" मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता "

"ओशो ने अपने देश व पूरे विश्व को वह अंतर्दॄष्टि दी है जिस पर सबको गर्व होना चाहिए।"....... भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री चंद्रशेखर

"ओशो जैसे जागृत पुरुष समय से पहले आ जाते हैं। यह शुभ है कि युवा वर्ग में उनका साहित्य अधिक लोकप्रिय हो रहा है।" ...... के.आर. नारायणन, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति,

"ओशो एक जागृत पुरुष हैं जो विकासशील चेतना के मुश्किल दौर में उबरने के लिये मानवता कि हर संभव सहायता कर रहे हैं।"...... दलाई लामा

"वे इस सदी के अत्यंत अनूठे और प्रबुद्ध आध्यात्मिकतावादी पुरुष हैं। उनकी व्याख्याएं बौद्ध-धर्म के सत्य का सार-सूत्र हैं।" ....... काज़ूयोशी कीनो, जापान में बौद्ध धर्म के आचार्य

"आज से कुछ ही वर्षों के भीतर ओशो का संदेश विश्वभर में सुनाई देगा। वे भारत में जन्में सर्वाधिक मौलिक विचारक हैं" ..... खुशवंत सिंह, लेखक और इतिहासकार

प्रकाशक : ओशो रजनीश | रविवार, जुलाई 11, 2010 | 7 टिप्पणियाँ


पृथ्वी कहती है, मुझ से कुछ लो तो कुछ वापस भी करो

हम पृथ्वी से केवल लेते हैं, उसे वापस कुछ नहीं लौटाते। प्रकृति एक पूर्ण चक्र है : एक हाथ से लो, तो दूसरे हाथ से दो। इस वर्तुल को तोड़ना ठीक नहीं है। लेकिन हम यही कर रहे हैं -सिर्फ लिये चले जा रहे हैं। इसीलिए सारे स्त्रोत सूखते जा रहे हैं। धरती विषाक्त होती जा रही है। नदियां प्रदूषित हो रही हैं, तालाब मर रहे हैं। हम पृथ्वी से अपना रिश्ता इस तरह से बिगाड़ रहे हैं कि भविष्य में इस पर रह नहीं पाएंगे।

आधुनिक विज्ञान का रवैया जीतने वाला है। वह सोचता है कि धरती और आकाश से दोस्ती कैसी, उस पर तो बस फतह हासिल करनी है। हमने कुदरत का एक करिश्मा तोड़ा, किसी नदी का मुहाना मोड़ दिया, किसी पहाड़ का कुछ हिस्सा काट लिया, किसी प्रयोगशाला में दो-चार बूँद पानी बना लिया और बस प्रकृति पर विजय हासिल कर ली।

जैसे प्लास्टिक को देखो। उसे बना कर सोचा, प्रकृति पर विजय हासिल कर ली। कमाल है, जलता है, गीला होता है, जंग लगती है - महान उपलब्धि है। उपयोग के बाद उसे फेंक देना कितना सुविधाजनक है। लेकिन मिट्टी प्लास्टिक को आत्मसात नहीं करती। एक वृक्ष जमीन से उगता है। मनुष्य जमीन से उगता है। तुम वृक्ष को या मनुष्य को वापस जमीन में डाल दो तो वह अपने मूल तत्वों में विलीन हो जाते हैं। लेकिन प्लास्टिक को आदमी ने बनाया है। उसे जमीन में गाड़ दो और बरसों बाद खोदो तो वैसा का वैसा ही पाओगे।

अमेरिका के आसपास समुद्र का पूरा तट प्लास्टिक के कचरों से भरा पड़ा है। और उससे लाखों मछलियां मर जाती हैं, उसने पानी को जहरीला कर दिया है। पानी की सजीवता मर गई। और यह खतरा बढ़ता जा रहा है कि दिन दिन और अधिक प्लास्टिक फेंका जाएगा और पूरा जीवन मर जाएगा।

पर्यावरण का अर्थ है संपूर्ण का विचार करना। भारतीय मनीषा हमेशा 'पूर्ण' का विचार करती है। पूर्णता का अहसास ही पर्यावरण है। सीमित दृष्टि पूर्णता का विचार नहीं कर सकती। एक बढ़ई सिर्फ पेड़ के बारे में सोचता है। उसे लकड़ी की जानकारी है, पेड़ की और कोई उपयोगिता मालूम नहीं है। वे किस तरह बादलों को और बारिश को आकर्षित करते हैं। वे किस तरह मिट्टी को बांध कर रखते हैं। उसे तो अपनी लकड़ी से मतलब है।

वैसी ही सीमित सोच ले कर हम अपने जंगलों को काटते चले गए और अब भुगत रहे हैं। अब आक्सीजन की कमी महसूस हो रही है। वृक्ष होने से पूरा वातावरण ही अस्तव्यस्त होता जा रहा है। मौसम का क्रम बदलने लगा है और फेफड़ों की बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं।

सुना है कि पुराने जमाने में प्रशिया के राजा फ्रेडरिक ने एक दिन देखा कि खेत-खलिहानों में पक्षी आते हैं और अनाज खा जाते हैं। वह सोचने लगा कि ये अदना से पंछी पूरे राज्य में लाखों दाने खा जाते होंगे। इसे रोकना होगा। तो उसने राज्य में ऐलान कर दिया कि जो भी पक्षियों को मारेगा उसे इनाम दिया जाएगा। बस प्रशिया के सारे नागरिक शिकारी हो गए और देखते ही देखते पूरा देश पक्षी विहीन हो गया। राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उत्सव मनाया -उन्होंने प्रकृति पर विजय पा ली।

पर अगले ही वर्ष गेहूँ की फसल नदारद थी। क्योंकि मिट्टी में जो कीड़े थे और जो टिड्डियां थीं, उन्हें वे पक्षी खाते थे और अनाज की रक्षा करते थे। इस बार उन्हें खाने वाले पंछी नहीं थे सो उन्होंने पूरी फसल खा डाली। उसके बाद राजा को विदेशों से चिडि़याएँ मंगानी पड़ीं।

यह सृष्टि परस्पर निर्भर है। उसे किसी भी चीज से खाली करने की कोशिश खतरनाक है। हम निरंकुश स्वतंत्र हैं, और परतंत्र हैं। यहाँ सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वह हमारे लिए सहोदर के समान है। हमें उन सबके साथ जीने का सलीका सीखना होगा।

7 पाठको ने कहा ...

  1. बहुत आभार ओशो के विचार पढ़वाने के लिए.

  2. Usman says:

    insan prathvi ka vinash ka karan banega.

  3. आभार आप सभी पाठको का ....
    सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
    और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
    ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके

    ओशो रजनीश

  4. Unknown says:
    इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
  5. Unknown says:

    किस प्रवचनमाला से लिया गया है ये हिस्सा???

  6. उत्तम विचार । प्यारे ओशो को नमन।

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