इस सूत्र को ठीक से कोई साधक समझ ले...और मैं तो आपको इसीलिए कह रहा कि आपको साधना की दृष्टि से खयाल में आ जाए। अगर साधना की दृष्टि से खयाल में आ जाए, तो आप सब करके भी अकर्ता रह जाते हैं। आपने जो भी किया, अगर परमात्मा इतना करके और पीछे अछूता रह जाता है, तो आप भी सब करके पीछे अछूते रह जाते हैं। लेकिन इस सत्य को जानने की बात है, इसको पहचानने की बात है।
अगर इतना बड़ा संसार बनाकर परमात्मा पीछे गृहस्थ नहीं बन जाता, तो एक छोटा सा घर बनाकर एक आदमी गृहस्थ बन जाए, पागलपन है! इतने विराट संसार के जाल को खड़ा करके अगर परमात्मा वैसे का वैसा रह जाता है जैसा था, तो आप एक दुकान छोटी सी चलाकर और नष्ट हो जाते हैं? कहीं कुछ भूल हो रही है। कहीं कुछ भूल हो रही है। कहीं अनजाने में आप अपने कर्मों के साथ अपने को एक आइडेंटिटी कर रहे हैं, एक मान रहे हैं, तादात्म्य कर रहे हैं। आप जो कर रहे हैं, समझ रहे हैं कि मैं कर रहा हूं, बस कठिनाई में पड़ रहे हैं। जिस दिन आप इतना जान लेंगे कि जो हो रहा है वह हो रहा है, मैं नहीं कर रहा हूं, उसी दिन आप संन्यासी हो जाते हैं।
गृहस्थ मैं उसे कहता हूं, जो सोचता है, मैं कर रहा हूं। संन्यासी मैं उसे कहता हूं, जो कहता है, हो रहा है। कहता ही नहीं, क्योंकि कहने से क्या होगा? जानता है। जानता ही नहीं, क्योंकि अकेले जानने से क्या होगा? जीता है।
इसे देखें। मेरे समझाने से शायद उतना आसानी से दिखाई न पड़े जितना प्रयोग करने से दिखाई पड़ जाए। कोई एक छोटा सा काम करके देखें और पूरे वक्त जानते रहें कि हो रहा है, मैं नहीं कर रहा हूं। कोई भी काम करके देखें। खाना खाकर देखें। रास्ते पर चलकर देखें। किसी पर क्रोध करके देखें। और जानें कि हो रहा है। और पीछे खड़े देखते रहें कि हो रहा है। और तब आपको इस सूत्र का राज मिल जाएगा। इसकी सीक्रेट-की, इसकी कुंजी आपके हाथ में आ जाएगी। तब आप पाएंगे कि बाहर कुछ हो रहा है और आप पीछे अछूते वही के वही हैं जो करने के पहले थे, और जो करने के बाद भी रह जाएंगे। तब बीच की घटना सपने की जैसी आएगी और खो जाएगी।
संसार परमात्मा के लिए एक स्वप्न से ज्यादा नहीं है। आपके लिए भी संसार एक स्वप्न हो जाए, तो आप भी परमात्मा से भिन्न नहीं रह जाते। फिर दोहराता हूं-संसार परमात्मा के लिए एक स्वप्न से ज्यादा नहीं है, और जब तक आपके लिए संसार एक स्वप्न से ज्यादा है, तब तक आप परमात्मा से कम होंगे। जिस दिन आपको भी संसार एक स्वप्न जैसा हो जाएगा, उस दिन आप परमात्मा हैं। उस दिन आप कह सकते हैं, अहं ब्रह्मास्मि! मैं ब्रह्म हूं
प्रकाशक :
ओशो रजनीश
| रविवार, अगस्त 15, 2010 |
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टिप्पणियाँ
शब्द सूचक :
nice post ....
लाजवाब रचना ..........
बहुत खूब ....
बेहतरीन
बिलकुल सटीक और बहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई
bahut badhiyaa..
nice...
सही कहा आपने ....... अच्छी पोस्ट , आभार
ओशो के प्रवचनों में खास बात है जो किसी और में नहीं
ओशो के विचार लाजवाब! आभार -: VISIT MY BLOG:- ऐसे मेँ क्यूँ रुठ जाती हो?........पढ़ने के लिए इस पते परक्लिक कर सकते है।
पोस्ट के लिए व्यक्त आपके विचारो के लिए आपका आभारी हूँ इसी प्रकार उत्साहवर्धन करते रहे .धन्यवाद !!
sachmuch man ko sahi raasta dikhane wale vichar
I AM SO IMPRESSED........
http://shaliniaggarwalshubhaarogyam.blogspot.com
DR.SHALINIAGAM
आभार आप सभी पाठको का ....
सभी सुधि पाठको से निवेदन है कृपया २ सप्ताह से ज्यादा पुरानी पोस्ट पर टिप्पणिया न करे
और अगर करनी ही है तो उसकी एक copy नई पोस्ट पर भी कर दे
ताकि टिप्पणीकर्ता को धन्यवाद दिया जा सके
ओशो रजनीश