा-बिना मालिक के-सूना। शरीर और आत्मा जब साथ-साथ हों, तो एक सौंदर्य पैदा होता है-एक पूर्ण जीवन! एक भरा-पूरा जीवन!!
प्रतीक रूप में मैंने शरीर के लिए जोरबा को और आत्मा के लिए बुद्ध को चुना है। चाहे मैं जोरबा के विषय में कहूं, या बुद्ध के बारे में बोलूं, मेरे प्रत्येक वक्तव्य में वे दोनों ही स्वतः समाहित हो जाते हैं, क्योंकि मेरे लिए वे अभिन्न हैं। यह सिर्फ बल देने की बात है कि किस पर ज्यादा जोर देना है।

जोरबा केवल शुरुआत है। यदि तुम अपने जोरबा को पूर्णरूपेण अभिव्यक्त होने की स्वीकृति देते हो, तो तुम्हें कुछ बेहतर, कुछ उच्चतर, कुछ महत्तर सोचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। वह मात्र वैचारिक चिंतन से पैदा नहीं हो सकता, वह तुम्हारे अनुभव से जन्मेगा-क्योंकि वे छोटे-छोटे, क्षुद्र अनुभव उकताने वाले हो जाएंगे। गौतम बुद्ध स्वयं इसीलिए बुद्ध हो पाए, क्योंकि वे जोरबा की जिंदगी खूब अच्छी तरह जी चुके थे। पूरब ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उनतीस वर्षों तक बुद्ध इस तरह जीए, जैसा कोई जोरबा कभी न जीया होगा।

गौतम बुद्ध के पिता ने पूरे राज्य की सारी सुंदर लड़कियों को एकत्रित करके बुद्ध के भोग-विलास की व्यवस्था की थी। उन्होंने भिन्न-भिन्न ऋतुओं के लिए, अलग-अलग जगहों पर तीन शानदार महल बनवाए। उनके पास सुंदर बाग-बगीचे और झीलें थीं। बुद्ध का पूरा जीवन सुख-सुविधा संपन्न था, शुद्ध भोग-विलास था! पर उससे वे उकता गए, और यह प्रश्न उनके मन में महत्वपूर्ण होने लगा कि क्या यही सब कुछ है? फिर मैं कल के लिए क्यों जीए जा रहा हूं। जीवन का कुछ अर्थ, कुछ और अभिप्राय होना चाहिए, अन्यथा जीवन सारहीन है।

बुद्धत्व की खोज प्रारंभ होती है-जोरबा को भरपूर जी लेने से। हर आदमी बुद्ध नहीं हो पाता, उसका मूल कारण है कि जोरबा अनजीया रह जाता है। मेरा तर्क देखते हो न! मैं कहता हूं कि जोरबा को जी भर के, पूर्णता से जी लो, तो तुम स्वाभाविक ढंग से बुद्ध के जीवन में प्रवेश कर जाओगे।

अपने शरीर का सुख लो, अपने पार्थिव अस्तित्व को भोगो, इसमें कोई पाप नहीं है। इसके पर्दे में, इसके पीछे छिपा है तुम्हारा आध्यात्मिक विकास, तुम्हारा आत्मिक आनंद! जब तुम भौतिक सुखों से थक जाओगे, केवल तब तुम पूछोगे, "क्या इसके अतिरिक्त कुछ और भी है?'' स्मरण रहे, यह प्रश्न मात्र बुद्धिगत नहीं हो सकता, इसे अस्तित्वगत होना पड़ेगा। "क्या कुछ और भी है?'' जब यह प्रश्न अस्तित्वगत होगा, तभी तुम अपने भीतर वह "कुछ और'' उपलब्ध कर पाओगे।

निश्चित ही बहुत कुछ और भी है। जोरबा तो केवल शुरुआत है। एक बार बुद्धत्व की ज्योति जल जाए, जागरण की आभा तुम्हारी आत्मा पर फैल जाए, तब तुम जानोगे कि सांसारिक सुख छाया भी न था...वहां इतना अधिक आनंद है, परमानंद! लेकिन वह आनंद सुख के विपरीत नहीं है। वस्तुतः वह सुख ही है जो तुम्हें इस आनंद तक ले आया है। जोरबा और बुद्ध के बीच में कोई संघर्ष नहीं है, कोई झगड़ा नहीं है। जोरबा तीर का निशान है, एक संकेत चीन है-यदि तुम उस दिशा में ठीक से अनुसरण करो, तो बुद्ध तक पहुंच जाओगे।
ओशो, बियांड एनलाइटनमेंट,

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"मैं यहां तुम्हें स्वप्न देने के लिये नहीं हूं, बल्कि बिलकुल इसके विपरीत मैं यहां तुम्हारे स्वप्नों को धवस्त करने के लिये हूं"

"तुम मेरे बारे यह नहीं कह सकते कि मैं सही हूं या ग़लत। अधिक से अधिक तुम यही कह सकते हो कि मैं उलझन पैदा कर रहा हूं। लेकिन यही मेरा उपाय है: तुम्हें उलझा दूं। कहां तक तुम यह सह सकोगे कि मैं यहां से वहां और वहां से यहां बदलता रहूं। एक दिन तुम चिल्लाने ही वाले हो," दूर रहो! अब निर्णय मैं लूंगा।"

