यह सूत्र यह कहता है, इतना ही कहता है, सीधी-सीधी बात कि जो छोड़ता है वह भोगता है। यह यह नहीं कहता कि तुम्हें भोगना हो तो तुम छोड़ना। यह यह कहता है कि अगर तुम छोड़ सके, तो तुम भोग सकोगे। लेकिन तुम भोगने का खयाल अगर रखे, तो तुम छोड़ ही नहीं सकोगे।
अदभुत है सूत्र। पहले कहा, सब परमात्मा का है। उसमें ही छोड़ना आ गया। जिसने जाना, सब परमात्मा का है, फिर पकड़ने को क्या रहा? पकड़ने को कुछ भी न बचा। छूट गया। और जिसने जाना कि सब परमात्मा का है और जिसका सब छूट गया और जिसका मैं गिर गया, वह परमात्मा हो गया। और जो परमात्मा हो गया, वह भोगने लगा, वह रसलीन होने लगा, वह आनंद में डूबने लगा। उसको पल-पल रस का बोध होने लगा। उसके प्राण का रोआं-रोआं नाचने लगा। जो परमात्मा हो गया, उसको भोगने को क्या बचा? सब भोगने लगा वह। आकाश उसका भोग्य हो गया। फूल खिले तो उसने भोगे। सूरज निकला तो उसने भोगा। रात तारे आए तो उसने भोगे। कोई मुस्कुराया तो उसने भोगा। सब तरफ उसके लिए भोग फैल गया। कुछ नहीं है उसका अब, लेकिन चारों तरफ भोग का विस्तार है। वह चारों तरफ से रस को पीने लगा।
धर्म भोग है। और जब मैं ऐसा कहता हूं, धर्म भोग है, तो अनेकों को बड़ी घबराहट होती है। क्योंकि उनको खयाल है कि धर्म त्याग है। ध्यान रहे, जिसने सोचा कि धर्म त्याग है, वह उसी गलती में पड़ेगा-वह इनवेस्टमेंट की गलती में पड़ जाएगा। त्याग जीवन का तथ्य है। इस जीवन में पकड़ना नासमझी है। पकड़ रहा है, वह गलती कर रहा है-सिर्फ गलती कर रहा है। जो उसे मिल सकता था, वह खो रहा है, पकड़कर खो रहा है। जो उसका ही था, उसने घोषणा करके कि मेरा है, छोड दिया। लेकिन जिसने जाना कि सब परमात्मा का है, सब छूट गया। फिर त्याग करने को भी नहीं बचता कुछ। ध्यान रखना, त्याग करने को भी उसी के लिए बचता है, जो कहता है, मेरा है।
एक आदमी कहता है कि मैं यह त्याग कर रहा हूं, तो उसका मतलब हुआ कि वह मानता था कि मेरा है। सच में जो कहता है, मैं त्याग कर रहा हूं, उससे त्याग नहीं हो सकता है। क्योंकि उसे मेरे का खयाल है। त्याग तो उसी से हो सकता है जो कहता है, मेरा कुछ है नहीं, मैं त्याग भी क्या करूं। त्याग करने के लिए पहले मेरा होना चाहिए। अगर मैं कुछ कह दूं कि यह मैंने आपको त्याग किया-कह दूं कि यह आकाश मैंने आपको दिया, तो आप हंसेंगे। आप कहेंगे, कम से कम पहले यह पक्का तो हो जाए कि आकाश आपका है! आप दिए दे रहे हैं! मैं कह दूं कि दे दिया मंगल ग्रह आपको, दान कर दिया। तो पहले मेरा होना चाहिए। त्याग का भ्रम उसी को होता है जिसे ममत्व का खयाल है।
नहीं, त्याग छोड़ने से नहीं होता। त्याग इस सत्य के अनुभव से होता है कि सब परमात्मा का है। त्याग हो गया। अब करना नहीं पड़ेगा। घटित हो गया। इस तथ्य की प्रतीति है कि सब परमात्मा का है, अब त्याग को कुछ बचा नहीं। अब आप ही नहीं बचे जो त्याग करे। अब कोई दावा नहीं बचा जिसका त्याग किया जा सके। और जो ऐसे त्याग की घड़ी में आ जाता है, सारा भोग उसका है। सारा भोग उसका है। जीवन के सब रस, जीवन का सब सौंदर्य, जीवन का सब आनंद, जीवन का सब अमृत उसका है।
इसलिए यह सूत्र कहता है, तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः, जिसने छोड़ा उसने पाया। जिसने खोल दी मुट्ठी, भर गई। जो बन गया झील की तरह, वह भर गया। जो हो गया खाली, वह अनंत संपदा का मालिक है
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| शनिवार, मई 29, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
achha likhte hai aap
achha lekh hai
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश
देश भक्त