"मैं कोई गंभीर कार्य नहीं कर रहा। मैं कार्य कर ही नहीं रहा। यह मेरी मौज है जो मैं तुमसे बांट रहा हूं। अब तुम इसके साथ क्या क्रते हो यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं।"

"मेरी देशना है कि अतीत से संपूर्ण संबंध विच्छेद हो। मैं चाहता हूं कि पहले तुम ज़ोरबा की भांति जीयो। उस नींव पर ही तुम्हारे बुद्धत्व का मंदिर निर्मित होगा। इस तरह हम बाहर और भीतर को एक ही सूत्र में पिरो देंगे। बाहर भी उतना ही तुम्हारा है जितना भीतर।"

"मैं तुम्हें यहां हिन्दू, मुसलमान या ईसाई बनाने के लिये नहीं। वह सब बकवास मेरे लिये नहीं. मैं यहां तुम्हें धार्मिक होने में मदद करने के लिये हूं--बिना किसी विशेषण के. ऍउर एक बार तुम इसे समझ लो तो पूरा संसार एक नये रंग में रंग जाता है."

"मैं कोई कारण नहीं देखता कि भीतर और बाहर में विभाजन किया जाये। मैं गरीब रहा हूं, मैनें अत्यंत गरीबी देखी है, और मैं अमीरी में भी जीया हूं। मेरी मानो समृद्धी दरिद्रता से कहीं बेहतर है। मैं अत्यंत सरल अभिरुचियों का व्यक्ति हूं: मैं किसी भी श्रेष्टतम से संतुष्ट हूं, मैं अधिक नहीं चाहता।"

"मैं तुम्हारे किये कुछ कर नहीं रहा हूं; क्योंकि वह भी एक प्रकार का अहंकार है, कोई भी यह सोचे कि वह तुम्हारे लिये कुछ कर रहा है। यह बस घट रहा है।"

"मैं कोई विचार नहीं हूं और न ही मैं कहीं अटका हूं। मैं प्रवाह में हूं। मैं हैराक्लिटस से सहमत हूं कि तुम एक ही नदी में दो बार नहीं उतर सकते। यदि अनुवाद किया जाए तो इसका अर्थ हुआ: तुम एक ही व्यक्ति को दोबारा नहीं मिल सकते। मैं उससे सहमत ही नहीं हूं बल्कि एक कदम आगे जाता हूं कि एक ही नदी में तुम एक बार भी नहीं उतर सकते। मनुष्य के संसार में यदि इसका अनुवाद किया जाए तो अर्थ यह हुआ कि तुम एक ही व्यक्ति को एक बार भी नहीं मिल सकते क्योंकि एक बार भी जब तुम उसे मिल रहे हो तो वह बदल रहा है, तुम बदल रहे हो, संपूर्ण संसार बदल रहा है।"

"मैं यहां किन्हीं मुद्दों पर चर्चा करने के लिये नहीं अपितु तुम्हारे भीतर एक विशिष्ट गुणवत्ता पैदा करने के लिये हूं। मैं तुम्हें कुछ समझाने के लिये नहीं बोल रहा; मेरा बोलना बस एक सृजनात्मक घटना है. मेरा बोलना तुम्हें कुछ समझाने का प्रयास नहीं-- वह तो तुम किताबों से भी समझ सकते हो और इस के अतिरिक्त लाखों अन्य तरीकों द्वारा यह संभव है-- मैं तो यहां केवल तुम्हें रूपांतरित करने के लिये हूं."

"मैं एक साधारण व्यक्ति हूं। मेरे पास कोई करिश्मा नहीं और मैं करिश्मे में विश्वास नहीं करता. मैं पद्धतियों में विश्वास नहीं करता. भले ही मैं उनका इस्तेमाल करता हूं लेकिन मैं उन पर विश्वास नहीं करता. मैं एक साधारण व्यक्ति हूं, बहुत आम. मैं भीड़ में खो सकता हूं और तुम कभी मुझे ढूंढ न पाओगे. मैं तुम्हारे आगे नहीं, साथ चलता हूं."

"मैं बेरोज़गार हूं। मैं कुछ भी नहीं कर रहा: सब इच्छाएं मिट गईं हैं, सब करना तिरोहित हो गया है। मैं बस यहां हूं। तुम्हारे लिये मैं बस एक अस्तित्व हूं। यदि तुम मुझे प्रेम करते हो तो तुम मेरा उत्साह से स्वागत करोगे, और तुम्हें अत्यंत लाभ होगा। यदि तिम मुझे घृणा करते हो तो तुम चूक जाओगे और ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी। अब चुनाव तुम्हारा है; लेकिन मैं कुछ नहीं कर रहा।"

"मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता-- परवाह किसे है!"

"गौतम बुद्ध अतीत के सब गुरुओं का प्रतिरूप हैं। शिष्य को दूर रखना होगा। उसे अनुशासन, समादर और अज्ञापालन सीखना होगा। यह एक प्रकार से आध्यात्मिक ग़ुलामी हुई। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे गुलाम बनो और मैं नहीं चाह्ता कि तुम मेरा आज्ञापालन करो। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि तुम तुम मुझे समझो और यदि मेरा अनुभव प्रमाणिक है और तुम्हारा विवेक उसे समझ पाता है तो तुम स्वयं ही उसका अनुसरण करोगे। यह आज्ञापालन न हुआ, मैं तुम्हें कुछ करने को नहीं कह रहा, मैं सिर्फ तुम्हें समझने के लिये कह रहा हूं, और फिर तुम्हारा विवेक जहां तुम्हें ले जाये, तुम उसका अनुसरण करो। तुम जो भी बनो, मैं प्रसन्न हूं;बस स्वयं के साथ सच्चे और ईमानदार रहो।"

"मैं तुम्हें लुभा रहा हूं ताकि तुम जीवन के प्रति प्रेमपूर्ण हो सको, थोड़ा और काव्यमयी हो सको, तुम तुच्छ व साधारण के प्रति उदासीन हो सको ताकि तुम्हारे जीवन में उदात्त का विस्फोट हो जाए।"

"मुझे एक उद्धारक की तरह न देखें। इस विचार के कारण ही- कि कोई उद्धारक आ गया है, कोई मसीहा आ गया है- लोग वैसे ही जीते रहते हैं जैसे वे जीते रहे हैं। वे क्या कर सकते हैं? उनका कहना है कि सब कुछ तभी होगा जब कोई मसीहा आयेगा। यह उनका ढंग है रूपांतरण को टालने का, यह उनका ढंग है स्वयं को धोखा देने का। बहुत हो चुका, बहुत दे दिया धोखा स्वयं को। अब और नहीं। कोई मसीहा नहीं आने वाला। तुम्हें स्वयं कार्य करना होगा,तुम्हें स्वयं के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। और जब तुम ज़िम्मेदार होते हो तो सब कुछ स्वयं घटने लगता है।"

"मैं चाहता हूं कि जो भी बाहर उपल्ब्ध है, लोग उसके साथ सहजता से जीयें। जल्दी न करें क्योंकि जो भी अनजीया रह गया तुम्हें वापस खींचेगा। इसे खत्म करें। और तब तुम्हें अपने घर से या अपने बैंक के खाते से भागना न पड़ेगा, क्योंकि वे फिर तुम पर बोझ न रहेंगे। उनका कोई अर्थ ही न रह जायेगा। संभव है उनका कोई उपयोग हो सके, लेकिन उनमें कोई ग़लती नहीं।"

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"Osho advocated meditation for everyone, but his technique was revolutionary, beginning not with stillness and silence but with violent activity to release pent-up energy and emotions, leading to a state of calmness in which meditation can flourish। ...This is an ideal place for people to learn the dozens of meditations he designed. There's swimming meditation, dancing and martial arts meditation, smoking meditation, walking meditation, breathing meditation and meditation for couples."

Washington Post

"Remarkable books."
Nicholas Mosley, Daily Telegraph, UK

"He was a guru unencumbered by tradition, an enlightened master who could quote Heidegger, and Sartre, and who furthermore believed in technology, capitalism and sex..."
The Washington Post

"Osho continues publishing very good spiritual texts indeed. These on Zen are direct and whimsical. ...Osho has a no-mind to his comments, sudden bursts of insight, novel ways of putting together images so that you read in an enchanted wonder."
The Book Reader, USA

"Many subjects of interest to psycho-historians are taken up by (Osho)in this fascinating series of talks - from esoteric topics to more familiar subjects like sex, child rearing, and the place of mind in understanding the world."
The Journal of Psychohistory, USA

"Osho has a no-mind to his comments, sudden bursts of insight, novel ways of putting images together so that you read in enchanted wonder. Any spiritual teacher who has such bad publicity must be saying some wonderfully terrible things. Tune in."
The USA Book Reader

"Osho is one of the most influential spiritual teachers of the second half of the 20th century and many thousands of people -- of all ages, from all countries and all spiritual backgrounds -- have been inspired by the simplicity and directness of his teachings."
Penguin Books

"In this volume Osho brings Bodhidharma to modern sensibilities but in a contemporary and interesting manner. Nearly 400 fascinatingly intelligent pages of questions and answers, lectures, writings, etc. A revolutionary, contemporary, utterly irreverent way to the spirit."
The Book Reader, USA

"Irreverent, wise, humorous, crazy, and ultimately very sane."
The Book Reader, USA

"You just don't read Osho, you undefine yourself."
The Book Reader, USA

"Osho's position as an important mystic and philosopher is supported by an international following and a host of publications. His work is that of all great religious leaders-bringing God to man...Osho's lively appeal: jokes, limericks, verse, and tales combined with traditional religious themes."
Library Journal, USA

"In a language simple but yet profound, the master Osho indicates the art of 'dying' by learning how to live in the here and now, the eternal life."
Livres Hebdo, France

"Now that religion has become just a formality, and the burning messages of the buddhas who have been on earth degraded to mere formal faith, the message of Osho who has reached to such dazzling heights of human consciousness through his own experience, is incomparable in its strength to pierce the beauty within our hearts."
Boston Club, Japan

"The way Osho is using language -- casual, provocative, iconoclastic -- is really new."
Parmita, Buddhist Newsletter, Italy

"Remarkable discourses...wise and clear... an excellent, recommendable book."
Book Review, De Kaarsvlam

"Osho is one of the most influential spiritual teachers of the second half of the 20th century and many thousands of people -- of all ages, from all countries and all spiritual backgrounds -- have been inspired by the simplicity and directness of his teachings."
Penguin Books

"A very nicely illustrated collection of Osho's aphorisms."
Chicago Review Press, USA

"He quotes Jesus, Buddha, Mahavira, Lao Tzu, Sufis and old Zen masters with stupendous memory, interpreting them with a freshness and directness as if they were speaking today, as if they wore jeans."
Die Zeit, Germany

"One of the ten people; along with Gandhi, Nehru and Buddha; who have changed the destination of India."
Sunday Mid-day, India

"He wanted to be called simply Osho, because Osho is a sound that heals, and reminds us about the ocean with its infinite wisdom and mystery.
In fact Osho is the greatest guru of our century. As Gandhi he had a commune in India. Osho's commune, in Pune, still exists and is visited by 100,000 people every year. Osho died in 1990 aged 59, but for all the people that come close to him his spirit keeps inspiring love, consciousness, and joy."
Vera, Italy

"Osho is not trying to purvey information, but a truth that bypasses conscious thought and all that belongs to it, just as the most important activities of human beings bypass the mind."
Bernard Levin, The Times, UK

"This is a beautiful volume of visuals, elegantly and delicately arranged; short selections of quotes to fill in the mountains, the bamboo shoots, the clouds."
The Book Reader, USA

"One of the great blessed spiritual masters of today, Osho is the one who speaks clearest on the role of energy expanding and fulfilling people's consciousness. The book deals entirely with the power of energy."
Gabriel Rosenstock, Comhar, Irish Book Review

"Osho has the ability to make the esoteric seem instantly appealing and utterly obvious."
Meditation Magazine, Canada

"Osho is a thoroughly modern man as much at home with Marx and Engels and humanistic psychology as with the mystical traditions of the East. Indeed, he uses Marx and Maslov, Plato and Heidegger, Freud and Beckett and Lenny Bruce, Playboy jokes as well as Zen and Sufi teaching stories, to make telling critiques of political and religious, psychological and sexual orthodoxies."
James Gordon Washington Post, USA

"Without question the most inspired, the most literate and the most profoundly informed speaker I have ever heard anywhere. Everything he says in his philosophy of life has the unmistakable ring of truth: a new experience."
Jean Lyell, Vogue, UK

"Osho could keep his audience in thrall, knitting prescient anecdotes culled from various sources."
Sunday Mail, India

"With Osho as a guide Tantra can give you a new perspective, a new way of looking at yourself and at life, a new way of living in harmony with existence...for Tantra is not an intellectual proposal, it is pure experience."
Penguin Books

"Osho is a living master who has died. His words turn normal ideas on their head and if he can't reach right through you to the divine void, well...tough luck. Osho is definitely alive in a fast breathing, shaking sort of vividness."
The Book Reader, USA

"No other master is known to me who is working as universally as he."
Esotera, Germany

"This is one of the fundamental works on knowing oneself and the world. Osho's comments are truly unique."
Corriere de la Serra, Italy

"Throughout Osho's teaching runs a golden thread of sparkling humor."
Vogue, UK

"Osho's speech just flows. It's not the 'what' but the 'how' that captures you."
Bunte, Germany

"As a former orthodox Christian, I felt a continual sense of both joy and apprehension at this new possibility for approaching Jesus. Doubt and trust pulled me in two directions, until finally I fell in love with the words of this Indian Master and his view of Jesus."
Glenn Moyer, Yoga Journal, USA

"In this five-volume set of Zen, Osho is at the top of his form. He talks about Gurdjieff, Gertrude Stein, drugs, Aldous Huxley, and everything under the sun."
The Book Reader, USA

"There are many readers of his books in Japan. What is special about Osho is that he dares to make statements on subjects which are related to society, subjects that old Zen masters tried not to touch."
Zen Bunka, Japan

"Osho delivers his theses with humor and rhetoric brilliance, indeed complacent, but with an irony that actually enhances and exhilarates."
Der Spiegel, Germany

"But who was this man who was enchanting these young people, and teaching them how to get rid of all their conditionings -- political, religious and family -- without giving them any new beliefs?
...His knowledge of the West was as formidable as his knowledge of the East. From Buddha to Jesus, from Heraclitus to Marx, from the Indian mystic, Tilopa to Jung, from Zen to the Sufis, from Yoga to Tantra, he would point out the strengths and weaknesses of each doctrine…. [He] was the Master who would not give solutions, but simply provide a space to let go of the madness caused by living a life where the body, mind, being and soul were not connected…. Like Socrates he [Osho] was considered a corrupter of the morals of young people, like all true philosophers he demolished a belief system that produced only unhappiness, not joy. His greatness was that he didn't give solutions, only tools for people to realize themselves... Talking about an India that we don't often remember, the India where meditation and looking inwards were priorities - Osho shows that those qualities belong not only to India from the days of Buddha but are part of our present too."
Elle, Italy 1997

"This is the message: Osho promises that through meditation everybody can become a Buddha. Which means, one can awaken, become conscious of oneself and of the secret of life; and so, not suffering any more find final peace. This is the Zen teaching, but with something more."
Vera, Italy

"Two other meditation techniques practiced in more and more groups and seminars are relatively new. The 'Dynamic Meditation' and a shaking meditation which goes by the somewhat esoteric name 'Kundalini meditation' (nothing to do with Kundalini Yoga). These meditations have been created by the Indian mystic, Osho."
Halsa, Sweden

"What is left is Osho's teaching about life as "Zorba the Buddha," to be as free as Alexis Zorba and as aware as Buddha. Obviously Osho's cocktail, a mixture of religious science, philosophy, psychology and meditation, is in accordance with the Zeitgeist at the end of the millennium. …Osho broke with social taboos, rattled at ideologies, moral views and at the image of respected political and religious leaders such as Gandhi or Mother Teresa"

Facts Magazine, Switzerland
"The present generation has come to acknowledge that Osho was one of the greatest minds produced by our country. It was befitting that the 50th year of Indian Independence should have been celebrated by the publication of an anthology of articles of tributes Osho paid to the spiritual legacy of his country."
Mid-Day, Bombay

"He was for religiousness, not religion and he was the rich man's guru, because they could contemplate after meeting their needs."
Times of India

"For those who think that Osho is the guide and they must become his followers, there is a bad news. Servility, the staple food that most other gurus insist on feeding their "disciples," is not encouraged by Osho. There are no -isms, only thinking and self-meditation can really take you beyond the shallow and self-destructive existence that Osho criticizes."
The Asian Age, London

"Summarizing the thoughts of a man whose transcribed teachings fill an entire bookstore and have sold a purported 15 million volumes worldwide is not easy. Perhaps the kernel is Osho's notion that the perfect human being combines the earth zest of Zorba the Greek and the transcendental spirituality of Buddha."
L.A. Times

"What he (Osho) says is couched in language of great power and fluency; he is one of the most remarkable orators I have ever heard, though there is no hint of demagogy in his style, and no oratory or pedagogic feeling about the content of what he says...."
Bernard Levin, The Times, London

"Here was a guru unencumbered by tradition, an Enlightened Master who could quote Heidegger and Sartre, and who furthermore believed in technology, capitalism, and sex... (Osho) was a brilliant lecturer.... One of his lectures ended with a description of a dewdrop sliding off a lotus leaf and being carried down a stream to the ocean. It put virtually everyone in his audience into an alpha-wave state at ten in the morning."
Francis Fitzgerald (Pulitzer prizewinner), The New Yorker

"Drawn from a variety of ideologies and religious traditions, but bearing their own stamp, Osho's teachings are uncompromisingly radical, anti-rational and capricious. They invite the individual to free his or herself from all the social conditioning: the only commitment is to be open and honest, to enjoy life, love oneself."
The Sunday Times: '1000 Makers of the Twentieth Century'

"This man fascinates the western elite in a way nobody else does."
Suddeutsche Zeitung, Germany

"The novelty of Osho's teachings is the adaptation of Eastern spiritual wisdom for the Western audience. This may explain the success of his Bible, (ranked in the top-ten best-selling non-fiction)."
La Republicca, Italy

"What Osho has to say about the rights of man is 'must' reading for anyone sincerely interested in human welfare and progress because he debunks the conventional wisdom. Anyone who reads this book will understand why so many governments have refused to grant him permission to live within their borders. What he says are the truths that politicians cannot have people hear. If Osho were heard, national boundaries would dissolve, and power would leave the hands of elites and politicians. Celebration of life, love and laughter would become the dominant mode of life on earth."
New Frontier, USA

"The story of Osho's life makes fascinating reading, and this is a good book to start with."
The Book Review, India

"Imagine a world where life is fun, where 'play' has replaced 'work' and where creative self-expression is always encouraged. Imagine a world where joy and laughter are the norm, where life is fully celebrated and where love is the highest ideal. Imagine the world of Osho..."
Spirit Magazine, UK

"A Quiet, Spiritual Place To Find yourself... The 3,500-square-foot space at 570 Lexington Avenue reflects the spirit of Osho, who taught meditation and Zen principles..."
New York Times

"For me the important fact that rang out loud and clear was that Osho was a rare mystic. He was a feminist. Spiritualism has invariably become associated with men. Women are seen as devotees, men as seekers. Osho put an end to all that. He realized that liberation was not merely of body and mind but also of the soul."
Farzana Versey, The Sunday Observer, January 1996

"One of the 10 People who have changed the destiny of India. Osho: For liberating the minds of future generations from the shackles of religiosity and conformism. He was a deeply spiritual man who denounced all religions."
Khushwant Singh, Mid-day, July 1991

"Some people call it the 'Buddhafield' of an enlightened master. Others say it's the world's largest spiritual single's club. One thing is certain: the Osho Commune International --founded nearly 25 years ago by Osho is not your typical Indian ashram. A New Age Xanadu that attracts thousands of visitors every day, the commune is a self-contained personal growth conglomerate, offering an astonishing variety of classes and workshops in everything from organizational development to tantric sex. And if the courses don't interest you, you can spend your days romping in the swimming pool, sauna, "Zennis" courts, and bistro of the commune's "Club Meditation."
By Anne Cushman and Jerry Jones, Yoga Journal, June 1998

"The Osho Commune, founded in 1974, claims to be the world's largest growth center for meditation and spiritual growth. It attracts more than three percent of all foreign tourists to India - more than the Taj Mahal - and is the most widely visited destination in the country. In January, celebrations of the seventh anniversary of founder Osho's death attracted record numbers of visitors. Osho's followers insist that he merely "left his body". The inscription by his ashes reads: "OSHO: Never Born, Never died; only visited this planet Earth, between Dec. 11, 1931 and Jan. 19, 1990."
For one who was never born, he certainly made a massive impact on the world."
Emma Levine, Asia Magazine

"Osho Commune International is 'a kind of spiritual park -- the world's largest meditation commune."
  • "Every year thousands of people visit this luxurious commune.... A very comfortable paradise where you can stay a long time with low-budget hotels nearby and very good food in the Commune, with meditations free..."
  • "The atmosphere is really like a fairy tale. A paradise where all your emotional, bodily and spiritual needs are met. I can advise everybody to visit for a few days and walk around that beautiful garden where everybody is friendly."
    Elle, Holland

    "More and more so-called meditation tourists are coming. These are lawyers and doctors, as well as teachers, police officers and housewives. Some are sannyasins, most of them in fact aren't. All of them are attracted by what the new ashram has to offer: With a mixture of spirituality and holiday camp one can experience how to keep the soul in balance."
    Bild am Sonntag, Germany

    "The commune in Poona is the biggest tourist attraction in India, second only to the Taj Mahal."
    Brigitte, Germany

    "They have constructed pyramids of marble and a pristine Zen garden. Thousand of men and women pour through the gate every day, from Europe, America, Australia, and Japan."
    Wall Street Journal, USA

    "The Osho Commune International has created a stunning landscape, a vista of gurgling streams, curving paths, and a quiet, shady corners ideal for meditating. It is an admirable attempt to fashion a self-sufficient eco-stystem, and it may be the only community in India where the tap water is totally safe for foreigners to drink. The grounds are immaculate..."
    Conde Nast Traveler, USA
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    "ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"
    भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

    "ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।"
    के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

    "ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"
    दलाई लामा

    "उनके साहित्य को पढ़कर मैं बेहद प्रभावित हुआ हूं।"
    फैड्रीको फैलीनी

    "मैं सचमुच उनके साहित्य में गहरा गया हूं। मैं सदैव उनकी पुस्तकों के प्रेम में रहा हूं। वे वाकई उच्चतम क्षेणी की हैं।"
    मैरिएन विलियमसन, लेखक

    "यह प्रतिभाशाली सूत्र सदैव उन सबका मार्ग-निर्देष करते रहेंगे जो प्रत्येक मनुष्य में निहित शुद्ध ज्ञान को स्वयं प्रयोग द्वारा जानने में उत्सुक हैं। यह पुस्तक प्रत्येक लायब्रेरी की शैल्फ पर होनी चाहिये और उन सबके घरों में जो भगवत्ता के उच्च ज्ञान की खोज कर रहे हैं।"
    डॉक्टर दीपक चोपड़ा,लेखक: एजलैस बॉडी, टाइमलैस माईंड; क्वांटम हीलिंग ऐंड अनकंडीशनल लाईफ

    "नो वॉटर,नो मून को मैने अत्यंत सुखद, विरेचक तथा रोचक पुस्तकों में से एक पाया। यह एक ऐसी पुस्तक है जो सदैव एक सुखदायी मित्र की तरह मेरे साथ रहेगी।"
    यहूदी मैन्यूहिन

    "मैने उनकी सब पुस्तकें पढ़ी हैं।"
    शर्ले मैक्लेन

    "मैने ओशो की अधिकतम पुस्तकें पढ़ी हैं और उनके प्रवचनों की कैसेट्स सुनी हैं, और बेशक अध्यात्मिक परंपरा में वे एक अद्वितीय प्रज्ञा हैं और एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमें अनुप्रेरित करने की अद्भुत सामर्थ्य है।"
    जेम्ज़ ब्राउटन, कवि और लेखक

    "वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं।"
    काज़ूयोशी कीनो,
    होसेन गाकुएन कॉलेज, टोकियो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

    "ओशो आपको आपके पुराने मन के ढांचे से मुक्त करवाते हैं... वे अनन्य नहीं अनंत हैं।"
    सिंगापुर में भारतीय राजदूत

    "मैने कभी किसी को नहीं सुना जो इतनी खूबसूरती और मस्ती से उन मनोवैज्ञानिक समस्यायों का एकीकरण कर उनका निदान कर दे जो युगों युगों से हमारी ऊर्जा को क्षीण रही हैं"
    श्रद्धेय केन, पुरोहित, चर्चिल कॉलेज,केम्ब्रिज

    "ओशो जीसस क्राईस्ट के बाद के सर्वाधिक खतरनाक व्यक्ति हैं... निश्चित ही वे बहुत प्रभावशालि व्यक्तित्व हैं अन्यथा वे इतना बड़ा खतरा न होते। वे उन बातों को कह रहे हैं जिन्हें कहने का किसी में साहस नहीं। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास वो सब विचार हैं जो आंदोलित ही नहीं करते नहीं बल्कि जिनमें सत्य की वह अनूगूंज है जो उन सब की जड़ें हिला दें जो परंपरा के प्रति पागल है।"
    टॉम रॉबिन्ज़, लेखक: ईवन काउगर्ल्ज़ गैट द ब्लूज़,स्टिल लाईफ विद वुडपैकर और जिटरबग परफ्यूम

    "ओशो की द गोल्डन फ्यूचर (और उनकी बहुत सी अन्य पुस्तकों) को पढ़ने के परिणाम स्वरूप मैं आप से कहना चाहूंगा कि मैं ओशो की दृष्टि का पूर्णतया और हार्दिक समर्थन करता हूं। एक लेखक होने के नाते मेरी यह ख्वाहिश है कि उनके शब्द उन सब तक पहुंचे जिन्हें उनकी अत्याधिक ज़रूरत है। मुझे इस निष्कर्ष पर पूर्ण विश्वास है क्योंकि ओशो के शब्द प्रेम से लबरेज़ हैं।"
    दोवे द ग्रूत, लेखक

    "ये वाकई वही पुस्तकें हैं जिनकी लोगों को तलाश है... ये आज ज़्यादा संगत हैं उस समय के बजाय जब इन्हें बोला गया।"
    माईकल मान, अध्यक्ष, एलिमैंट बुक्स

    "बुद्ध के बाद ओशो भारत में महानतम अवतार हुए हैं। वे जीवित बुद्ध हैं।"
    लामा करमापा, तिब्बती बौद्ध धर्म के कार्गयुप्त (या रैड हैट) संप्रदाय के प्रमुख।

    "आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं,एक महान विद्वान, स्पष्ट चिंतन वाले और नये विचारों के जन्मदाता। और साथ ही उन्हें मौखिक और लिखित शब्दों प्राकृतिक वरदान प्राप्त है। आने वाले अनेक दशकों तक हमें उन जैसी प्रतिभा न देख पायेंगे... उन्हें चिंतकों की श्रेणी में ही रखना श्रेयस्कर होगा और चिंतक के रूप में उनकी गणना दिग्गजों में होगी।"
    खुशवंत सिंह, भूतपूर्व संपादक दि टाइम्स ऑफ इंडिया;लेखक और इतिहासकार

    रहस्यदर्शियों को हमसे परिचित करवाने की कला में ओशो का सानी कोई दूसरा नहीं हो सकता, जो स्वयं इन सबकी सराहनीय संगति में भी सबसे अनूठे हैं। अपने पूर्ववर्ती जाग्रत पुरुषों को फिर से जीवंत करते हुए,उन्हें समकालीन बनाते हुए वे अपने अनुभव से बोलते हैं।"
    जॉन लिली

    "आज तक, पहले या बाद में मैंने कभी भी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा होगा जिसके पास कला, विज्ञान, मनोविज्ञान व धार्मिकता के सामंजस्य की इतनी समरस व सृजनात्मक अंतर्दॄष्टि हो। अभिनव मानव की उनकी अवधारणा के अभाव में निश्चित तौर पर हम मौलिक रूप में वंचित रह जाएंगे।"
    डा. ए. श्लेजर, पी.एच. डी, इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, स्विटज़रलैंड

    "वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" काज़ुयोशी कीनो।
    काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

    "उनके अविश्वसनीय ध्वनि-मुद्रित प्रवचनों और पुस्तकों ने मुझे, और लाखों अन्य लोगों को, आत्म विकास के मार्ग पर प्रेरित किया है। वे एक विशाल घंटनाद की आवाज की तरह हैं: जागो, जागो, जागो!"
    जेम्ज़ कोबर्न, अभिनेता

    "ओशो के साथ शब्दों का प्रवाह अंतहीन हो जाता है- निरंकुश, चुनौतीपूर्ण। आने वाले सौ वर्षों में ओशो-साहित्य की प्रतियों का प्रकाशन बाइबल से अधिक होने वाला है, और अब तक का उत्कॄष्ट बहुविक्रीत साहित्य।"
    एम. वी. कामथ , भूतपूर्व संपादक दि इलस्ट्रेटिड वीकली, इंडिया

    "As you savor the chapters, you´ll discover that Osho is like a Zen archer. Almost poetically he circles his target, surveying it over and over again from many positions before he draws back his bow and lets the arrow fly."
    Robert Rimmer, USA. Author of The Harrad Experiment and Proposition 31

    "Indian mystic Osho has been one of the most successful mixers of Eastern philosophies with Western therapeutic techniques."
    Russel Chandler, Understanding the New Age

    "The Upanishads talk about ultimate wisdom, Osho tells you how to live it"
    R.E. Gussner, Dept of Religion, University of Vermont, USA

    "It is a religion for the irreligious, for the agnostic, for the unbeliever, for the rationalist."
    Khushwant Singh, Former editor of The Times of India; author and historian

    "Osho is a mystical giant, a flowering of a unique intelligence and one of those rare humans ex-pressing himself with joy."
    Paul Reps, author of Zen Flesh, Zen Bones

    "The teachings of Osho, in fact, encompass many religions, but he is not defined by any of them. He is an illuminating speaker on Zen, Taoism, Tibetan Buddhism, Christianity and ancient Greek philosophy...and also a prolific author."
    Nevill Drury, Dictionary of Mysticism and the Occult, USA

    "He discourses with eloquent familiarity on virtually all the world´s great mystics - Zen masters, Hassids, Sufis, Bauls, Buddha, Lao-Tzu, Jesus.… Though he "knocks the mind," Osho is an intellectual´s guru, and his message is aimed not at spiritual sheep but at rebels and risk takers - people who consider themselves intelligent, adventurous, and independent, and want to be more so."
    Annie Gottlieb, Author of Do You Believe in Magic?

    "He had provided us a rare insight into our lives and times. He has ridiculed us, pushed us...hurt us, and thereby, made richer human beings out of us. He made us think for ourselves; forced us to reject him, and by that act of rejection, brought us closer to him -and in a strange kind of way, closer to ourselves."
    Pritish Nandy, JAIN TV presenter; former Editor, Publisher of The Illustrated Weekly, India

    "Osho has a unique identity of his own. Our worldly life can become more fruitful through meditation and people can evolve towards a better society with the help of Osho´s wisdom."
    Rt. Hon´ble Shri Girija Prasad Koirala, Prime Minister of Nepal, 17th of May, 1998

    "Treatises on Buddhism are often dry and reverential, if not tediously scholastic, and if Osho´s treatment is not canonical, it compensates by throbbing with life, humor, penetrating insight and the continual provocation to think for oneself."
    Guy Claxton, Author of Noises from the Darkroom

    "Osho speaks the language of today´s Yug Bhasha. His message is for the whole world."
    Vice-President of India, Krishnakant

    "Osho is one of the most important educators and philosophical and religious leaders in the late 20th century...I firmly believe that hundreds and thousands ...would be thrilled, delighted and gain a new perspective on life by reading his books."
    Robert Rimmer, author The Harvard Experiment and Proposition 31

    "A great mystic, a great philosopher.... In his own way Osho captured the essence of ancient wisdom, related it to contemporary needs, tempered it with the modern times and became a powerful messenger of eternal Indian thought and Indian wisdom."
    Dr. Manmohan Singh, former finance minister of India,

    "Osho is certainly a religious man, an intelligent human, and one of those rare humans expressing himself with joy."
    Paul reps, author of Zen Flesh, Zen Bones

    "Here is somebody who fuses everything and makes it understandable to people, and it makes sense. And he also challenges very fixed beliefs, challenges religions which have tradition and ritual and so forth."
    Aroon Purie, Editor of India Today

    "Wit and playfulness are a tremendously serious transcendence of evil, and this is one thing that Osho understood better than any contemporary teacher that I can think of. Gurdjieff had an element of that in his teachings, but certainly in the past fifty years there has not existed a teacher in the world who understood the value of playfulness and wit quite so well as Osho."
    Tom Robbins, author of Even Cowgirls Get the Blues, Still Life with Woodpecker and Jitterbug Perfume and others.

    "Osho is such a vision that stands for the welfare of the whole of humanity, transcending the narrow boundaries of religions. Though today´s man is so caught up in his myriad problems, all of Osho´s books and discourses suggest simple and easy ways for man´s liberation."
    Lokendra Bahadur Chand, the former premier, of Nepal

    "Osho is not trying to purvey information but a truth that bypasses conscious thought and all that belongs to it, just as the most important activities of human beings bypass the mind."
    Bernard Levin, Journalist, commentator and writer.

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    कभी जन्मे - कभी विदा हुए, जो सिर्फ इस ग्रह पृथ्वी ग्रह पर अतिथि हुए 11 दिसंबर, 1931 और 19 जनवरी, 1990 के बीच

    इन वस्तुत: अमर शब्दों के साथ, ओशो अपनी जीवनी को नकारते हैं और अपना मृत्युवाक्य लिखते हैं। इससे पहले की हर चीज से अपना नाम हटाने के बाद, वह अंततः "ओशो" स्वीकार करने के लिए तैयार हुए, उन्होंने कहा कि यह विलियम जेम्स' "के ओशियानिक, महासागर''से व्युत्पन्न है "यह मेरा नाम नहीं है," "यह एक स्वास्थ्यदायी ध्वनि है।"

    उनके बिना किसी पूर्व तैयारी के दिये गये प्रवचन, जो उन्होने दो दशकों से अधिक की अवधि में विश्व भर के लोगों के समक्ष दिये, सभी के सभी ध्वनि-मुद्रित हैं, जिनमें कुछ प्रवचन वीडियो पर भी उपलब्ध हैं- ये कैसेट्स कोई भी ,कहीं भी सुन सकता है, और तब, ओशो का कहना है," वही मौन उपलब्ध होगा।

    इन प्रवचनों का अनुवाद अब बहुत सी भाषाओं में, विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत प्रकाशित हो रहा है।

    इन प्रवचनों में मनुष्य के मन का पहली बार इतनी बारीकी से परीक्षण किया गया है कि इसमें छिपी सूक्षमतम रेखा भी बच नहीं पायी। मन मनोविज्ञान की तरह, मन भाव की तरह, मन मन/देह की तरह, मन नीतिज्ञ की तरह, मन आस्था के रूप में, मन धर्म की तरह, मन इतिहास की तरह, मन राजनीति और सामाजिक विकास की तरह- उन्होंने मन के सभी पहलुओं का परीक्षण और अध्ययन करके उनका एकीकरण कर दिया है; और उन्हें सौंप दिया है हमें,एक आशीर्वाद के रूप में, ताकि हम रूपांतरण की मौलिक खोज पर निकल सकें।

    इस प्रक्रिया के दौरान ओशो जहां भी पाखंड व आडंबर देखते हैं उसे बेनकाब करते हैं। एक लेखक के रूप में टॉम रॉबिन्ज़ ने इस बात को बड़े सुंदर शब्दों में कहा है: "हरित तृण क्षेत्र से आती बयार जब मेरे द्वार खटखटाती है तो मैं उसे पहचानता हूं। और ओशो वैसी ही आच्छादित कर देने वाली मीठी बयार के समान हैं जिसने इस पूरे ग्रह को घेर लिया है - पंडितों, पुरोहितों की टोपियां उड़ाती हुई, झूठ की धूल को पदाधिकारियों के मेज़ पर झाड़ती हुई, बलशालियों के गढ़ में जाकर मूर्खों को लताड़ती हुई, विकृत समझदारों का पर्दाफाश करती हुई और आध्यात्मिक रूप से मॄत लोगों की पीठ को गुदगुदा कर उन्हें जीवनदान देती हुई।"

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